इन कर्मयोगियों का अनुशासन लोगों के लिए है मिसाल Chandigarh News
सुबह की शुरुआत आमतौर पर हर किसी की अखबार और चाय की चुस्कियों से होती है।
By Edited By: Published: Sat, 24 Aug 2019 03:21 PM (IST)Updated: Sun, 25 Aug 2019 02:35 PM (IST)
चंडीगढ़ [डॉ. सुमित सिंह श्योराण]। सुबह की शुरुआत आमतौर पर हर किसी की अखबार और चाय की चुस्कियों से होती है। जिस दिन अखबार समय पर न पहुंचे तो बैचेनी बढ़ जाती है लेकिन दिन की शुरुआत को खास बनाने वाले कर्मयोगियों की ड्यूटी बेहद कठिन और अनुशासित होती है, साल का कोई भी दिन या मौसम हो। अखबार को पाठकों तक पहुंचाने का जिम्मा इन्हीं कर्मठयोगियों के जिम्मे होता है जिस वक्त पूरा शहर नींद में होता है। ये कर्मयोगी अखबार की दुनिया में खोए होते हैं।
शहर के समाचार पत्र सेंटरों पर सुबह का नजारा ही कुछ अलग होता है। कड़कती ठंड हो या बरसात, इनके लिए हमेशा ही मौसम एक जैसा है। पाठकों तक अखबार पहुंचाने के लिए कर्मयोगी परिवार के सुख-दुख को भी भूल जाते हैं। कई बार तो परिवार में बड़े हादसे के बाद भी यह अपने पेशे को तवज्जो देते हैं। इस पेशे में 18 साल से लेकर 70 की उम्र के कर्मयोगी जुटे हुए हैं। जिनकी दिनचर्या सुबह चार से शुरू होकर नौ बजे तक जारी रहती है। दैनिक जागरण ने चुपचाप अपने काम को अंजाम देने के लिए इन कर्मयोगियों के लाइफ स्टाइल के बारे में करीब से जानने की कोशिश की। कई अपने शौक के कारण तो कुछ परिवार को आर्थिक सहायता देने के लिए कर्मयोगी की भूमिका निभा रहे हैं। दैनिक जागरण ने सुबह-सवेरे कुछ ऐसे ही कर्मयोगियों से खास बातचीत कर उनकी दिनचर्या और इस प्रोफेशनल से जुड़ने अनुभवों के बारे में बातचीत की।
कर्मयोगी जयराम।
45 साल से लगातार जारी है पाठकों तक अखबार पहुंचाना : जयराम
सेक्टर-37 मार्केट में सुबह के पांच बजे हैं। यहां पर 73 साल के कर्मयोगी जयराम को हर कोई नमस्कार कर रहा है। पाठकों तक अखबार पहुंचाने वाले जयराम बीते 45 साल से यह काम कर रहे हैं। एजी ऑफिस से रिटायर कर्मचारी जयराम कहते हैं पहले तो कुछ पैसे कमाने के लिए यह काम शुरू किया लेकिन बाद में यही मेरा शौक बन गया। उन्होंने कहा कि इतने साल में उन्होंने बहुत ही कम मौकों पर छुट्टी की है, अपनी रूटीन के बारे में बताते हैं कि सुबह 3.30 बजे उठते हैं, इसके बाद 4.30 बजे तक समाचारपत्र सेंटर पर पहुंचकर अपना काम शुरू कर देते हैं। जयराम ने बताया कि 7.30 बजे तक अपना काम खत्म कर घर लौट जाते हैं। परिवार में दो बेटियां और बेटा है। जयराम बताते हैं कि सुबह जल्दी उठने के कारण स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता है।
कर्मयोगी मनीष कुमार।
पढ़ाई के लिए खुद निकाल रहे खर्च : मनीष
