Move to Jagran APP

क्रिकेट की तरह ही है नवजोत सिद्धू का सियासी सफर, कभी जीरो पर आउट तो फिर टाप फार्म में लौटे 'गुरु'

Navjot Singh Sidhu पंजाब कांग्रेस के नए अध्‍यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू का अब तक का सियासी सफर उनके क्रिकेट जीवन जैसा ही रहा है। उनके अब तक के राजनीतिक सफर में कई मोड़ आए। कभी शून्‍य पर आउट हुए तो फिर क्रिकेट की तरह शीर्ष पर लौटे।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 19 Jul 2021 07:21 AM (IST)Updated: Mon, 19 Jul 2021 10:45 AM (IST)
पंजाब कांग्रेस के नए अध्‍यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने सियासत के मैदान में भी लगाया 'सिक्‍सर'!

चंडीगढ़ ,[कैलाश नाथ]। Navjot Singh Sidhu Journey : पंजाब कांग्रेस के अध्‍यक्ष बने नवजोत सिंह सिद्धू का सियासी सफर उनके क्रिकेट करियर की तरह ही रहा है। क्रिकेट के मैदान में संन्‍यास के बाद शानदार रिटर्न किया तो सियासत में 'वनवास' के वाद जबरदस्‍त वापसी की है।  कभी वकार यूनिस की गेंद पर जीरो पर आउट होने के बाद सिद्धू जैसे ' सिक्‍सर किंग' बने, वैसा ही जज्‍बा उन्‍होंने राजनीति की पारी में भी दिखाया है।

loksabha election banner

क्रिकेट के मैदान में अपने छक्‍कों के लिए मशहूर रहे सिद्धू ने राजनीति में हैट्रिक बनाया और अमृतसर से लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव जीते। सिद्धू के बारे में खास बात यह है कि क्रिकेट में भी उनका अपने कप्‍तान से विवाद हुआ और इस कारण अचानक संन्‍यास ले लिया और अब राजनीति के कैप्‍टन से भी उनका विवाद हुआ और मंत्री पद छोड़कर 'सियासी संन्‍यास' पर चले गए। फिर क्रिकेट मैदान में रिटायरमेंट से लौटे और अब सियासत में भी जोरदार 'कमबैक' किया है।

 2004 में कांग्रेस के कद्दावर नेता रघुनंदन लाल भाटिया को एक लाख से अधिक वोटों से हराकर बने थे सांसद

नवजोत सिंह सिद्धू ने अपना राजनीतिक सफर 2004 में शुरू किया था। भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने 2004 में सिद्धू को भाजपा में शामिल किया था। इसके बाद सिद्धू हमेशा जेटली का अपना सियासी गुरु मानते रहे, भाजपा में रहने के दौरान भी और उसे छोड़ने के बाद भी। 2004 में ही सिद्धू ने पहली बार अमृतसर लोकसभा सीट से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा। सिद्धू ने कांग्रेस के कद्दावर नेता रघुनंदन लाल भाटिया को 1,09,532 वोटों से हराया।

भाजपा से की शुरूआत और कांग्रेस में बने पंजाब के सरदार, की सियासी वनवास से जबरदस्‍त वापसी

सिद्धू ने पटियाला के गैर इरादतन हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से फैसला देने से पहले लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट की ओर से चुनाव लड़ने की इजाजत मिलने के बाद 2007 में अमृतसर से ही उपचुनाव लड़ा। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस नेता सुरिंदर सिंगला को हराया।

2009 में सिद्धू ओपी सोनी को हराकर तीसरी बार संसद पहुंचे। 2014 में भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया था। बाद में भाजपा ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना दिया था, लेकिन सिद्धू राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर 2017 में कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस की सरकार बनने पर उन्हें स्थानीय निकाय मंत्री बनाया गया, लेकिन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से मतभेद के बाद 2019 में उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया।

 विवादों से रहा है सिद्धू का पुराना नाता

बतौर खिलाड़ी और राजनेता के रूप में सिद्धू का विवादों से पुराना नाता रहा है। भाजपा में रहते हुए सिद्धू ने हमेशा ही पार्टी पर अकाली दल से नाता तोड़ने का दबाव बनाया। 2014 में जब बादलों के कहने पर अरुण जेटली अमृतसर से चुनाव लड़ने के लिए आए तो सिद्धू अपने राजनीतिक गुरु जेटली के साथ कभी भी दिखाई नहीं दिए। 2019 में सिद्धू ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर कमेंट किया कि वह पंजाब के कैप्टन हैं, लेकिन उनके (सिद्धू के) कैप्टन राहुल गांधी हैं।

