जो प्रकृति को महसूस न करे, वह साहित्यकार नहीं
टेक्नोलॉजी साहित्य के लिए सही नहीं है।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : टेक्नोलॉजी साहित्य के लिए सही नहीं है। आज के साहित्यकार टेक्नोलॉजी से जुगाड़ करके काम करते हैं। लेकिन वास्तविकता है कि जो प्रकृति को महसूस नहीं कर सकता, वह कभी भी बेहतर साहित्यकार नहीं बन सकता है। यह विचार नेशनल साहित्य अकादमी के पूर्व चेयरमैन प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहे। प्रो. तिवारी शनिवार को पंजाब कला भवन सेक्टर-16 में आयोजित वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह के लिए शहर पहुंचे थे। चंडीगढ़ साहित्य अकादमी की तरफ से आयोजित वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह में शहर के 20 कलाकारों को सम्मानित किया गया। जिसमें पांच साहित्यकारों को अवॉर्ड ऑफ रिकगनाइजेशन और 15 को बेस्ट बुक ऑफ द ईयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। जबकि 15 साहित्यकारों को लेखनी में प्रोत्साहन देने के लिए 15-15 हजार रुपये कैश अवॉर्ड दिया गया। मिथकों के सहारे फैसले क्यों
प्रो. विश्वनाथ ने कहा कि भारत में संविधान होने के बाद भी मिथकों के सहारे फैसले लिए जाते हैं। इसका कारण हमारे संस्कार हैं। युवा पढ़े-लिखे होने के बाद भी अपने परिवार की पुरानी मान्यताओं को मानते हैं। मिथकों से लिए गए फैसले गलत नहीं हैं, बशर्ते उसे सही तरीके से अमल में लाया जाए। साहित्य पर बोलते हुए कहा कि भारत में साहित्य एक पक्षी की मौत से शुरू हुआ था और आज वही साहित्य पूरे विश्व में धाक रखता है। इसके बाद उन्होंने साइंस पर कहा कि जो तथ्य साइंस ने 50 या 70 साल पहले सिद्ध किए, उसे संत कबीर ने अपने काल में ही साबित कर दिया था। ऐसे में मिथकों का सहारा गलत नहीं है। जाति-पाति और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाला धार्मिक नहीं
धर्म पर प्रो. तिवारी ने कहा कि आज के समय में समाज में जाति-पाति, ऊंच-नीच और संप्रदाय के नाम पर एक-दूसरे से भेदभाव किया जाता है। राजनेता उनका फायदा भी उठाते हैं, लेकिन एक साहित्यकार की दृष्टि में या फिर साहित्य की दृष्टि में वह इंसान धार्मिक नहीं। धार्मिक इंसान सिर्फ इंसानियत को देखता है, वह जाति-धर्म और ऊंच-नीच के नाम पर कभी भी तोड़ने का प्रयास नहीं करते है। वहीं शारीरिक यातना देना ही हिसा की श्रेणी में नहीं आता, बल्कि किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना भी हिसा है, जोकि एक साहित्यकार ही समझ सकता है। अवॉर्ड ऑफ रिकगनाइजेशन पाने वाले साहित्यकारों से बातचीत
डॉ. ओपी वशिष्ठ : पंजाब यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ पंजाबी स्टडी से सेवानिवृत्त हैं। सेवानिवृत्ति के बाद डॉ. ओपी ने तीन किताबें पंजाबी भाषा में लिखी हैं, जबकि करीब आठ पुस्तकों का ट्रांसलेशन किया है। ट्रांसलेशन की सारी पुस्तकें इंग्लिश भाषा में थी, जिन्हें पंजाबी में ट्रांसलेट किया गया है। डॉ. वशिष्ठ ने कहा कि यह अवॉर्ड पंजाबी भाषा और साहित्य के लिए हैं। पंजाबी हमारी मां बोली है, उसके लिए कुछ करने के जज्बे ने लिखने के लिए प्रेरित किया। डॉ. प्रसून प्रसाद : पंजाब यूनिवर्सिटी के हिदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्होंने बताया कि लिखने का शौक मुझे दसवीं क्लास से ही शुरू हो गया था। उस समय मुझे पता नहीं था कि साहित्य कैसे लिखा जाता है, लेकिन जब साहित्य को लिखा तो अनुभव हुआ कि यह काम काफी रोचक है। इससे कई लोगों की सोच को शांतिपूर्वक ढंग से बदला जा सकता है। उनकी साहित्य रचना पापा को बहुत ज्यादा पसंद किया गया है। तेजवंत सिंह गिल : गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर से वर्ष 1998 में सेवानिवृत्त हुए थे। उसके बाद अब तक 12 इंग्लिश साहित्य में पुस्तकों की रचना कर चुके हैं। पंजाबी की 12 पुस्तकों का भी इंग्लिश में ट्रांसलेशन किया जा चुका है। पंजाबी साहित्य को ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़ें, इसके लिए इस साहित्य को लिखा है। चमन आहूजा : पंजाब यूनिवर्सिटी के इंग्लिश डिपार्टमेंट से सेवानिवृत्त हुए हैं। सेवानिवृत्त होने के बाद थिएटर से जुड़े हैं और अब तक 7 ऊर्दू की पुस्तकों को लिख चुके हैं। उन्होंने कहा कि मेरी लेखनी में फिक्र को जगह दी गई है। मैं जो अहसास करता हूं, वही लिखता हूं। एक समय था, जब मैं धर्म के बारे में सोचता था तो उसे लिखता है और अभी मैं मौत के बारे में सोचता हूं तो भी मौत पर ही लिखता हूं। वीके अलंकार : संस्कृत के विद्वान हैं। वीके अलंकार ने अभी तक 7 पुस्तकें संस्कृत में कविताओं पर लिखी हैं। कविताएं रोमांटिक हैं, क्योंकि रोमांस की शुरुआत वैदिक ग्रंथों से मिलती है। संस्कृत का अंत न हो, इसके लिए इस भाषा में लेखन करता हूं। इन्हें मिला बेस्ट बुक ऑफ द ईयर अवॉर्ड
इंग्लिश भाषा में नोवेल लिखने के लिए मशा कौर, हिदी में नोवेल के लिए शशि प्रभा, पोएट्री में अमरजीत अमर, कहानी में प्रज्ञा शारदा, बाल साहित्य में अनीता सुरभि, ट्रांसलेशन में जंग बहादुर, पंजाबी भाषा में बाल साहित्य के लिए दलजीत कौर सैनी, नोवेल के लिए नरेंद्र पाल सिंह, पोएट्री के लिए सुभाष शर्मा, ट्रांसलेशन के लिए अरविदर जोहल, ऊर्दू में पोएट्री के लिए प्रो. एसएस भट्टी को सम्मानित किया गया।