छलका यहां के सिखों का दर्द: 156 साल से पीढी दर पीढ़ी रह रहे हैं, फिर भी बाहरी, अब जाएं तो कहां
156 साल से शिलॉन्ग में पीढ़ी दर पीढ़ी रह रहे 300 सिख परिवारों की पीड़ा है कि हम इसके बाद भी बाहरी हैं। अब हम आखिर जाएं तो कहां जाएं।
शिलाॅन्ग, [इन्द्रप्रीत सिंह]। शिलाॅन्ग के पंजाबी लेन में रह रहे 300 सिख परिवारों पर उजड़ने का खतरा मंडरा रहा है। उनकी पीडा़ है कि यहां 156 साल से पीढ़ी दर पीढ़ी से रह रहे हैं, फिर भी बाहरी हैं। अब सवाल उठता है कि जाएं तो कहा जाएं। अपनी मातृभूमि से दूर शिलॉन्ग में गए गुरजीत सिंह के पुरखों को शायद यह नहीं सोचा होगा कि जिन लोगों की सेवा के लिए उन्होंने अपनी जन्मभूमि छोड़ी, उन्हें बरसों बाद यहां से खदेड़ने के आदेश जारी कर दिए जाएंगे। वह भी सिर्फ इसलिए कि उनकी दो एकड़ जमीन अब सोना उगलने लगी है। यह जमीन अब एक बड़े बाजार का हिस्सा है, जिसे यहां के खासी और गारो अनुसूचित जनजाति के लोग लेना चाहते हैं और इन्हें बाहरी बताते हुए जाने को कहा जा रहा है।
गुरजीत सिंह जैसे करीब 300 परिवारों पर आज उजड़ने का खतरा मंडरा रहा है। वह यहां सरकार चुन सकते हैं, राशनकार्ड के जरिये मिलने वाली सुविधाएं ले सकते हैं, लेकिन जमीन नहीं खरीद सकते। बेशक उन्हें यहां बसे हुए 156 साल हो चुके हैं, लेकिन वे आज भी बाहरी हैं। उन्हें रहने, कारोबार करने, दुकान आदि खोलने की पाबंदी है।
दैनिक जागरण ने शिलॉन्ग जाकर इनकी व्यथा को समझना चाहा, तो पता चला कि 300 सिख परिवारों के करीब 2500 लोग यहां रह रहे हैं। यहां की स्थानीय जनजाति खासी समुदाय के लोग इन्हें यहां से हटाना चाहते हैं। पिछले साल मई में खासी और पंजाबी समुदाय के लोगों में झगड़ा भी हुआ था। गुरुद्वारा साहिब को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई। जागरण की टीम यहां पहुंची तो जहां से पंजाबी लेन शुरू होती है, वहां अर्द्ध सैनिक बल के जवान तैनात हैं। पंजाबी समुदाय के लोगों की सभी दुकानें बंद थीं।
इस बाजार में मोटर मैकेनिक का काम करने वाले स्थानीय युवा संदीप सिंह ने बताया कि दुकानों को पिछले कई दिनों से बंद किया हुआ है। उसकी मां अमरजीत कौर ने बताया कि कई महीनों से कामकाज ठप है। लोग घरों के अंदर ही कुछ न कुछ बेचकर अपना काम चल रहे हैं। लेकिन ऐसा कब तक चलेगा, आप हमारे लिए कुछ करो।
स्थानीय गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सचिव गुरजीत सिंह ने बताया कि 1972 के मेघालय भूमि एक्ट के अनुसार कोई भी बाहरी व्यक्ति यहां पर जमीन खरीद नहीं सकता। मुझे समझ नहीं आता कि क्या 150 साल बाद भी हम बाहरी हैं। उन्होंने बताया कि हमसे रिलोकेशन की बात कर रहे हैं, लेकिन कर नहीं रहे हैं। कह रहे हैं, इस जमीन को छोडऩे के बदले आपको मिलेगा कुछ नहीं। कोई इनसे पूछने वाला हो कि हम जाएंगे कहां?
पट्टे पर जमीन देने का फैसला रद
यहां पर पंचायती सिस्टम उस तरह का नहीं है, जैसा पंजाब समेत देश के अन्य राज्यों में है। यहां पंचायत आपसी सहमति से चुनी जाती है, जिसकी नुमाइंदगी इस समय बिल्लू सिंह कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि आज भी यहां पर राजशाही सिस्टम काम करता है, लेकिन उस पर कंट्रोल राज्य सरकार का ही रहता है।
उन्होंने बताया कि हमने स्थानीय गुरुद्वारा साहिब ने अपने समुदाय के लिए स्कूल और मंदिर के लिए 2006 में जगह पट्टे पर देने के लिए राजा से आग्रह किया था, जो मान लिया गया था। लेकिन, खासी और गारो समुदाय के लोगों ने पट्टे पर जमीन देने का विरोध किया और उसे बाद में रिजेक्ट कर दिया गया। हम इसके खिलाफ अदालत में भी गए थे और फैसला हमारे पक्ष में हुआ। इसके बावजूद सरकार हमारे पक्ष में उतरने को तैयार नहीं है।
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उन्होंने बताया कि मौजूदा सरकार की सारी मशीनरी ही इस बात पर लगी हुई है कि किस तरह से इस दो एकड़ जमीन को वापस लिया जाए, लेकिन यहां बसने वाले सैकड़ों परिवारों का इन्हें कोई ख्याल नहीं है। आखिर यह सरकारें किन के लिए होती हैं?
