Power Crisis in Punjab: पंजाब सरकार के लिए मुसीबत बने बिजली खरीद समझौते, 'अपनों' के निशाने पर अमरिंदर
पंजाब में बिजली संकट का समाधान नहीं हाे पा रहा है और बिजली की महंगी दरों के कारण कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार निशाने पर है। कैप्टन सरकार के लिए निजी कंपनियों से समझौते गले की फांस बन गए हैं।
चंडीगढ़,राज्य ब्यूरो। पंजाब में बिजली की महंगी दरों और बिजली संकट के कारण कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार निशाने पर है। विपक्ष के साथ अपनी पार्टी कांग्रेस के नेता भी कैप्टन अमरिंदर सिंह पर निशाना साथ रहे हैं। दरअसल, निजी थर्मल प्लांटों के साथ हुए बिजली खरीद समझौते पंजाब सरकार के गले की फांस बन गए हैं। कांग्रेस के सत्ता में आने के साढ़े चार साल बाद मुद्दा कांग्रेस पर भारी पड़ने लगा है। 2020 के बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बिजली खरीद समझौतों के मामले में श्वेत पत्र लाने का भरोसा विधानसभा में दिया था। राज्यसभा सदस्य प्रताप सिंह बाजवा ने भी कैप्टन पर श्वेत पत्र न लाने को लेकर सवाल खड़े किए हैं।
मुख्यमंत्री ने 2020 में विधानसभा में की थी श्वेत पत्र लाने की घोषणा लेकिन नहीं लाए
प्रताप सिंह बाजवा ने इन समझौतों की तुलना समुद्री पक्षी अल्बेट्रास से की है। इसके बारे में यह बात मशहूर है कि यह पक्षी समुद्र में जिस जहाज पर बैठ जाता है, उसका बुरा समय शुरू हो जाता है। बाजवा ने एक बयान जारी कर कहा कि बिजली खरीद समझौते की समीक्षा बहुत देर से की जा रही है लेकिन यह अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि, यह समझौते सरकारी खजाने को चूस रहे हैं। बाजवा ने भी 300 यूनिट फ्री बिजली का मुद्दा भी उठाया। बाजवा ने यह भी कहा कि धान के सीजन में बिजली संकट से किसानों को नुकसान हो रहा है और पावरकाम मांग के अनुरूप बिजली इंतजाम पूरे करने में नाकाम रहा है।
राज्यसभा सदस्य प्रताप सिंह बाजवा ने कहा, देरी से शुरू हुई समझौतों की समीक्षा
बता दें कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जनवरी, 2020 में मानसून सत्र में समझौतों को लेकर श्वेत पत्र लाने का दावा किया था। इसके बाद सरकार ने इस मामले में चुप्पी साध ली। अब बढ़ते बिजली संकट व राजनीतिक दबाव में सरकार ने अब इन समझौतों की कानूनी समीक्षा शुरू कर दी है। शनिवार को कैप्टन ने कहा था कि 139 में से 122 समझौतों पर बेवजह हस्ताक्षर किए गए थे।