रोशनी परियोजना से इस दिवाली पर आएगी गरीब बच्चों के साथ-साथ कुम्हारों के चेहरों पर मुस्कान
इस परियोजना का उद्देश्य दिवाली को खुशियों व पवित्रता के साथ मनाना है। स्वदेशी दिवाली को दर्शाते हुए कुम्हारों से दिए खरीदकर उनको इस्तेमाल किया जाता है जिससे चीनी सामान के आने का नुकसान उन्हें न उठाना पड़े।
चंडीगढ़, वैभव शर्मा। इस दिवाली लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए रोटरेक्ट क्लब चंडीगढ़ हिमालयन द्वारा स्वदेशी दिवाली पर जोर दिया जा रहा है। परियोजना के तहत गरीब बच्चों के बीच जाकर उनके साथ दिवाली मनाई जाती है। इस साल रोशनी परियोजना के तहत अलग तरह से दिवाली मनाई जाएगी। पहले गरीब और जरूरतमंद बच्चों के साथ दिवाली मनाई जाती थी, वहीं इस वर्ष रोशनी परियोजना कुम्हारों के चेहरों पर मुस्कान लाएगी। इस बार क्लब द्वारा स्वदेशी दिवाली मनाई जाएगी।
स्टूडेंट्स करते हैं क्लब का संचालन
रोटरेक्ट क्लब चंडीगढ़ हिमालयन, एक गैर लाभ संस्था है। इसका संचालन कालेज और यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स कर रहे हैं। इस परियोजना का उद्देश्य दिवाली को खुशियों व पवित्रता के साथ मनाना है। स्वदेशी दिवाली को दर्शाते हुए कुम्हारों से दिए खरीदकर उनको इस्तेमाल किया जाता है, जिससे चीनी सामान के आने का नुकसान उन्हें न उठाना पड़े।
पंचकूला और सेक्टर 38 का किया दौरा
पिछले कई दिनों से चल रहे इस सफर में क्लब ने सेक्टर 38 और पंचकूला स्थित डीआइओएस का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने लोगों को स्वदेशी दिवाली मनाने के लिए जागरूक किया। उसके अलावा वालंटियर्स ने अपनी पाठशाला में बच्चों से बातचीत कर उनसे दिया चित्रण करवाया और कई खेल गतिविधियों का भी आयोजन किया गया।
दिवाली सबके लिए एक समान, सबको है खुशियां पाने का हक
क्लब प्रेसिडेंट मुस्कान गांधी ने कहा कि दिवाली खुशियों का त्योहार है। ये सब के लिए एक समान है, हर किसी को दिवाली की खुशियां पाने का हक है। इसी सोच के साथ हम ट्राइसिटी में काम कर रहे हैं। इस कड़ी में ही हैप्पी स्कूल्स, अपनी पाठशाला व दिव्यांग छात्रों के स्कूलों का दौरा भी किया जा रहा है। हमारी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा गरीब लोगों में दिवाली की खुशियां बांटी जा सके। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि क्लब ने कुम्हारों से 12 हजार दिए खरीदने का लक्ष्य बनाया हुआ है।
दिये बेच कर मिली राशि होगी गरीब बच्चो पर खर्च
मुस्कान ने बताया कि वो कुम्हारों से दिए खरीद कर बाद में उन पर पेंट करते है। जिसके बाद इनको मार्केट में बेचा जाता है। उस दौरान जो भी राशि इकट्ठी होती है, उसे गरीब बच्चों की शिक्षा पर खर्च करते हैं।