Hindi Diwas: पंजाब में कुछ चेहरे ऐसे जो पंजाबी के साथ हिंदी को संवारने का कर रहे काम
पंजाब में कुछ ऐसे चेहरे भी हैं जो पंजाबी भाषा को उचित सम्मान दिलाने के साथ-साथ हिंदी को संवारने का काम भी कर रहे हैं।
जेएनएन, जालंधर। पंजाब उत्तर भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसका गठन भाषा के आधार पर हुआ। पंजाबी भाषा को सम्मान दिलाने के लिए पंजाब में समय-समय पर बड़े आंदोलन भी हुए। आज भी सड़कों के साइन बोर्ड की बात हो या स्कूलों के सिलेबस की, पंजाबी को प्राथमिकता देने की जोरदार वकालत होती है, लेकिन इस सब के बीच कुछ ऐसे चेहरे भी हैं, जो पंजाबी भाषा को उचित सम्मान दिलाने के साथ-साथ हिंदी को संवारने का काम भी कर रहे हैं। आज हम आपको ऐसे लोगों के प्रयासों से अवगत करवा रहे हैं, जिन्होंने मातृ भाषा पंजाबी होने के बावजूद हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए बड़ा योगदान दिया है।
पाठ्यक्रम में शामिल हुईं हिंदी में लिखी पुस्तकें
-डॉ. हरमिंदर सिंह बेदी, चांसलर, हिमाचल प्रदेश सेंट्रल यूनिवर्सिटी
अमृतसर स्थित गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी (जीएनडीयू) से बतौर हिंदी विभागाध्यक्ष रिटायर हुए डॉ. हरमिंदर सिंह बेदी की शुरू से ही पंजाबी साहित्य में रुचि थी। पढऩे-लिखने का दायरा बढ़ा तो हिंदी साहित्य से भी लगाव हो गया। बेदी कहते हैं, 'हिंदी भाषा पढऩे-लिखने से मुझे पंजाबी साहित्य को राष्ट्रीय पहचान दिलाने का सौभाग्य मिला। हिंदी हमें देश के हर प्रांत से जोडऩे का काम करती है। इस भाषा की विरासत को मैं प्रणाम करता हूं।' इसी भाषा के चलते देश के नामी हिंदी लेखकों में उनका नाम शामिल हो पाया है।
उन्होंने प्रथम स्वच्छंदतावादी उपन्यासकार बाबू ब्रजनंदन सहाय, गुरु गोबिंद सिंह और पंजाब का हिंदी वीर साहित्य, गांधी दर्शन और विचार, पंजाब का हिंदी भक्ति साहित्य आदि किताबों का हिंदी में अनुवाद किया। इसके अलावा पंजाब के हिंदी 'साहित्य का इतिहास' किताब लिखी। गर्म लोहा, पहचान की यात्रा, किसी और दिन एक कविता संग्रह उनकी हिंदी साहित्य को बड़ी देन हैं। उनकी लिखी निबंध निकुर, प्रथम भाषा हिंदी, गद्य-त्रिविधा, काव्य गरिमा, कथायन, विधा विविधा, काव्यायन, एकांकी संचयन, संवेदना की साखी, आस्था के स्वर, गुरुवाणी-प्रकाश, पंचनद, सप्त सिंधु जैसी पुस्तकें विभिन्न कक्षाओं के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। वह हिंदी पर कई शोध-पत्र पेश कर चुके हैं।
सम्मान: केंद्र य हिंदी संस्थान का गंगाशरण सिंह पुरस्कार, शिरोमणि हिंदी साहित्यकार-2004 व राष्ट्रपति से हिंदी साहित्य में योगदान के लिए सम्मानित। गर्म लोहा काव्य संग्रह पर राष्ट्रीय पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिंदी साहित्य परिषद द्वारा कवि रत्न की उपाधि दी गई। हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग इलाहाबाद की ओर से साहित्य महोपाध्याय-2003 व पंजाब हिंदी साहित्य अकादमी पुरस्कार-2003 से सम्मानित किया गया।
फॉन्ट बनाकर बढ़ाई हिंदी की पहुंच
-डॉ. नरेश धीमान, प्रिंसिपल दोआबा कॉलेज, जालंधर
डॉ. नरेश धीमान ने हिंदी भाषा के प्रचार में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने भारती नाम से हिंदी फॉन्ट बनाकर कंप्यूटर के युग में हिंदी की पहुंच काफी दूर तक कर दी। अब तक कई किताबें लिख चुके धीमान काफी समय से हिंदी के प्रचार-प्रसार में जुटे हैं। उनका कहना है कि हिंदी दिवस को भारतीय भाषा दिवस के रूप में मनाना चाहिए। हिंदी का विकास केबल भारतीय भाषाओं के साथ ही है। मैंने अपने इस्तेमाल के लिए भारती हिंदी फॉन्ट बनाया था, जो चाणक्य की तरह ही था। अब यह काफी प्रचलित हो गया है।
किताबें लिख विद्यार्थियों को दे रहीं सीख
-डॉ. विनोद कालरा, अध्यक्ष हिंदी विभाग, कन्या महाविद्यालय, जालंधर
डॉ. विनोद कालरा हिंदी भाषा पर छह किताबें लिख चुकी हैं। उनकी एक और किताब आने वाली है। इन किताबों के माध्यम से वह विद्यार्थियों को भाषा, साहित्य व व्याकरण की सीख दे रही हैं। वो हिंदी में कविताएं व कहानी लेखन के मुकाबले करवाती हैं। उनका कहना है कि हिंदी के प्रसार को देखकर बहुत प्रसन्नता होती है। यह भाषा हमारी पहचान है।
हिंदी की मुखर आवाज
-प्रोफेसर बलवेंद्र सिंह, डीएवी कॉलेज, जालंधर
प्रो. बलवेंद्र सिंह हिंदी के बड़े समर्थक हैं। वह कहते हैं डिस्कवरी, बीबीसी, नेशनल जियोग्राफिक आदि चैनलों पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम हिंदी की लगातार बढ़ती लोकप्रियता का प्रमाण हैं। इन बातों ने भारत में होने वाले हिंदी-विरोध की पोल खोल दी है। हिंदी अब विश्वभाषा है। वह हिंदी का विरोध करने वालों के खिलाफ मुखर होकर बोलते हैं। जहां भी हिंदी भाषा से संबंधित कोई कार्यक्रम होता है, वहां पहुंच जाते हैं। समय-समय पर भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए कार्यक्रम करवाते हैं।
नई पीढ़ी में हिंदी लेखन को बढ़ावा
-मोहन सपरा, ल खक, नकोदर
मोहन सपरा पंजाबी के साथ-साथ हिंदी के लेखन को भी बढ़ावा दे रहे हैं। आने वाली पीढ़ी को इसके लिए तैयार कर रहे हैं। विभिन्न विषयों पर उनकी आठ किताबें हिंदी में प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हीं के कारण संगरूर, नकोदर, नूरमहल, मलसीयां, शाहकोट व आस पास के क्षेत्रों में हिंदी का काफी प्रसार हुआ है। यहां हिंदी को काफी प्यार मिल रहा है। वे कहते हैं, हिंदी हमारी राज भाषा है। इसके लिए ज्यादा फिक्रमंद होने की जरूरत है। यह हमारी ताकत है। (इनपुुुट: हरदीप रंधावा- अमृतसर, प्रियंका सिंह- जालंधर)