लगातार कम होती पसीने की कीमत, कलाकार ने कैनवास पर उतारा किसानों के दर्द
किसान द्वारा उगाए जाने वाले आलू और टमाटर को विषय लेते हुए मनजोत ने कोल्ड स्टोरेज और सरकार की नीतियों पर सवाल उठाया है।
By Edited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 08:33 PM (IST)Updated: Tue, 23 Apr 2019 03:03 AM (IST)
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। मिट्टी में मिट्टी होने वाले किसान के दर्द को कैनवास पर एक अलग तरीके से उतारा है। इसमें आपको उनकी मेहनत के अलावा आसपास के जीवन की भी छटा मिलती है। पंजाब कला भवन-16 में सोमवार से शुरू हुई प्रदर्शनी पैराडॉक्सली एबसर्ड में कुछ ऐसा ही अनुभव होता है। पंजाब ललित कला अकादमी द्वारा आयोजित इस प्रदर्शनी में आर्टिस्ट मनजोत कौर ने किसान के दर्द को अपने ही अंदाज में बयां किया है।
टमाटर और आलू के भाव कौन जाने
किसान द्वारा उगाए जाने वाले आलू और टमाटर को विषय लेते हुए मनजोत ने कोल्ड स्टोरेज और सरकार की नीतियों पर सवाल उठाया है। जिसमें जार पर पड़े टमाटर सड़ रहे हैं, मगर खरीदार गायब हैं। ये टमाटर मार्केट में नहीं उतरे और किसान द्वारा उगाई मेहनत ऐसे ही बेकार जा रही है। ऐसे ही आलू हैं, जो मंडी में इतने पहुंचे हैं कि गरीब किसान उन्हें इतने दाम में बेच रहा है, जितने के दूसरी खेती के लिए बीज भी नहीं खरीद पाए।
इसके अलावा तांबे के बर्तन जो पंजाब की शान है, वो भी इसमें खस्ता हालत में दिखाए गए। मनजोत ने इन्हें डिटर्जेंट के द्वारा खस्ता हालत में दिखाया। उनका विचार गांव के पारंपरिक तरीके से धुलने वाले बर्तनों के केमिकल युक्त डिटर्जेट से धुलने की हालत को बयां किया। आंखें जो देखती हैं तबाही को मनजोत ने कई मल्टीमीडिया से जुड़े आर्ट वर्क को पेश किया। जिसमें खुली आंखों से न दिखने वाले ऐसे रोग, जो जल्द ही मनुष्य को खत्म कर देंगे, शामिल रहे। इसके अलाव दीवारों पर टंगी लाखों आखें, जो देख सब कुछ रही हैं, मगर कर कुछ नहीं सकती क्योंकि उनके हाथ ही नहीं है।
मनजोत ने कहा कि उनके सभी कामों में एक बेबसी है। जिसमें हम देख तो सब रहे हैं मगर कर कुछ नहीं सकते। एक कलाकार के रूप में मैं वो बेबसी तोड़ना चाहती हूं। हमारी आबादी लगातार बढ़ रही है, ऐसे में हमें समय रहता कुछ सोचना होगा। ऐसे में किसान और आम इंसान दोनों को ही मिलकर इस कुदरत को समझते हुए इसके लिए जीना होगा।
टमाटर और आलू के भाव कौन जाने
किसान द्वारा उगाए जाने वाले आलू और टमाटर को विषय लेते हुए मनजोत ने कोल्ड स्टोरेज और सरकार की नीतियों पर सवाल उठाया है। जिसमें जार पर पड़े टमाटर सड़ रहे हैं, मगर खरीदार गायब हैं। ये टमाटर मार्केट में नहीं उतरे और किसान द्वारा उगाई मेहनत ऐसे ही बेकार जा रही है। ऐसे ही आलू हैं, जो मंडी में इतने पहुंचे हैं कि गरीब किसान उन्हें इतने दाम में बेच रहा है, जितने के दूसरी खेती के लिए बीज भी नहीं खरीद पाए।
इसके अलावा तांबे के बर्तन जो पंजाब की शान है, वो भी इसमें खस्ता हालत में दिखाए गए। मनजोत ने इन्हें डिटर्जेंट के द्वारा खस्ता हालत में दिखाया। उनका विचार गांव के पारंपरिक तरीके से धुलने वाले बर्तनों के केमिकल युक्त डिटर्जेट से धुलने की हालत को बयां किया। आंखें जो देखती हैं तबाही को मनजोत ने कई मल्टीमीडिया से जुड़े आर्ट वर्क को पेश किया। जिसमें खुली आंखों से न दिखने वाले ऐसे रोग, जो जल्द ही मनुष्य को खत्म कर देंगे, शामिल रहे। इसके अलाव दीवारों पर टंगी लाखों आखें, जो देख सब कुछ रही हैं, मगर कर कुछ नहीं सकती क्योंकि उनके हाथ ही नहीं है।
मनजोत ने कहा कि उनके सभी कामों में एक बेबसी है। जिसमें हम देख तो सब रहे हैं मगर कर कुछ नहीं सकते। एक कलाकार के रूप में मैं वो बेबसी तोड़ना चाहती हूं। हमारी आबादी लगातार बढ़ रही है, ऐसे में हमें समय रहता कुछ सोचना होगा। ऐसे में किसान और आम इंसान दोनों को ही मिलकर इस कुदरत को समझते हुए इसके लिए जीना होगा।
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