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23 वर्षों से व्हील चेयर पर बैठे शख्‍स के बुलंद इरादे, देशभर में हाईवे पर बंद हुए शराब के ठेके

48 वर्षीय हरमन सिद्धू पिछले 23 वर्षों से व्हील चेयर पर हैं। इस दौरान उन्होंने हाईवे पर ठेकों को बंद करवाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 07 Feb 2019 09:14 AM (IST)Updated: Thu, 07 Feb 2019 09:44 AM (IST)
23 वर्षों से व्हील चेयर पर बैठे शख्‍स के बुलंद इरादे, देशभर में हाईवे पर बंद हुए शराब के ठेके
23 वर्षों से व्हील चेयर पर बैठे शख्‍स के बुलंद इरादे, देशभर में हाईवे पर बंद हुए शराब के ठेके

कुलदीप शुक्ला, चंडीगढ़। एक सड़क हादसे ने चंडीगढ़ निवासी हरमन सिद्धू की जिंदगी और सोच को बदल दिया। बेशक वे खुद हमेशा के लिए व्हीलचेयर पर बैठने को बाध्य हो गए, लेकिन उन्होंने दूसरों को ऐसे हादसों से बचाने के लिए मुहिम छेड़ दी। हरमन को सालों तक हाईवे पर चल रहे शराब के ठेकों के खिलाफ संघर्ष करना पड़ा।

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सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर देश के सभी हाईवेज पर बने शराब के ठेकों को बंद करवाने में उन्होंने अंतत: सफलता पाई। इस लड़ाई में सिद्धू को कई बार धमकियां भी मिलीं, लेकिन वे पीछे नहीं हटे। हादसे में अपने दोनों पैर गंवाने के बाद हरमन ने ‘अराइव सेफ’ (सुरक्षित पहुंचें) संस्था का निर्माण किया, जिसके माध्यम से वे आम लोगों को यातायात नियमों के बारे में जागरूक करने के साथ-साथ ट्रैफिक व्यवस्था में व्याप्त खामियों के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं।

48 वर्षीय हरमन सिद्धू पिछले 23 वर्षों से व्हील चेयर पर हैं। इस दौरान उन्होंने हाईवे पर ठेकों को बंद करवाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। हरमन के लिए जीत की राह इतनी आसान नहीं थी। हरमन को 23 साल पहले का वह दिन याद है, जब वे जान से हाथ धो बैठते। इसी हादसे के बाद उन्होंने हाईवे किनारे शराब की बिक्री बंद करने की मांग करते हुए जनहित याचिका लगाई। 24 अक्टूबर 1996 की शाम हरमन अपने तीन दोस्तों के साथ हिमाचल के रेणुका इलाके से चंडीगढ़ आ रहे थे। हाईवे किनारे की कच्ची सड़क पर उनकी कार फिसलकर पहाड़ी से नीचे जा गिरी। हरमन के दोस्त कार से निकलने में कामयाब हो गए, लेकिन वे कार में फंसे रह गए।

हादसे के बाद उन्हें पीजीआइ अस्पताल में भर्ती करवाया गया। इलाज के दौरान पता चला कि उनकी रीढ़ की हड्डी में चोट लगी है। जिसकी वजह से उनकी गर्दन से नीचे का हिस्सा काम नहीं करेगा। 25 साल की उम्र में ही वह व्हील चेयर के सहारे जीने को मजबूर हो गए। अस्पताल के बेड पर जब मरीजों का हाल पूछा जाता, तब उन्हें समझ आया कि वह अकेले सड़क हादसे के शिकार नहीं हैं। ज्यादातर लोग सड़क दुर्घटना का शिकार हुए थे। यही बात उनके लिए टर्निंग प्वाइंट बन गई और उन्होंने सड़क सुरक्षा के लिए काम करने की ठानी।

इसके बाद उन्होंने ट्रैफिक नियमों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए अराइव सेफ संस्था शुरू की। हरमन ने अपनी रिसर्च में पाया कि देश में हर चार मिनट में सड़क हादसे में एक मौत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े के मुताबिक 30-35 फीसद हादसे शराब से होते हैं। हाईवे पर शराब बिक्री के सभी आंकड़े जुटाकर हरमन कोर्ट की शरण में जा पहुंचे और सिस्टम को बदलने में कामयाब रहे। लगातार मिलती धमकियों के कारण हाईकोर्ट के निर्देश पर उनकी सुरक्षा के लिए 24 घंटे दो पीएसओ की तैनाती की गई है।

ऐसे लड़ी और जीती लड़ाई

हरमन सिद्धू ने 2012 में जो सर्वे किया, उसके मुताबिक पानीपत से जालंधर के बीच 291 किमी लंबे हाईवे पर 185 शराब के ठेके थे। हर डेढ़ किलोमीटर पर एक ठेका। तमाम आंकड़े जुटाकर हरमन ने हाईवे किनारे शराबबंदी के लिए जनहित याचिका लगाई। इसके बाद पंजाब और हरियाणा में हाईवे किनारे के 1000 ठेके बंद हुए। इस पर राज्य सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया। हरमन लड़ते रहे। अंतत: सुप्रीम कोर्ट ने हाईवे किनारे शराब बिक्री पर रोक लगाई। हालांकि, कई महीने शराबबंदी के बाद चंडीगढ़ प्रशासन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शहर के अंदर से जाने वाले हाईवे पर इजाजत दे दी।


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