लोन के नाम पर बैंकों से करोड़ों ठगने वालों को मिली जमानत
लोन देने के नाम पर आंध्रा बैंक से करोड़ों की ठगी के मामले में आरोपित शेख हुसैन और उज्ज्वल सिंह ने सीबीआइ की विशेष अदालत में जमानत याचिका लगाई थी।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : लोन देने के नाम पर आंध्रा बैंक से करोड़ों की ठगी के मामले में आरोपित शेख हुसैन और उज्ज्वल सिंह ने सीबीआइ की विशेष अदालत में जमानत याचिका लगाई थी। इस जमानत याचिका को अदालत ने एक लाख रुपये (हर शिकायत पर) मंजूर करते हुए उन्हें इस केस से जुड़े हर व्यक्ति से दूर रहने का आदेश दिया। दोनों आरोपितों पर विभिन्न धाराओं के तहत केस चल रहा है। दोनों आरोपितों पर आंध्रा बैंक के तत्कालीन डिप्टी जनरल मैनेजर निशीथ भूषण नायक की शिकायत पर केस दर्ज किया गया था। इस केस में एचपी इंटरनेशनल के निशांत कुमार, कंपनी के प्रोपराइटर सुनील कुमार बंसल और कंस्ट्रक्शन कंपनी गरीब नवाज पर भी केस दर्ज किया गया था। शिकायत में निशीथ ने बताया था कि आरोपित निशांत कुमार ने समय-समय पर स्वीकृत नियमों और शर्तों का उल्लंघन करते हुए अन्य बैंकों के खाते में फंड को डायवर्ट कर दिया था। हालांकि निशांत कुमार फर्म का मालिक है, लेकिन खाते के संचालन में प्रमुख व्यक्ति सुनील कुमार बंसल है जोकि गरंटर है। आरोपित फर्म ने 31 मार्च 2016 को आडिट बैलेंसशीट सहित आंध्रा बैंक को विभिन्न जाली और झूठे दस्तावेज जमा किए थे। इस तरह शाखा अधिकारियों की मिलीभगत से नौ बिलों के संबंध में 411.98 लाख रुपये की बिल छूट का लाभ मिला था। जब पूरा मामला चल रहा था उस समय शेख हुसैन संबंधित बैंक का ब्रांच मैनेजर था और उज्ज्वल सिंह वहीं कार्य करता था। उच्च अधिकारियों की सलाह के बिना लोन नहीं होता पास
सुनवाई के दौरान आरोपितों के वकीलों ने दलील दी कि दोनों को इस केस में झूठा फंसाया गया है। आरोपित बैंक का अधिकारी था और इस पूरी घटना में उसकी कोई भूमिका नहीं थी। उसने कभी भी व्यक्तिगत रूप से लोन से जुड़ा कोई भी निर्णय नहीं लिया। सीबीआइ या फिर पुलिस आरोपित को आज तक गिरफ्तार नहीं कर सकी है। ऋण संबंधी जो भी पूछताछ थी वह पहले ही वसूल की जा चुकी है। जज ने उठाए सीबीआइ की कार्यप्रणाली पर सवाल
जमानत याचिका पर फैसला करते हुए सीबीआइ के जज ने कहा कि वर्तमान मामले में सीबीआइ ने कभी भी आरोपित को किसी भी स्तर पर गिरफ्तार करने की आवश्यकता महसूस नहीं की। वहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दर्शाता हो कि इस अवधि के दौरान, आरोपित ने सहयोग नहीं किया या जांच में बाधा डालने का कोई प्रयास किया। इसलिए आरोपित को हिरासत में भेजने से कोई फायदा नहीं होगा।