2019 के लोकसभा चुनाव में सिद्धू ने बठिंडा में चुनाव प्रचार के दौरान कैप्टन अमरिंदर सिंह पर बादलों के कारोबार में 75-25 की हिस्सेदारी बता कर मोर्चा खोल दिया था। लोकसभा में पांच सीटें हारने के बाद कैप्टन ने कैबिनेट मंत्रियों के विभागों में फेरबदल किया। सिद्धू से स्थानीय निकाय विभाग वापस ले लिया गया। जिसके विरोध में सिद्धू ने कैबिनेट पद से इस्तीफा दे दिया था। बतौर खिलाड़ी सिद्धू मोहम्मद अजहरूद्दीन की कप्तानी में खेलने से मना कर इंग्लैंड का दौरा बीच में ही छोड़ कर वापस आ गए थे।

माझा ब्रिगेड सिद्धू के करीब

प्रदेश में कांग्रेस की कप्तानी बदलने के लिए माझा के मंत्री भी सिद्धू के साथ आ गए। कैबिनेट मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा, सुखबिंदर सिंह सरकारिया, सुखजिंदर सिंह रंधावा अब सिद्धू कैंप में शामिल हो गए हैं। कैप्टन के धुर विरोधी चरणजीत सिंह चन्नी पहले से ही सिद्धू के साथ थे। माझा ब्रिगेड पहले सुनील जाखड़ के साथ चल रही थी। वहीं विधायकों में परगट सिंह, कुलबीर जीरा, बरिंदरमीत सिंह पाहड़ा, कुशलदीप सिंह ढिल्लों आदि भी सिद्धू के साथ रहे।

---------

 इसलिए बनाया गया प्रधान

- कांग्रेस को पंजाब में नए चेहरे की तलाश थी जो कैप्टन अमरिंदर सिंह का विकल्प बन सके।

- कांग्रेस सरकार की छवि बन गई थी कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह बादलों से मिले हुए हैं।

- 2022 के चुनाव में मुख्य चुनौती शिरोमणि अकाली दल से मिलनी है। सिद्धू बादलों पर हमेशा निशाना साधते रहते हैं।

- कांग्रेस पूरे देश में अपनी पार्टी को यह संदेश देगी कि वह नए लोगों को भी अहम जिम्मेदारी दे रही है।

- सिद्धू भले ही सिख हैं, लेकिन हिंदू देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं। इसलिए दोनों धर्म के लोगों को स्वीकार होंगे।

-----

यह हो सकता है इम्पैक्ट

-सिद्धू यह धारणा खत्म कर सकते हैं कि कांग्रेस अकालियों के साथ मिली हुई है।

-युवा वर्ग सिद्धू को अपना नेता मान कर कांग्रेस के साथ आ सकता है जिसका पार्टी को फायदा होगा।

-सरकार के प्रति लोगों में जो नाराजगी है, वह कम हो सकती है।

-सिद्धू के प्रधान बनने से कांग्रेस हो सकती है दो फाड़।

-कैप्टन खेमा अगर विरोध पर उतरा तो 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हो सकता है नुकसान।

------

सिद्धू का मजबूत पक्ष

- ईमानदार नेता की छवि, अच्छे वक्ता व युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं।

- बेअदबी कांड, किसानी, बिजली आदि को लेकर अकाली दल को कठघरे में खड़ा करते रहे हैं। यह उनकी ताकत है।

- हिंदू और सिख वर्ग में बराबर की पैठ रखते हैं।

- प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के करीबी हैं।

कमजोर पहलू

- संगठन का कोई अनुभव नहीं है।

- कांग्रेस की ताकत और कमजोरी के बारे में पता नहीं है।

- सामने वाले की कम सुनते हैं। जल्दी उद्वेलित हो जाते हैं।

- स्वभाव में लचीलापन नहीं है।

- आम लोगों की पहुंच में नहीं होते।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.