पर्दे के पीछे: चंडीगढ़ में किसान संगठनों की बैठक में आखिर यह मैडम कौन थी, पढ़ें पंजाब की और भी खबरें
पंजाब के किसान संगठनों की एक महिला आ गई। लेकिन यह कौन थी इसके बारे में न मीडियाकर्मियों को पता चला और न किसान संगठनों। आइए साप्ताहिक कॉलम पर्दे के पीछे के जरिये कुछ ऐसी ही रोचक खबरों पर नजर डालते हैं।
चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। कृषि कानूनों के खिलाफ 29 किसान संगठनों की मीटिंग में लगातार दो बार एक महिला के शामिल होने से माहौल गर्माया हुआ है। किसान संगठन उसे मीडिया कर्मी और मीडिया कर्मी उसे किसान संगठन की कार्यकर्ता मानते रहे। उनकी जैकेट पर भाकियू का बैच लगा हुआ था। दिल्ली में खेती सचिव से मीटिंग में शामिल होने की तैयारी के लिए चल रही मीटिंग में अचानक वह दरवाजा खोलकर अंदर घुस गईं।
किसानों ने उन्हें मीडिया कर्मी समझकर बाहर निकाल दिया तो वह बाहर मीडिया कर्मियों से बोलीं, मैं ये पता करने गई थी कि कहीं किसान गलत फैसला तो नहीं ले रहे। 15 अक्टूबर को वह फिर से पत्रकार वार्ता के दौरान अंदर आ गईं और सवाल पूछने लगीं तो बवाल मच गया। किसानों और मीडिया कर्मियों ने उन्हें बाहर का रास्ता तो दिखा दिया, लेकिन अब तक यह पता नहीं चल रहा है कि आखिर वह मैडम हैं कौन?
आखिर खुल ही गए स्कूल
पंजाब में स्कूलों को खोलने के लिए परस्पर विरोधी बयान आ रहे थे। ऐसे में अभिभावकों को समझ में ही नहीं आ रहा कि बच्चों को स्कूल भेजना है कि नहीं। पहले शिक्षा सचिव ने भारत सरकार के निर्देशों पर स्कूल खोलने का सकरुलर जारी कर दिया। उसी दिन शिक्षा मंत्री का बयान आ गया कि स्कूल अभी नहीं खुलेंगे।
उन्होंने कहा कि यह बच्चों का मामला है। जब तक कोविड सही नहीं होता तब तक बच्चों को स्कूल नहीं आने दिया जाएगा। शिक्षा मंत्री तीन-चार दिन अपने इसी बयान पर अड़े रहे तो मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने स्कूलों को खोलने का आदेश जारी कर दिया। लिहाजा, सिंगला को भी कहना पड़ा कि स्कूल खोले जा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी एसओपी के तहत स्कूलों को खोला जा रहा है। प्राइवेट स्कूलों ने तो शिक्षा मंत्री के बयान का इंतजार किए बिना स्कूल खोल दिए।
राष्ट्रपति शासन का डर
कृषि कानूनों को लेकर किसानों ने कड़ा रुख अपनाया हुआ है। ट्रेनें चलने नहीं दी जा रहीं। किसानों को मनाने के लिए मुख्यमंत्री भी कई अपीलें कर चुके हैं। उन्होंने 29 सितंबर को सभी किसान यूनियनों से बात भी की और कहा कि वह जल्द ही केंद्रीय कानूनों को प्रभावहीन करने के लिए विधानसभा का स्पेशल सेशन बुला नया बिल पास करेंगे। केंद्रीय कानूनों के खिलाफ बिल लाना राज्य सरकार को महंगा पड़ सकता है। केंद्र की बात न मानने पर पंजाब में राष्ट्रपति शासन भी लगाया जा सकता है। यह बात भी सामने आई कि इसी कारण मुख्यमंत्री जो एक हफ्ते के अंदर बिल लाने वाले थे, अचानक पीछे हटते दिखाई दिए। कई सीनियर मंत्रियों ने उन्हें पीछे न हटने को कहा तो कैप्टन ने बिल लाने के लिए मन बना लिया। इसको इतना गुप्त रखा गया कि बिल को टाइप भी अफसरों ने अपने स्टैनो से न करवाकर खुद किया।
ऐसे कैसे होगा मसला हल
तीन कृषि कानूनों को लेकर पिछले 25 दिन से रेल ट्रैक पर बैठे किसानों और केंद्र सरकार के बीच बात सिरे नहीं चढ़ रही है। 14 अक्टूबर को किसानों को बातचीत के लिए बुलाया, लेकिन वहां कोई मंत्री नहीं आया। उसी दिन, केंद्र सरकार ने अपने आठ मंत्रियों की ड्यूटी किसानों को समझाने के लिए लगाई, जो किसान आंदोलनरत हैं उनसे मिलने के लिए तो कोई मंत्री नहीं आया और जो आंदोलन नहीं चला रहे हैं उन्हें केंद्रीय मंत्री समझाने में लगे हुए हैं। ऐसे में कैसे मसले का हल होगा। जिन आठ मंत्रियों की ड्यूटी किसानों को समझाने के लिए लगाई हुई है वे भी किसानों से दूरी बनाकर वर्चुअल बैठकें कर रहे हैं। किसी भी मंत्री ने इतनी हिम्मत नहीं जुटाई कि वह किसान संगठनों को बुलाकर उनसे सीधी बातचीत करता और उनकी आशंकाओं को दूर करता। ऐसे हालात में इस मसले का हल कैसे होगा?