जो वाल्मीकि समुदाय के वोट लेने में होगा कामयाब, उसकी जीत पक्की
वाल्मीकि समुदाय किस दल में जाएगा।
राजेश ढल्ल, चंडीगढ़ : सबसे बड़ा सवाल..इस बार शहर का सबसे बड़ा वोट बैंक वाल्मीकि समुदाय किस दल में जाएगा। इसलिए इस वोट बैंक पर हर राजनीतिक दल गहरी नजर गड़ाए हुए है। इस वोट बैंक को अपनी तरफ करने के लिए हर दल तरह-तरह के पैंतरे खेल रहा है। हालांकि साल 2014 के चुनाव को छोड़कर इस वोट बैंक का अधिकतर हिस्सा कांग्रेस अपने पास ले जाती रही है। साल 2014 में वाल्मीकि समुदाय का 60 प्रतिशत से ज्यादा वोट आम आदमी पार्टी को गया था। ऐसे में कांग्रेस जहां पर अपना वोट बैंक फिर से जोड़ने की रणनीति बना रही है, वहीं, आप इस वोट को अपने पास ही टिकाए रखने की नीति बना रही है। वहीं, भाजपा ने इस वोट बैंक को अपनी ओर करने की जिम्मेदारी मेयर राजेश कालिया को दी है, क्योंकि इस साल मेयर का उम्मीदवार तय करते समय भाजपा ने इस समुदाय के वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए ही कालिया को कैंडिडेट बनाया था। जबकि कालिया पहली बार पार्षद चुनकर आए थे। कालिया को मेयर का उम्मीदवार बनाने पर भाजपा से सतीश कैंथ बागी हो गए थे। कैंथ दूसरी बार पार्षद का चुनाव जीतकर आए थे, इसके बावजूद पार्टी ने कैंथ की परवाह किए बिना वाल्मीकि समुदाय को खुश करने के लिए कालिया पर अपना स्टैंड रखा। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को वाल्मीकि समुदाय का 15 से 20 प्रतिशत तक वोट मिला था। शहर में इस समुदाय के लगभग दो लाख वोट हैं। बंसल को कई साल तक मिला है इनका साथ
साल 1999 से लेकर 2014 तक शहर में कांग्रेस से सांसद पवन बंसल रहे। पवन बंसल इस वोट बैंक के कारण ही हर बार ज्यादा से ज्यादा मार्जिन से चुनाव जीतते रहे। आरक्षित वर्ग में सबसे ज्यादा लोग वाल्मीकि समुदाय के हैं, जबकि शहर में हरिजन के अलावा धानक और रविदासिया समुदाय के लोग भी हैं। नगर निगम में इस समय वाल्मीकि समुदाय के दो पार्षद हैं, जिनमे मेयर राजेश कालिया के अलावा भरत कुमार का नाम शामिल है, जबकि मनोनीत पार्षद सचिन लोहटिया भी वाल्मीकि समुदाय से हैं। नगर निगम चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही कम से कम वाल्मीकि समुदाय के नेताओं को टिकट देकर उन्हें खुश करती है। मुद्दे की बात पर एक हो जाते हैं सब
शहर में वाल्मीकि समुदाय के नेताओं की एक विशेषता यह है कि बेशक वे अलग-अलग राजनीतिक दलों में हो, लेकिन अपने समाज के मुद्दों पर एक हो जाते हैं। अपने समाज के लोगों के लिए वे अपने दल के खिलाफ भी चले जाते हैं। इस साल कालिया को जब मेयर का उम्मीदवार भाजपा ने बनाया, तो कांग्रेस के कई नेताओं ने भी उनका साथ दिया। 2014 में वाल्मीकि समुदाय के पार्षद को मेयर बनाने का नहीं मिला बंसल को फायदा
साल 2014 में लोकसभा चुनाव हुए थे। उस समय कांग्रेस के मेयर हरफूल चंद कल्याण थे, लेकिन इसके बावजूद वे वाल्मीकि समुदाय के वोट अपनी पार्टी के उम्मीदवार पवन बंसल के पक्ष में लाने में कामयाब नहीं हुए। उस समय वाल्मीकि समुदाय का वोट बैंक आप की गुल पनाग ले गई थी। जबकि इससे पहले के नगर निगम के कार्यकाल में कांग्रेस ने आरक्षित वर्ग के लिए तय मेयर चुनाव में नॉन वाल्मीकि को ही उम्मीदवार बनाया था, उस समय कांग्रेस चुनाव जीत गई। दो बार कांग्रेस की ओर से आरक्षित वर्ग की कैटेगरी में कमलेश मेयर बनीं, जबकि वह वाल्मीकि समुदाय से संबंध नहीं रखती हैं। वोट बैंक के कारण ही सेग्रीगेशन सिस्टम शुरू नहीं हुआ
वोट बैंक की राजनीति के कारण शहर में सूखे और गीले कचरे का सेग्रीगेशन सिस्टम अभी तक शुरू नहीं हो पाया, क्योंकि शहर में 90 प्रतिशत से ज्यादा डोर-टू-डोर गारबेज कलेक्टर वाल्मीकि समुदाय से संबंध रखते हैं और पिछले साल नगर निगम इन लोगों को अस्थायी कर्मचारी बनाकर अपने अंतर्गत लेकर यह सिस्टम शुरू करना चाहता था, लेकिन इसके लिए इनके नेता तैयार नहीं हुए। जबकि इस मुद्दे पर भाजपा पार्षदों में जमकर गुटबाजी उभरकर सामने आई थी। शहर स्वच्छता सर्वेक्षण में पिछड़ गया, इसके बावजूद भाजपा के टंडन गुट ने डोर-टू-डोर गारबेज कलेक्टरों का साथ दिया। यहां तक कि शहर के सफाई कर्मचारी भी अधिकतर वाल्मीकि समुदाय के हैं। इसलिए नगर निगम में सफाई कर्मचारी यूनियन की मांगों पर हर दल प्रमुखता से चर्चा करता है। शहर की कॉलोनियों में वाल्मीकि समुदाय के लोग रहते हैं। सबका दावा : हमारे साथ आएगा यह समुदाय
-मेयर राजेश कालिया का कहना है कि कांग्रेस ने वाल्मीकि समुदाय को हमेशा एक वोट बैंक की तरह ही प्रयोग किया है, जबकि उनके लिए कुछ नहीं किया। यह अब शहर के वाल्मीकि मतदाताओं को समझ आ गया है। ऐसे में भाजपा ही वाल्मीकि समुदाय के लोगों की समस्याएं दूर कर सकती है, इसलिए इस बार वाल्मीकि मतदाता ने तय कर लिया है कि वह भाजपा उम्मीदवार को ही वोट डालकर जीताएंगे।
-कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप छाबड़ा का कहना है कि कांग्रेस हमेशा ही वाल्मीकि समुदाय के साथ उनकी हर समस्या के साथ खड़ी रही है। इसलिए सबसे ज्यादा वाल्मीकि समुदाय के नेता और कार्यकर्ता कांग्रेस में हैं। इस बार वाल्मीकि समुदाय की बदौलत पार्टी चुनाव जीतने जा रही है।
-आप के उम्मीदवार हरमोहन धवन का कहना है कि साल 2014 की तरह ही उनकी पार्टी को वाल्मीकि समुदाय का वोट मिलेगा। समुदाय के लोग उनके अपने हैं, वे हमेशा ही उनके सुख और दुख के साथ खड़े रहे हैं।