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मेघालय के गृहमंत्री से मुलाकात करता पंजाब से गया प्रतिनिधिमंडल।
मेघालय के सीएम से नहीं मिल पाया पंजाब का शिष्टमंडल, गृहमंत्री ने दिया सिखों की सुरक्षा का भरोसा
मेघालय की राजधानी शिलाॅन्ग के पंजाबी लेन क्षेत्र में 156 साल से रह रहे सिखों को उजड़ने से बचाने के लिए पंजाब सरकार का शिष्टमंडल वीरवार को मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा से नहीं मिल पाया। वह दिल्ली में सर्वदलीय बैठक में व्यस्त थे। उनकी गैरमौजूदगी में पंजाब के सहकारिता मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा की अगुआई में गए शिष्टमंडल ने मेघालय के गृहमंत्री जेम्स के संगमा से मुलाकात की है। गृहमंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया है कि उनकी सरकार शिलाॅन्ग में रह रहे सिखों के अधिकारों की रक्षा करेगी। पंजाब सरकार के शिष्टमंडल में सहकारिता मंत्री रंधावा के अलावा सांसद जसवीर सिंह गिल, विधायक कुलबीर सिंह जीरा और विधायक कुलदीप सिंह वैद शामिल है। इसके अलावा योजना सचिव डीएस मांगट भी इसका हिस्सा है।
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बता दें कि इन नेताओं ने बुधवार को यहां की पंजाबी लेन में पीड़ित परिवारों से मुलाकात की थी। वीरवार को उनका मुख्यमंत्री से मिलने का कार्यक्रम था। शिष्टमंडल को बताया गया था कि मुख्यमंत्री सुबह शिष्टमंडल के साथ मुलाकात करेंगे लेकिन वह दिल्ली से नही लौट सके।
मेघालय के गृहमंत्री ने विवाद के हल की उम्मीद जताई
पंजाब के शिष्टमंडल से बताचीत करने के अलावा मेघालय के गृहमंत्री जेम्स के संगमा ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से वीरवार को फोन पर बातचीत की। जेम्स ने उन्हें आश्वासन दिया कि शिलांग में सिख कम्युनिटी को किसी भी तरह की आंच नहीं आने दी जाएगी। उन्होंने कहा कि शिलाॅन्ग में सिख समुदाय के लोगों का भूमि संबंधी विवाद हल करने के लिए हाई पावर कमेटी बनाई गई है। कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद इस मसले का हल कर लिया जाएगा।
पंजाब के शिष्टमंडल ने भी गृहमंत्री जेम्स के संगमा के साथ हुई मुलाकात के बाद संतुष्टि व्यक्त की है। सहकारिता मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा गृहमंत्री के साथ अच्छे माहौल में बातचीत हुई है। उन्हें उम्मीद है कि यह मसला जल्द हल कर लिया जाएगा।
यह है मामला
पिछले दिनों शिलाम्न्ग एक सिख युवती के साथ कथित छेड़छाड़ के बाद खासी समुदाय के एक बस कंडक्टर के साथ मारपीट हुई। सोशल मीडिया पर कंडक्टर की मौत की अफवाह के बाद हालात बिगड़ गए थे। केंद्र सरकार को पुलिस फोर्स तैनात करनी पड़ी थी। स्थानीय खासी संगठनों ने इस बस्ती को अवैध करार देते हुए सिखों को हटाने की मांग उठाई है। आतंक की वजह से 200 ज्यादा सिख परिवारों को चार दिनों तक गुरुद्वारे में शरण लेनी पड़ी थी।
गुरुद्वारा गुरु नानक दरबार साहिब का दौरा किया
रंधावा और सांसद जसबीर सिंह डिंपा ने स्थानीय गुरु नानक दरबार गुरुद्वारा साहिब का भी दौरा किया और वहां पर विभिन्न लोगों से बातचीत की। उन्हें पता चला कि इस जगह से उन्हें न निकाले जाने को लेकर हाई कोर्ट में चल रहे केस में भी पंजाबी समुदाय को सफलता मिली है, लेकिन सरकार उनकी कोई बात नहीं सुन रही है। इसलिए उन्होंने अदालत की अवमानना का केस भी दायर कर दिया है।
हरसिमरत ने भी उठाया था मामला
गौरतलब है कि यहां के पंजाबी समुदाय के लोगों पर हुए हमले के बाद शिरोमणि अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने भी मुख्यमंत्री कौनराड संगमा से बात की थी। इसके अलावा दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने भी सिख समुदाय को आश्वासन दिया है कि वह उनकी हर संभव मदद करेंगे।
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