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पटियाला से मिला जिन्हें अपना तल्लफुज

उर्दू भाषा, जब इसे धर्म से नहीं जोड़ा गया था।

By JagranEdited By: Published: Fri, 01 Feb 2019 09:20 PM (IST)Updated: Fri, 01 Feb 2019 09:20 PM (IST)
पटियाला से मिला जिन्हें अपना तल्लफुज

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : उर्दू भाषा, जब इसे धर्म से नहीं जोड़ा गया था। पंजाब में काफी अच्छे से फल फूल रही थी। उसी दौरान एक शख्स, जिसने इसे सीखने का पूरा यतन किया। बसी कलां, होशियारपुर से उर्दू सीखने की ललक पटियाला तक ले आई। फिर ये धरती उन्हें इतनी भाई कि उन्होंने अपना तल्लफुज भी इसी के नाम पर रख दिया। ये हैं स्वर्गीय शायर ऋषि पटियालवी। जिनकी याद में शुक्रवार को पंजाब कला भवन-16 में फ‌र्स्ट फ्राइड फोरम द्वारा सेशन का आयोजन किया। स्वर्गीय ऋषि पर बात करने के लिए उनके बड़े बेटे अनिल कुमार शर्मा भी पहुंचे। चंडीगढ़ आर्किटेक्ट कॉलेज के पूर्व ¨प्रसिपल एसएस भट्टी ने कहा कि ऋषि को याद करना एक अलग बात है। वो पंजाब के ऐसे शायर रहे, जिनसे जब भी बात करो तो उर्दू भाषा की खुशबू आती थी। मेरी उनसे मुलाकात हुई, तो जाना कि उर्दू के शेयर सीखने के लिए भी आपको एक उस्ताद की जरूरत होती है। उसके बिना तो आप उसकी गहराई में भी नहीं उतर सकते। उन्होंने पटियाला में स्टेट बैंक ऑफ पटियाला में कार्य किया, तो पूरे पंजाब में मुशायरों का आयोजन किया। जिसकी वजह से उर्दू भाषा भी राज्य में काफी फली फूली। बचपन में सभी श्लोक याद थे, ऐसे में नाम रखा गया ऋषि

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अनिल ने कहा कि पिता की याददाश्त बचपन से ही तेज थी। उन्हें हर श्लोक झट याद हो जाता था। आठ वर्ष की उम्र में उन्हें इतने श्लोक याद रहते थे, कि उनका नाम ऋषि रख दिया गया। पटियाला में पहुंचे, तो उन्हें लगा कि यहां का इतिहास और यहां की कला अलग है। ऐसे में वो फिर वहीं बस गए। उन्हें उर्दू भाषा पसंद थी। भाषा को धर्म से जोड़ना गलत

एसएस भट्टी ने कहा कि हाल ही में हमने ऋषि पटियालवी के 100वीं जन्म वर्षगांठ पर कार्यक्रम का आयोजन किया था। जिसमें उनकी शायरी को किताब के रूप में भी प्रकाशित किया। हमारा मकसद भाषा को ¨जदा रखना है। ऐसे में ये संदेश भी देना चाहते हैं कि कोई भी भाषा धर्म से जुड़ी नहीं है। इसमें गुरु नानक देव जी ने भी काफी अलख जगाई थी। जिसमें हुकुम रजाई चलना में भी हुकुम रजाई जैसे शब्द उर्दू के रहे। पंजाब भी पर्शियन शब्द है। ऐसे में हम भाषा को क्यों खत्म कर रहे हैं। उर्दू भाषा को आगे लाने के लिए हमें ऋषि पटियालवी जैसे शायरों को निरंतर याद रखना होगा। जिन्होंने धर्म की बेड़ियां तोड़कर भाषा से प्यार किया।


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