सिर्फ स्टडी या सही में प्रॉपर्टी का कनवर्जन हो सकेगा शुरू
अगस्त 2019 में पंजाब-हरियाणा अब दिल्ली पैटर्न की स्टडी करने का फैसला।
बलवान करिवाल, चंडीगढ़ : 2015 में इंडस्ट्रियल पॉलिसी बनाकर इंडस्ट्री से जुड़ी मुश्किलों का हल करने का दावा किया गया। लेकिन इस दावे को पांच साल बीत गए कुछ नहीं बदला, सिर्फ नाम बदलकर इंडस्ट्रियल एंड बिजनेस पार्क कर दिया गया। इंडस्ट्री की सबसे बड़ी दिक्कत प्रॉपर्टी की लीज से लीज और लीज से फ्री होल्ड कनवर्जन नहीं शुरू होना है। अगस्त 2019 में इस समस्या का हल निकालने के लिए नेबरिग स्टेट्स यानी पंजाब और हरियाणा की पॉलिसी को स्टडी करने का फैसला लिया गया था। यह फैसला एडवाइजर मनोज परिदा की अध्यक्षता में इंडस्ट्रियल एडवाइजरी कमेटी की मीटिग में लिया गया था। लेकिन यह स्टडी मीटिग तक ही सिमट कर रह गई। छह महीने बाद अब पंजाब-हरियाणा के बजाय दिल्ली पैटर्न को स्टडी करने का फैसला लिया गया। यह फैसला पिछले सप्ताह अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर कमेटी की मीटिग में लिया गया। ऐसा भी हो सकता है कि कुछ महीनों बाद फिर कोई स्टडी की बात हो। लेकिन सही में इंडस्ट्रियलिस्ट्स को राहत कब यह सवाल बना हुआ है। इंडस्ट्रियलिस्ट्स पंजाब और हरियाणा की पॉलिसी से खुश
पंजाब में लीज से फ्री होल्ड प्रॉपर्टी कनवर्जन 20 रुपये प्रति स्क्वेयर फीट के हिसाब से होती है। इसी तरह से हरियाणा में भी कनवर्जन रेट रीजनेबल हैं। चंडीगढ़ के इंडस्ट्रियलिस्ट्स भी लंबे समय से इसी आधार पर कनवर्जन शुरू करने की मांग कर रहे हैं। जबकि प्रशासन पहले प्लॉट के कलेक्टर रेट के हिसाब से कनवर्जन के पक्ष में था। अब दिल्ली पैटर्न की बात हो रही है। कनवर्जन नहीं होने से बैंक लोन तक नहीं देते
पिछले 36 साल से इंडस्ट्रियलिस्ट्स को लीज से लीज होल्ड प्रॉपर्टी ट्रांसफर का इंतजार है। बड़ी बात तो यह है कि अभी तो लीज से लीज भी प्लॉट ट्रांसफर नहीं हो रहे, लीज से फ्री होल्ड तो अभी दूर की बात है। प्रशासन ने फेज-1 और 2 दोनों ही एरिया में इंडस्ट्रियलिस्ट्स को प्लॉट 1973 से 1982 के बीच अलॉट किए थे। यह प्लॉट इस शर्त पर अलॉट किए गए थे कि 15 साल बाद अनअर्न्ड प्रॉफिट पर प्रशासन ट्रांसफर की मंजूरी देगा। लेकिन 35 साल बीत जाने के बाद भी प्रशासन आज तक ट्रांसफर के लिए कोई पॉलिसी नहीं बना पाया है। अनअर्न्ड प्रॉफिट का मतलब ओरिजिनल अलॉटी द्वारा दी गई राशि और ट्रांसफर के समय प्रॉपर्टी के मार्केट रेट के बीच अंतर है। अभी तक यह प्रॉपर्टी जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी बेस पर ही ट्रांसफर होती रही है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के बाद अब जीपीए भी बंद हो गई है। प्लॉट का टाइटल क्लीयर नहीं होने से बैंक प्रॉपर्टी पर लोन तक नहीं देते। जिससे इंडस्ट्री को आगे बढ़ाया जा सके। इंडस्ट्री की राह में सबसे बड़ी मुश्किल लीज-टू-लीज और लीज टू फ्री होल्ड प्रॉपर्टी नहीं होना है। टाइटल क्लीयर नहीं होने से बैंक लोन तक नहीं देते जिससे इंडस्ट्री का विस्तार हो सके। अगस्त में इंडस्ट्रियल एडवाइजरी कमेटी मीटिग में नेबरिग स्टेट पॉलिसी स्टडी करने का फैसला लिया गया था। लेकिन अब दिल्ली पैटर्न की बात हो रही है। इंडस्ट्रियलिस्ट्स के मन में अब सवाल है कि स्टडी खत्म होकर असल में राहत कब मिलेगी। प्रॉपर्टी ट्रांसफर नहीं होने से इंडस्ट्रियलिस्ट्स अपना बिजनेस तक फेमिली में बांट नहीं पा रहे।
-नवीन मंगलानी, प्रेसिडेंट, चैंबर ऑफ चंडीगढ़ इंडस्ट्रीज