आम और जामुन के चक्कर में पहुंच रहे ट्रॉमा सेंटर
शहर के लोगों का आम और जामुन खाने का चस्का उनकी जिंदगी पर भारी पड़ रहा है।
डॉ रविंद्र मलिक, चंडीगढ़ : शहर के लोगों का आम और जामुन खाने का चस्का उनकी जिंदगी पर भारी पड़ रहा है। हर रोज करीब 8 से 10 ऐसे सीरियस इंजरी के केस आ रहे हैं जो आम और जामुन तोड़ने के चक्कर में पेड़ से गिर रहे हैं और इलाज के लिए ट्रामा सेंटर पहुंच रहे हैं। पिछले दस दिन में यह आंकड़ा 100 से भी ज्यादा लोगों का हो चुका है।
इन केसों में रोज पीजीआइ में औसतन रोज 2 से 3 केस, गवर्नमेंट अस्पताल सेक्टर 16 और गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज सेक्टर 32 में भी आंकड़ा सयुंक्त रूप से 4 से 6 केस का है। इसके अलावा मनीमाजरा, सेक्टर 22 व 45 स्थित अस्पताल में भी मामले आ रहे हैं। 30 जून को सुबह 2 बजे यूआइईटी का स्टूडेंट सौरव भी स्टूडेंट सेंटर पर दोस्तों के साथ आम तोड़ रहा था, लेकिन टहनी टूटने के चलते नीचे आ गिरा। वह करीब 15 फीट की उंचाई से नीचे गिरा था। उसकी रीढ़ में गहरी चोट आई है। डॉक्टरों ने उसे दो माह का बेड रेस्ट बताया है।
कमजोर पेड़ हैं आम और जामुन
जामुन का पेड़ ज्यादा कमजोर होता है। इस पर जामुन शाखा के बिल्कुल अंतिम सिरे पर लगती है, लेकिन वहां तक पहुंचने में जोखिम होता है क्योंकि वहां शाखाएं और भी पतली हो जाती हैें। आम पर फल सिरे के अलावा बीच में भी लगता है। जोखिम कम है। यह जामुन से थोड़ा कम कमजोर होता है। 50 फीसद केस में रीढ़ को खतरा
एक्सपर्ट्स की मानें तो ऊंचाई से गिरने पर सबसे ज्यादा खतरा सिर और रीढ़ को होता है। कई बार तो जान भी चली जाती है। जितने भी केस रीढ़ के टूटने के आते हैं, उनमें से करीब 50 फीसदी तो गिरने के चलते इंजरी के होते हैं। गिरने से रीढ़ को जोड़े रखने वाले वर्टिब्री टूट जाते हैं या फिर इनमें गैप आ जाता है। बाद में इंसान चलने से भी रह जाता है।
दोनों पेड़ बाई नेचर कमजोर होते हैं, लेकिन जामुन का पेड़ ज्यादा कमजोर होता है। बारिश के मौसम में इन पर चढ़ने से परहेज करना चाहिए क्योंकि फिसलन के चलते गिरने की चांस ज्यादा हो जाते हैं।
टीसी नोटियाल, डायरेक्टर, फॉरेस्ट विभाग।