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तिरझी नजरः सिर्फ नाम के वीआईपी... और खतरे में हैं डीजीपी साहब

चंडीगढ़ में पुलिस प्रशासन से जुड़ी कुछ दिलचस्प चर्चाओं को संजोकर हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं तिरझी नजर कॉलम में।आइए डालते हैं इस पर एक नजर।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Fri, 17 Jan 2020 10:40 AM (IST)Updated: Fri, 17 Jan 2020 10:40 AM (IST)
तिरझी नजरः सिर्फ नाम के वीआईपी... और खतरे में हैं डीजीपी साहब
तिरझी नजरः सिर्फ नाम के वीआईपी... और खतरे में हैं डीजीपी साहब

चंडीगढ़, जेएनएन। सिटी ब्यूटीफुल की बड़ी खबरें तो अखबारों की सुर्खियां बन जाती हैं लेकिन कई दिलचस्प छोटी-बड़ी बातें लोगों तक नहीं पहुंच पाती हैं। पुलिस प्रशासन से जुड़े इन्हीं चर्चाओं को आपके लिए तिरझी नजर कॉलम में संजोया है समाचार संपादक बरिंद्र सिंह रावत ने। आइए, डालते हैं एक नजर।

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सिर्फ नाम के वीआइपी

शहर का सबसे वीआइपी एरिया। एक नहीं, दो-दो पूर्व केंद्रीय मंत्रियों की कोठियां। शहर की सबसे महंगी कोठी खरीदने वाले देश के चर्चित कारोबारी का बंगला भी इसी एरिया में। पर क्या करें जनाब लगता है प्रशासन का कोई बाबू इनकी सुनता ही नहीं। पूर्व केंद्रीय मंत्री हरमोहन धवन और विनोद शर्मा की कोठियां भीतर से तो आलीशान हैं लेकिन बाहर निकलते ही उबड़-खाबड़ सड़क में गाड़ियां हिचकोले लेते हुए चलती है। इनके बगल में ही ऐसे कारोबारी का एक एकड़ का बंगला है जिसने अपनी एक डील ही डेढ़ हजार करोड़ में की थी। बंगला भी 40 करोड़ से अधिक में खरीदा। पर क्या करें इन वीआइपी के एरिया से अच्छी सड़कें तो बाबुओं के सरकारी मकानों के बाहर की है। फिर वीआइपी कौन हुआ। चंडीगढ़ में सरकार तो बाबुओं की ही है। नेता तो आते जाते हैं। बाबू तो रिटायरमेंट तक जमे रहेंगे।

ठेके पर हेडमास्टर

ठेके पर टेक्नीशियन, स्वीपर, ड्राइवर तो सुने थे, अब हेडमास्टर भी ठेके पर। एक-दो नहीं सात हेडमास्टर ठेके पर रख लिए एजुकेशन डिपार्टमेंट ने। अब स्थिति यह हो गई कि टीचर सीनियर हैं और हेडमास्टर जूनियर। हेडमास्टर साहब न किसी को डांट सकते हैं और न ही किसी के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। कोई फाइनेंशियल पावर तक नहीं है। अब सरकारी टीचर्स उन महानुभाव को खोज रहे हैं जिसने अफसरों को ठेके पर हेडमास्टर रखने का आइडिया दिया। पहले ही शहर के स्कूलों में पंजाब और हरियाणा से डेपुटेशन पर कई प्रिंसिपल हैं। अब ठेके के हेडमास्टर आने से प्रमोशन का इंतजार लंबा हो जाएगा। उन्हें डर है कि कहीं जेबीटी और टीजीटी के पद से ही रिटायर न हो जाएं। ठेके पर लगे हेडमास्टर साहब को सिर्फ इस बात की खुशी है कि वेतन मोटा मिल गया और नाम के आगे हेडमास्टर लग गया। एक्सपीरियंस ही हो जाएगा, वह भी चंडीगढ़ जैसे शहर में।

डीजीपी साहब की पार्किंग में गाड़ियों की नो एंट्री

शहर के डीजीपी साहब को खतरा है। इसलिए तो जनाब अपने ऑफिस के पीछे पार्किग में किसी को गाड़ी खड़ी नहीं करने देते। पुलिस हेडक्वार्टर और सचिवालय के बाहर सड़कों पर गाड़ियां खड़ी हैं लेकिन डीजीपी साहब की पार्किग में गाड़ियों की नो एंट्री है। आतंकवाद के दौरान पुलिस अफसरों पर खतरे को देखते हुए डीजीपी ऑफिस की बैकसाइड पार्किग बंद की गई थी। आतंकवाद का साया खत्म हुए कई दशक बीत गए लेकिन पुलिस अफसरों में अभी डर बरकरार है। डीजीपी साहब से बड़े अफसरों को कोई खतरा नहीं है। उनके ऑफिस की पार्किग सभी के लिए खुली है। शहर में सड़कों पर गाड़ी खड़ी करने का चालान है। धड़ल्ले से गाड़ियों के रांग पार्किग के चालान काटे जा रहे हैं लेकिन डीजीपी साहब के ऑफिस के बाहर सब कुछ माफ है। लोगों को पार्किग की जगह नहीं मिलती और डीजीपी साहब पार्किग में किसी को गाड़ी नहीं करने देते।

बिजनेस पार्क है या कबाड़ी बाजार

सिर्फ नाम बदलने से कुछ नहीं होता। नाम के साथ साथ काम भी होना चाहिए। प्रशासन ने इंडस्टियल एरिया का नाम बदलकर चंडीगढ़ बिजनेस पार्क कर दिया लेकिन हाल बेहाल है। एंट्री प्वाइंट पर सिर्फ दो फव्वारे और भीतर जगह-जगह अवैध कब्जे। नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली बात लागू हो रही है। अफसरों ने नाम बदलकर वाहवाही तो लूट ली लेकिन ग्राउंड लेवल पर काम कुछ नहीं किया। इंडस्टियलिस्ट्स कह रहे हैं कि नाम बदलने के बजाय अफसर कुछ काम कर लेते। अफसर भी क्या करें, पॉलिसी में नाम बदलने की घोषणा जो पहले हो गई थी। अब काम कोई हो न हो नाम तो बदल ही दिया। अब हाल यह है कि बिजनेस पार्क कबाड़ी बाजार बना हुआ है। अवैध कब्जों की भरमार है। अफसर कह रहे हैं नाम बदल गया है, जल्द डेवलपमेंट वर्क भी शुरू हो जाएगा। इंतजार करो सब कुछ धीरे-धीरे होगा।


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