Punjab Politics: हड़बड़ी में गड़बड़ी कर बैठी मान सरकार, जारी है जोर-आजमाइश
Punjab Politics असल में कानूनी दांव-पेच में अभी भी स्थापित पार्टियां उससे कहीं आगे हैं। इसी कारण आम आदमी पार्टी के कदमों को वे रोकने में कामयाब हो जाती हैं जैसा कि पंजाब में विश्वास मत को लेकर विधानसभा का सत्र बुलाने को लेकर हुआ है।
चंडीगढ़, इन्द्रप्रीत सिंह। आम आदमी पार्टी भाजपा पर आपरेशन लोटस के तहत अपने विधायकों को 25-25 करोड़ रुपये में खरीदने का बड़ा आरोप लगा रही है। कहा जा रहा है कि इसे मुद्दा बनाकर आम आदमी पार्टी भाजपा को कठघरे में लाना चाह रही है। ऐसा कर वह गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश के चुनावों में कांग्रेस का विकल्प बनने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसके मंत्रियों में अनुभव की कमी ही उसकी राह में सबसे बड़ी बाधा बन रही है। दरअसल दिल्ली विधानसभा की तरह पर पंजाब में भी गत 22 सितंबर को विशेष सत्र बुलाकर उसका विश्वास मत हासिल करने का दांव नाकाम हो गया।
सरकार को नियमित सत्र बुलाना पड़ा। राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने ही सरकार से पूछ लिया कि पंजाब विधानसभा के किन नियमों के तहत विश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है। पंजाब विधानसभा की नियमावली में तो इसकी व्यवस्था ही नहीं है। बस, यहीं आप सरकार से गड़बड़ी हुई। सरकार विधानसभा का सत्र किसी भी समय बुला सकती है, पर सत्र को बुलाने की एक प्रक्रिया है।
पंजाब विधानसभा की नियमावली
विधायकों को तैयारी करने के लिए 15 दिन का नोटिस देना पड़ता है, लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी की हड़बड़ी के कारण राज्यपाल और सरकार के बीच रिश्तों में कड़वाहट भी आ गई है। वहीं न चाहते हुए भी विपक्षी पार्टियां एक मंच पर आ गईं और मात्र दो सीटों वाली भाजपा ने जिस तरह का हमलावर रुख अपनाया हुआ है, उससे शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियां भी हाशिये पर दिखाई दे रही हैं। इन सबके बीच जिस तरह की लड़ाई आम आदमी पार्टी ने लड़ने की सोची थी, उसमें उसे ज्यादा सफलता मिलती नजर नहीं आ रही है। पंजाब विधानसभा की नियमावली में कहीं भी सरकार की ओर से विश्वास मत हासिल करने का प्रविधान नहीं है। केवल विपक्ष ही सरकार के खिलाफ अविश्वास मत ला सकता है, वह भी तब जब उसके पास एक निश्चित विधायकों की संख्या हो, लेकिन इस समय विपक्ष के पास वह भी नहीं है। इसका अर्थ यह है कि जब तक आम आदमी पार्टी में कोई बड़ी टूट नहीं होती, तब तक न तो सरकार विश्वास मत ला सकती है और न ही विपक्ष अविश्वास मत ला सकता है।
विपक्ष को अविश्वास मत लाने के लिए 27 सदस्यों की जरूरत है, जबकि इस समय सभी पार्टियों के विपक्षी नेताओं को इकट्ठा कर लिया जाए तो भी उनकी गिनती 25 ही बनती है। विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा खुद कह रहे हैं कि अविश्वास प्रस्ताव लाना भी विपक्ष के लिए नामुमकिन है। जब तक कि उन्हें सत्तारूढ़ पार्टी से विधायकों का साथ नहीं मिलता। ऐसे में सरकार को किसी प्रकार का कोई खतरा है, इसका दूर-दूर तक भी कोई अंदेशा नहीं दिख रहा है। फिर आम आदमी पार्टी जो इस समय पंजाब की 117 सीटों में से 92 सीटों पर काबिज है को किस बात का खतरा है। वह विश्वास प्रस्ताव क्यों लाना चाहती है। उनका कहना है कि पार्टी कांग्रेस के विरुद्ध देश भर में एक विकल्प के तौर पर उभरना चाहती है।
दरअसल आम अादमी पार्टी एक नैरेटिव बनाना चाहती है कि आने वाले समय में भाजपा से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस के बजाय लोगों की पहली पसंद वह बने। हालांिक इस पूरे घटनाक्रम के बाद पार्टी ऐसा नैरेटिव बनाने में कुछ हद तक कामयाब भी रही है। आज मीडिया में आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच में ही लड़ाई की बात हो रही है। कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियां इस लड़ाई में कहीं भी दिखाई नहीं दे रही हैं। वे या तो भाजपा के साथ ही खड़ी नजर आ रही हैं और उनकी हां में हां मिला रही हैं या फिर खामोशी से बैठ तमाशा देख रही हैं।
AAP पार्टी को राष्ट्रीय परिदृश्य में खुद को उभारना
पार्टी के वरिष्ठ नेता का मानना है कि अगर आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय परिदृश्य में खुद को उभारना है तो उसे इस तरह के नैरेटिव बनाने ही होंगे, अन्यथा उसके लिए भी खड़ा हो पाना मुश्किल होगा, क्योंकि अभी ज्यादातर राज्यों में पार्टी का अपना कोई कैडर नहीं है। वह केवल स्थापित पार्टियों के विरोध का वोट लेकर ही सत्ता में है। जिस तरह से पंजाब में लोगों ने शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस जैसी कार्यकर्ता आधारित पार्टियों को दरकिनार करके आम आदमी पार्टी को 92 सीटें देकर सत्ता में पहुंचाया है, इसी तरह का दांव वह गुजरात में भी खेलना चाहती है। गुजरात एक ऐसा राज्य है, जहां भाजपा पिछले दो दशक से सत्ता में है और उसका वहां कोई तोड़ भी नजर नहीं आ रहा।
आम आदमी पार्टी को लगता है कि अगर गुजरात में वह सत्ता बनाने में कामयाब हो जाती है तो उसे राष्ट्रीय तौर पर भी आसानी से स्वीकार किया जा सकेगा, लेकिन वहां सत्ता तक पहुंचने के लिए आम आदमी पार्टी को अभी कई सीढ़ियां चढ़नी हैं। आम आदमी पार्टी की मुश्किल यह है कि उसके नेता बहुत तेजी से इन सीढ़ियों पर चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, जिस कारण एक सीढ़ी चढ़कर दो सीढ़ियां गिर जाते हैं। असल में कानूनी दांव-पेच में अभी भी स्थापित पार्टियां उससे कहीं आगे हैं। इसी कारण आम आदमी पार्टी के कदमों को वे रोकने में कामयाब हो जाती हैं, जैसा कि पंजाब में विश्वास मत को लेकर विधानसभा का सत्र बुलाने को लेकर हुआ है।
[ब्यूरो प्रमुख, पंजाब]