तकनीक का कमाल: फसलों की बजाय अब सीधे कीटों पर होगा वार, मिट्टी पर भी नहीं पड़ेगा असर Chandigarh News
अब ऐसी डिवाइस बन गई है जिससे रसायनों के बहुत कम प्रयोग से ही घातक कीटों को खत्म किया जा सकेगा। फसल की बजाय सीधे कीटों पर वार होगा और कम खर्च लगेगा।
चंडीगढ़, [वीणा तिवारी]। कम लागत में अधिक पैदावार। कृषि जगत की यह सबसे बड़ी जरूरत है। इसके लिए तमाम तरीके अपनाए गए। कीटनाशकों का बेइंतहा इस्तेमाल होता रहा, जिसने बड़ा दुष्प्रभाव डाला। मगर, अब एक ऐसी डिवाइस बन गई है, जिससे रसायनों के बहुत कम प्रयोग से ही घातक कीटों को खत्म किया जा सकेगा। फसल की बजाय सीधे कीटों पर वार होगा और कम खर्च में अधिक उपज आ सकेगी। मिट्टी और पानी भी कीटनाशकों के दुष्प्रभाव से बचे रहेंगे।
चंडीगढ़ स्थित सेंट्रल साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंटल ऑर्गेनाइजेशन (सीएसआइओ) के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. मनोज कुमार पटेल ने यह एडवांस इलेक्ट्रो स्टेटिक स्प्रेइंग डिवाइस तैयार की है। उन्होंने बताया कि इसे चलाने के लिए पेट्रोल या बिजली की जरूरत नहीं है। ट्रैक्टर से कनेक्ट करने पर यह उसके चलने से उत्पन्न होने वाले ऊर्जा से खुद ही चलेगा। उस दौरान डिवाइस का ट्रापलेट चार्ज होगा और स्प्रे सीधे पौधे के प्रभावित हिस्से पर ही जाएगा। चार्जिंग के कारण कीटनाशक की बूंद जमीन पर गिरने की बजाय सीधे पौधे पर जाती है। इसे टारगेटेड पेस्टिसाइज डिलीवरी कहा जाता है। इससे कम मात्र में ही ज्यादा फसल को कीट मुक्त किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि कम समय में ज्यादा परिणाम के लिए 17 से 18 नोजल वाले ट्रैक्टर माउंडेट डिवाइस तैयार किए जा रहे हैं।
कम लागत में सेहतमंद फसल
इस डिवाइस की मदद से कम लागत में अधिक उपज तो होगी ही, रसायन के कम प्रयोग के कारण उत्पन्न अन्न ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक भी होगा।
पानी और मिट्टी पर नहीं पड़ेगा दुष्प्रभाव
चूंकि कीटनाशक सीधे पौधे के प्रभावित हिस्से पर पड़ेगा, इसलिए खेत की मिट्टी और पानी इससे बचे रहेंगे। इससे तमाम बीमारियों से बचाव हो सकेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों के अधिक मात्र में इस्तेमाल से भूमि अम्लीय हो जाती है। पानी में नाइट्रेट की मात्र 50 मिली ग्राम लीटर में अधिक होने पर मानव और पशुओं में ब्लू बेबी सिण्ड्रोम या मेथेमोग्लोबिनिमि बीमारी उत्पन्न करता है, जिसके कारण बच्चों का रक्त ऑक्सीजन के अभाव में नीला हो जाता है। इसी तरह फास्फेट में कैडमियम और सीसा होता है, जिसकी वजह से गुर्दा और हृदय रोग का खतरा बढ़ता है। शीशा युक्त भोजन लेने से दिमाग को क्षति पहुंचती है एवं उल्टी की शिकायत होती है। आर्सेनिक के कारण चर्मरोग होता है। कीटनाशकों के कारण पेट की तकलीफ, जननांगों में विकार, तंत्रिका संबंधी समस्याएं तथा कैंसर जैसी बीमारियों के खतरे लगातार बढ़ रहे हैं। पक्षी, मधुमक्खी, मित्र कीट तथा जलीय जीव भी इससे दुष्प्रभावित हो रहे हैं।
इस डिवाइस में प्रयोग किए गए नैनो तकनीक के विशेष मैथड के कारण सोच से बढ़कर परिणाम हासिल करने में सफलता मिली है।
-डॉ. मनोज कुमार पटेल, सीनियर साइंटिस्ट, सीएसआइओ।
मिट्टी भी खो रही अपनी सेहत
कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी और खेती की सेहत भी लगातार खराब हो रही है। मृदा-जल संरक्षण एवं अनुसंधान संस्थान, देहरादून की एक रिपोर्ट के मुताबिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अविवेकपूर्ण इस्तेमाल से प्रतिवर्ष 5334 लाख टन मिट्टी नष्ट हो रही है।
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