बेहतर स्पोर्ट्स इंफ्रास्टक्चर का सच, साइकिलिंग के लिए शहर में नहीं एक भी वेलोड्रम Chandigarh News
पंजाब यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले साइकिलिस्ट हरजीत सिंह पन्नू बताते हैं कि साइकिंलिंग को प्रमोट करने के लिए जमीनी स्तर पर काम करना होगा।
चंडीगढ़, [विकास शर्मा]। खेल चाहे कोई भी हो लेकिन मेडल तालिका में चंडीगढ़ के खिलाड़ी जरूर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। शहर में बेहतर स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर है, इसी की दुहाई देकर हाल में यूटीसीए ने बीसीसीआइ से मान्यता प्राप्त की। यूटी स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट भी पिछले कई सालों से तीन खेल एकेडमीज चला रहा है,बावजूद इसके साइकिलिंग के प्रति यूटी स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट और पंजाब यूनिवर्सिटी का उदासीन रवैया रहा है। शहर में सैंकड़ों प्रोफेशनल साइकिलिस्ट हैं लेकिन एक भी वेलोड्रम नहीं है। अॉल इंडिया यूनिवर्सिटी में सात से ज्यादा मेडल जीत चुके हरजीत सिंह पन्नू बताते हैं कि साइकिलिंग कैसे अन्य खेलों से पिछड़ गई।
साइकिलिस्ट हरजीत सिंह पन्नू।
साइकिलिंग को प्रमोट करने के लिए जमीनी स्तर पर करना होगा काम
पंजाब यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले साइकिलिस्ट हरजीत सिंह पन्नू बताते हैं कि साइकिंलिंग को प्रमोट करने के लिए जमीनी स्तर पर काम करना होगा। हर मां -बाप अपने बच्चे को बचपन में ही साइकिल लेकर देते हैं, बच्चे भी बड़े शौक से साइकिलिंग सीखते हैं। बावजूद इसके वह साइकिल पर स्कूल नहीं जाते, बाजार नहीं जाते। दिन के समय साइकिलिंग करने से डरते हैं। परिजनों को डर लगता है टूटी सड़कों का, तेज रफ्तार वाहनों का, बेढंग ट्रैफिक व्यवस्था का। यही वजह है कि लोग साइकिंलिंग करने से डरते हैं। आज से 20 साल पहले पीछे देखें तो ज्यादातर बच्चे साइकिल पर ही स्कूल जाते थे। यह कल्चर अब खत्म हो गया है। पंजाब में मात्र तीन वेलोड्रम है, इनमें एनआईएस पटियाला में, पंजाबी यूनविर्सिटी पटियाला में, एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना में और गुरूनानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर में वेलोड्रम है। अगर ज्यादा वेलोड्रम होंगे, तो उसमें खेल प्रतियोगिताएं होंगी, जिससे यकीन साइकिंलिंग का उत्साह बढ़ेगा।
साइकिल पर खत्म हो कस्टम ड्यूटी
हरजीत कहते हैं साइकिल पर खत्म कस्टम ड्यूटी खत्म होनी चाहिए। किसी भी अच्छे टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए साइकिलिस्ट को चार से छह लाख रुपये की साइकिल चाहिए होती है। प्रोफेशनल साइकिल का देश में इन साइकिलों को निर्माण नहीं होता है। ऐसे में डीलर्स के माध्यम से खिलाड़ियों को यह साइकिलें विदेशों से मंगवानी पड़ती है। दिक्कत यह है कि अगर खिलाड़ी दो लाख साइकिल विदेश से मंगवाता है तो उस पर पचास हजार की कस्टम ड्यूटी लग जाती है। ऐसे में कई प्रतिभान खिलाड़ी इस खेल को बीच में ही छोड़ देते हैं। साइकिल पर सरकार को भी अनुदान देना चाहिए।
साइकिलिंग खिलाड़ियों को नहीं मिलते स्पांसर
साइकिलिस्ट हरजीत सिंह पन्नू ने बताया कि किसी भी खेल को प्रमोट करने के लिए स्पोंसर होना बेहद जरूरी है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि क्रिकेट के सिवाय अन्य सभी खेलों की अनदेखी की जाती है। आइपीएल की तर्ज पर कुछ खेलों के लीग मुकाबले शुरू होने से उन खेलों के स्तर में सुधार हुआ है। स्थानीय स्तर पर अगर खेलों को प्रोत्सहन मिले तो खेल के स्तर में सुधार होता है। क्रिकेट के टूर्नामेंट आपको हर गांव में होते हुए दिखाई देंगे, लेकिन साइकिलिंग के प्रति लोग उतना उत्साह नहीं दिखाते। खेल को स्पांसर मिलेंगे, तो यकीन इस खेल के स्तर में सुधार होगा।
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