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नशा और पावरगेम की सियासत में उलझी पंजाब पुलिस, कोर्ट तक पहुंची लड़ाई

पंजाब पुलिस में पावरगेम की हालत नजर अा रहे हैं। पु‍लिस में नशा और पावरगेम की सियासत के कारण राजनीति के कारण मामला अब अदालत तक पहुंच गया है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sun, 17 Dec 2017 01:13 PM (IST)Updated: Sun, 17 Dec 2017 01:13 PM (IST)
नशा और पावरगेम की सियासत में उलझी पंजाब पुलिस, कोर्ट तक पहुंची लड़ाई
नशा और पावरगेम की सियासत में उलझी पंजाब पुलिस, कोर्ट तक पहुंची लड़ाई

चंडीगढ़, [मनोज त्रिपाठी]। नशे व पावरगेम की सियासत में उलझी पंजाब पुलिस के अधिकारियों की लड़ाई अब अदालत तक जा पहुंची है। नशे के खात्मे को लेकर गठित स्पेशल टास्क फोर्स के चीफ एडीजीपी हरप्रीत सिंह सिद्धू व एसएसपी मोगा राजजीत सिंह के विवाद में भले ही पंजाब पुलिस का कोई अधिकारी न पड़ना चाह रहा हो, लेकिन पर्दे के पीछे इसकी नींव चार माह पहले ही पड़ चुकी थी। समझा जाता है कि इस विवाद के पीछे पुलिस हेडक्वार्टर में वर्षो से चल रही अधिकारियों की गुटबाजी का हाथ है।

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एसटीएफ चीफ हरप्रीत सिंह सिद्धू व एसएसपी मोगा राजजीत के बीच विवाद का मामला

अकाली-भाजपा सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2012 से लेकर 2017 तक लगातार कांग्रेस व आम आदमी पार्टी नशे को लेकर अकालियों को कठघरे में खड़ी करती रही। राज्‍य की सियासत भी नशे की सियासत में तब्दील हो गई थी। इसी बीच राजा कंदोला, जगदीश भोला जैसे नशा तस्करों को पुलिस ने गिरफ्तार कर 600 करोड़ के नशे व आइस (तरल नशा) के कारोबार का पर्दाफाश किया था।

इसके बाद भोला के आरोपों के चलते इस मामले में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया को भी कांग्रेसियों व आप नेताओं ने कठघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया था। 2017 में सत्ता में आई कांग्रेस ने सबसे पहले अपने चुनावी वायदे को पूरा करने के लिए एसटीएफ के गठन का एलान किया। गठबंधन सरकार में डीजीपी रहे सुरेश अरोड़ा को भी हटाने की अटकलें लगाई जा रही थीं, लेकिन किन्हीं कारणों से मुख्यमंत्री ने उन्हें डीजीपी के पद पर बने रहने दिया।

इसके बाद हरप्रीत सिंह सिद्धू के हाथ में आई एसटीएफ की कमान आई। सिद्धू ने अपने हिसाब से पंजाब पुलिस की भूमिका को भी सही मायनों में नशे के खात्मे के लिए उपयोग करना शुरू कर दिया। कपूरथला के सीआइए इंचार्ज इंदरजीत सिंह की गिरफ्तारी करने के बाद सिद्धू ने स्पष्ट संकेत दिए कि अब नशे के खात्मे के लिए किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा।

इंदरजीत की गिरफ्तारी के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय से सिद्धू को और पावरफुल बना दिया गया और उन्हें सीमावर्ती जिलों की कमान भी सौंप दी गई। पुलिस हेडक्वार्टर में इस बात को खासी बहस छिड़ी कि अब तो सिद्धू का कद डीजीपी के कद के लगभग बराबर होता जा रहा है। दूसरी तरफ हाशिए पर चल रहे डीजीपी की टीम सही मौके की तलाश में थी और पंजाब में हुई धार्मिक नेताओं की हत्या के केस की लीड मिलते ही उसे हल भी कर दिया गया।

पूरे ऑपरेशन को डीजीपी की टीम ने बेहद ही गोपनीय तरीके से अंजाम दिया और मीडिया को भी इसकी भनक तब लगी, जब मुख्यमंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस करके खुलासा किया। इसके बाद डीजीपी की टीम ने दोबारा मुख्यमंत्री कार्यालय में नए सिरे से खुद को स्थापित किया। पंजाब में आइपीएस और पीपीएस अफसरों के बीच शीत युद्ध को लेकर सभी वाकिफ हैं, लेकिन कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद पावर में आइ आइपीएस लॉबी भी चार महीनों में ही पावरगेम व नशे की सियासत में उलझ गई।

पुलिस का राजनीतिकरण हो चुका है : खैहरा

आम आदमी पार्टी के विधायक विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष सुखपाल सिंह खैहरा ने कहा है कि अगर मोगा के एसएसपी को भी अपनी पुलिस पर भरोसा नहीं है। वह अदालत की शरण में हैं तो आसानी से समझा जा सकता है कि पंजाब पुलिस उनके व आम लोगों को दोषी बनाने के लिए क्या-क्या हथकंडे अपना सकती है। इससे अंदाजा लगाएं कि पंजाब पुलिस का किस कदर सियासीकरण हो चुका है।

ऐसे घेरे में आए थे राजजीत

एसटीएफ ने जब राजजीत को पूछताछ के लिए बुलाया था तो एसटीएफ ने इस बात की भी पड़ताल कर ली थी कि इंदरजीत राजजीत के साथ लंबे समय तक तैनात रहे हैं। राजजीत एसएसपी तरनतारन होते थे तो भी इंदरजीत की तैनाती वहां पर थी। नशे के जिन 19 केसों की पड़ताल एसटीएफ ने की थी, उनमें से कई तरतारन से संबंधित थे।

पूछताछ में राजजीत ने कुछ ऐसी बातें भी एसटीएफ के सामने कबूल कर ली थीं, जो अब उनके व इंदरजीत के रिश्तों की गवाही दे सकती हैं। पूछताछ के बाद सरकारी मशीनरी के दवाब में एसटीएफ ने कुछ समय के लिए मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। बीते दिनों अदालत में इंदरजीत के मामले को लेकर एसटीएफ की तरफ से रिपोर्ट पेश की गई। उसी समय राजजीत ने सरकार को पत्र लिखकर उन्हें फंसाने का अंदेशा जताया था।

19 मामलों का क्या होगा

इंदरजीत सिंह पर हाथ डालने से पहले एसटीएफ ने नशे के मामले में गिरफ्तारी व बड़ी रिकवरी को लेकर 19 केसों की पड़ताल की थी। सिद्धू की टीम में शामिल प्रमोद बान, आरके जायसवाल, मुखविंदर सिंह सहित आधा दर्जन से ज्यादा अधिकारियों ने इन मामलों की पड़ताल के बाद पाया था कि इन मामलों में नशा तस्करों की गिरफ्तारी इंदरजीत सिंह ने की थी और भारी मात्र में नशीले पदार्थो की रिकवरी भी की गई थी। इसके बाद इन मामलों का खुद ही जांच अधिकारी बनकर इंदरजीत ने कई मामलों में नशा तस्करों को छुड़वा दिया था।

एसटीएफ का सवाल था कि जब गिरफ्तारी व रिकवरी इंदरजीत ने खुद की है तो वह नशा तस्करों को छोड़ कैसे सकते हैं। या तो पहले गिरफ्तारियां गलत की गई थीं या फिर बाद में सेटिंग करके उन्हें छोड़ा गया।
 


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