मलोया निवासी 18 साल का मनीष कुमार 12वीं पास कर बीए की पढ़ाई कर रहा है। सुबह समाचारपत्र सेंटर पर मनीष सुबह 4.30 बजे पहुंच जाता है। उन्होंने बताया कि दो साल से वह कर्मयोगी हैं। उनके नाना कृष्ण लाल बीते काफी साल से अखबारों के साथ जुड़े हुए हैं, उन्हें भी अब इस काम में मजा आता है। सुबह 4.30 बजे उठना पड़ता है, शुरुआत में कुछ परेशानी हुई लेकिन अब तो यह रूटीन का हिस्सा बन गया है। हर रोज 200 के करीब अखबार लोगों तक पहुंचाते हैं। इस काम से उनका पढ़ाई का खर्च आसानी से निकल जाता है, साथ ही सुबह उठने की आदत से तंदरूस्ती भी बनी रहती है। दैनिक जागरण की कर्मयोगी स्कॉलरशिप स्कीम बहुत से जरूरतमंद बच्चों के लिए वरदान से कम नहीं है।
कर्मयोगी नीरज।
पिता की मदद के लिए शुरू किया काम : नीरज
गवर्नमेंट कॉलेज-11 में बीए दूसरे साल के स्टूडेंट नीरज बीते छह साल से कर्मयोगी हैं। वह हर रोज तीन सौ से अधिक अखबारों की कॉपी लोगों तक पहुंचाते हैं। डड्डूमाजरा निवासी नीरज ने बताया कि वह सुबह 4.30 बजे उठते हैं और उसके बाद सेंटर पर पहुंचकर अखबार लेकर पाठकों तक पहुंचाते हैं। यह काम जितना आसान लगता है, उससे कहीं अधिक मुश्किल है, साल का कोई भी दिन हो, पाठकों को समय पर अखबार देना बड़ा चैलेंज है। नीरज के पिता इलेक्ट्रिशियन का काम करते हैं। ऐसे में बेटा कर्मयोगी बन उनकी भी मदद करना चाहता है।
कर्मयोगी पारस अग्रवाल।
इस काम ने मुझे फिजिकली फिट किया : पारस अग्रवाल
21 साल के पारस सेक्टर-37 में कर्मयोगी हैं। सुबह 4.30 बजे उठना और उसके बाद समाचारपत्र सेंटर पर पहुंचना। बीए फाइनल कर रहे हैं। कुछ समय पहले ही उन्होंने यह काम शुरू किया है। लेकिन उन्हें इसमें खुशी मिलती है। पारस थिएटर में भी काफी रूचि रखते हैं। उनकी ज्वाइंट फैमिली है। ऐसे में इस काम से वह अपना जेब खर्च भी निकाल लेते हैं। दैनिक जागरण से बातचीत में पारस ने कहा कि काम कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता, उनका मानना है कि मेहनत से हर मुकाम हासिल किया जा सकता है। पारस पूर्व राष्ट्रपति और देश के जाने माने साइंटिस्ट डॉ. अब्दुल कलाम से काफी प्रभावित हैं।
शहर के समाचार पत्र सेंटरों पर सुबह का नजारा ही कुछ अलग होता है। कड़कती ठंड हो या बरसात, इनके लिए हमेशा ही मौसम एक जैसा है। पाठकों तक अखबार पहुंचाने के लिए कर्मयोगी परिवार के सुख-दुख को भी भूल जाते हैं। कई बार तो परिवार में बड़े हादसे के बाद भी यह अपने पेशे को तवज्जो देते हैं। इस पेशे में 18 साल से लेकर 70 की उम्र के कर्मयोगी जुटे हुए हैं। जिनकी दिनचर्या सुबह चार से शुरू होकर नौ बजे तक जारी रहती है। दैनिक जागरण ने चुपचाप अपने काम को अंजाम देने के लिए इन कर्मयोगियों के लाइफ स्टाइल के बारे में करीब से जानने की कोशिश की। कई अपने शौक के कारण तो कुछ परिवार को आर्थिक सहायता देने के लिए कर्मयोगी की भूमिका निभा रहे हैं। दैनिक जागरण ने सुबह-सवेरे कुछ ऐसे ही कर्मयोगियों से खास बातचीत कर उनकी दिनचर्या और इस प्रोफेशनल से जुड़ने अनुभवों के बारे में बातचीत की।
कर्मयोगी जयराम।
45 साल से लगातार जारी है पाठकों तक अखबार पहुंचाना : जयराम
