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कमिश्नर को राजनीति का इतना शौक तो चुनाव लड़कर आएं सदन में : भाजपा

मेयर भाजपा का सांसद भाजपा का इसके बावजूद भाजपा के नेताओं ने नगर निगम के अधिकारियों पर कांग्रेस के साथ मिलीभगत कर काम करने का आरोप लगाया है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 10:37 PM (IST)Updated: Thu, 22 Oct 2020 05:05 AM (IST)
कमिश्नर को राजनीति का इतना शौक तो चुनाव लड़कर आएं सदन में : भाजपा

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ :

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मेयर भाजपा का, सांसद भाजपा का, इसके बावजूद भाजपा के नेताओं ने नगर निगम के अधिकारियों पर कांग्रेस के साथ मिलीभगत कर काम करने का आरोप लगाया है। भाजपा के प्रदेश महासचिव रामवीर भट्टी और चंद्रशेखर ने नगर निगम के आयुक्त पर भाजपा के कार्यकर्ताओं के साथ भेदभाव करने और कांग्रेस के प्रभाव में काम करने के गंभीर आरोप लगाया है। प्रेस को जारी एक बयान में दोनों नेताओं ने कांग्रेस पार्टी के नेताओं द्वारा नगर निगम कार्यालय को ताला लगाने की घटना पर निगम आयुक्त द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने पर उन्हें आड़े हाथों लेते हुए कहा की सरकारी इमारत पर ताला लगाने के बावजूद कांग्रेस नेताओं पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। जबकि भाजपा कार्यकर्ता निगम आयुक्त से मिलने जाते हैं तो उन्हें बेवजह इन्तजार करवाया जाता है और झूठी शिकायतें दर्ज करवाई जाती हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि निगम अधिकारियों और कांग्रेस पार्टी की मिलीभगत है और भाजपा को बदनाम करने के लिए शहर के विकास कार्यों को जानबूझकर ठप्प किया जा रहा है। ऐसे अधिकारियों को यह समझना चाहिए कि जनता की गाढ़े पसीने की कमाई से वे वेतन-भत्ता, गाड़ी-घोड़ा  और अन्य सुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं और इसके बदले में उन्हें जनकल्याण के कार्य प्राथमिकता पर करने चाहिए न कि टालमटोल का रवैया अपनाना चाहिए।  सदन की वर्चुअल बैठक का दोष कमिश्नर पर थोपा

भट्टी ने कहा कि निगम आयुक्त को नगर निगम सदन में 35 पार्षदों के बैठने से तो कोरोना संक्रमण का भय सता रहा है लेकिन निगम कार्यालय के बाहर इतने लोगों के एकत्र होने से कोरोना संक्रमण नहीं हो रहा है।मालूम हो कि मंगलवार को सदन की बैठक वर्चुअल होने का निर्णय मेयर की ओर से लिया गया था। लेकिन इसका दोष भी कमिश्नर पर थोपा गया है। निगम पार्षदों के बैठक से अनुपस्थित रहने के बारे में निगम आयुक्त द्वारा की गई टिप्पणी पर भट्टी ने कहा कि पार्षद शहर की जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि हैं और अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं, उन्हें निगम आयुक्त की सलाह की आवश्यकता नहीं है। निगम आयुक्त को राजनीति करने का यदि इतना ही शौक है तो उन्हें अपनी नौकरी से त्यागपत्र देकर जनता के बीच जाकर चुनाव लड़कर सदन में आना चाहिए ताकि उनकी सलाह पर कोई गौर करे।


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