सेक्टर-37 मार्केट में सुबह के पांच बजे हैं। यहां पर 73 साल के कर्मयोगी जयराम को हर कोई नमस्कार कर रहा है। पाठकों तक अखबार पहुंचाने वाले जयराम बीते 45 साल से यह काम कर रहे हैं। एजी ऑफिस से रिटायर कर्मचारी जयराम कहते हैं पहले तो कुछ पैसे कमाने के लिए यह काम शुरू किया लेकिन बाद में यही मेरा शौक बन गया। उन्होंने कहा कि इतने साल में उन्होंने बहुत ही कम मौकों पर छुट्टी की है, अपनी रूटीन के बारे में बताते हैं कि सुबह 3.30 बजे उठते हैं, इसके बाद 4.30 बजे तक समाचारपत्र सेंटर पर पहुंचकर अपना काम शुरू कर देते हैं। जयराम ने बताया कि 7.30 बजे तक अपना काम खत्म कर घर लौट जाते हैं। परिवार में दो बेटियां और बेटा है। जयराम बताते हैं कि सुबह जल्दी उठने के कारण स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता है।
कर्मयोगी मनीष कुमार।
पढ़ाई के लिए खुद निकाल रहे खर्च : मनीष
मलोया निवासी 18 साल का मनीष कुमार 12वीं पास कर बीए की पढ़ाई कर रहा है। सुबह समाचारपत्र सेंटर पर मनीष सुबह 4.30 बजे पहुंच जाता है। उन्होंने बताया कि दो साल से वह कर्मयोगी हैं। उनके नाना कृष्ण लाल बीते काफी साल से अखबारों के साथ जुड़े हुए हैं, उन्हें भी अब इस काम में मजा आता है। सुबह 4.30 बजे उठना पड़ता है, शुरुआत में कुछ परेशानी हुई लेकिन अब तो यह रूटीन का हिस्सा बन गया है। हर रोज 200 के करीब अखबार लोगों तक पहुंचाते हैं। इस काम से उनका पढ़ाई का खर्च आसानी से निकल जाता है, साथ ही सुबह उठने की आदत से तंदरूस्ती भी बनी रहती है। दैनिक जागरण की कर्मयोगी स्कॉलरशिप स्कीम बहुत से जरूरतमंद बच्चों के लिए वरदान से कम नहीं है।
कर्मयोगी नीरज।
पिता की मदद के लिए शुरू किया काम : नीरज
गवर्नमेंट कॉलेज-11 में बीए दूसरे साल के स्टूडेंट नीरज बीते छह साल से कर्मयोगी हैं। वह हर रोज तीन सौ से अधिक अखबारों की कॉपी लोगों तक पहुंचाते हैं। डड्डूमाजरा निवासी नीरज ने बताया कि वह सुबह 4.30 बजे उठते हैं और उसके बाद सेंटर पर पहुंचकर अखबार लेकर पाठकों तक पहुंचाते हैं। यह काम जितना आसान लगता है, उससे कहीं अधिक मुश्किल है, साल का कोई भी दिन हो, पाठकों को समय पर अखबार देना बड़ा चैलेंज है। नीरज के पिता इलेक्ट्रिशियन का काम करते हैं। ऐसे में बेटा कर्मयोगी बन उनकी भी मदद करना चाहता है।
कर्मयोगी पारस अग्रवाल।
इस काम ने मुझे फिजिकली फिट किया : पारस अग्रवाल
21 साल के पारस सेक्टर-37 में कर्मयोगी हैं। सुबह 4.30 बजे उठना और उसके बाद समाचारपत्र सेंटर पर पहुंचना। बीए फाइनल कर रहे हैं। कुछ समय पहले ही उन्होंने यह काम शुरू किया है। लेकिन उन्हें इसमें खुशी मिलती है। पारस थिएटर में भी काफी रूचि रखते हैं। उनकी ज्वाइंट फैमिली है। ऐसे में इस काम से वह अपना जेब खर्च भी निकाल लेते हैं। दैनिक जागरण से बातचीत में पारस ने कहा कि काम कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता, उनका मानना है कि मेहनत से हर मुकाम हासिल किया जा सकता है। पारस पूर्व राष्ट्रपति और देश के जाने माने साइंटिस्ट डॉ. अब्दुल कलाम से काफी प्रभावित हैं।
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