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यह देखा तो मिल्खा को याद आई जवानी, कहा- बस अब एक गोल्ड मिल जाए

दिल्ली के मैडम तुसाद म्यूजियम में शहीद भगत सिंह और कपिल देव के साथ मिल्खा सिंह की मोम की प्रतिमा लगेगी। इस प्रतिमा को 20 कलाकारों ने तैयार किया है।

By Ankit KumarEdited By: Published: Wed, 27 Sep 2017 12:54 PM (IST)Updated: Wed, 27 Sep 2017 06:34 PM (IST)
यह देखा तो मिल्खा को याद आई जवानी, कहा- बस अब एक गोल्ड मिल जाए

चंडीगढ़, [शंकर सिंह]। मैैं हिंदी में बात करूं तो कोई एतराज तो नहीं, दरअसल मेरे साथ बैठे दोनों सज्जन ने बताया कि उन्हें हिंदी नहीं आती, लेकिन मैैं गर्व से बोलता हूं कि मुझे हिंदी आती है। मैैंने कुल 80 अंतरराष्ट्रीय रेस में हिस्सा लिया। हर दौड़ के बाद हिंदी में ही इंटरव्यू दिया। मुझे लगता है कि हमें अपनी राष्ट्रीय भाषा में ही बात करनी चाहिए।

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दूसरी बात, यह प्रतिमा 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स की नहीं, बल्कि 1960 में पाकिस्तान में मिले फ्लाइंग सिख के टैग के दौरान की है। यह बहुत खूबसूरत बना है, इसे देखकर तो मुझे मेरी जवानी याद आ गई। पद्मश्री मिल्खा सिंह ने जब मैडम तुसाद में लगने वाली अपनी प्रतिमा को देखा तो कुछ इसी अंदाज में अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की। उन्होंने मंगलवार को होटल जेडब्ल्यू मैरियट-34 में अपनी मोम की प्रतिमा का अनावरण किया। इस दौरान मर्लिन एंटरटेनमेंट्स इंडिया के डायरेक्टर अंशुल जैन भी उपस्थित थे। 

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मेहनत करके ही मिल्खा बना जा सकता है

मिल्खा सिंह ने कहा, मैैं इस प्रतिमा के सामने यही कहना चाहता हूं कि मेहनत ही सब कुछ है। एक शेर है कि हाथ की लकीरों से जिंदगी नहीं बनती, अज़म हमारा भी कुछ हिस्सा है जिंदगी बनाने में। मैैंने कभी हाथ की लकीरें नहीं देखी। शुरू से मेहनत ही की है, कड़ी मेहनत। आखिर अमिताभ बच्चन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहां से उठे हैैं? ये मेहनत करके ही उठे हैैं। मुझे नहीं पता था कि रेस क्या होती है? 100 मीटर- 400 मीटर की दौड़ क्या होती है। लेकिन जब मुझे पता चला तो मैैंने कड़ी मेहनत से 400 मीटर की रेस में रिकॉर्ड बनाया। कड़ी मेहनत न होती तो मैैं आज यहां न होता।

दौड़ते-दौड़ते गिर जाता और कोच एक और चक्कर लगाने को कहते

उन्होंने कहा, मुझे याद है कि प्रैक्टिस ग्राउंड में तब तक दौड़ता था जब तक गिर नहीं जाता। इसके बाद कोच आते और कहते कि एक और चक्कर बस। मेरे मुंह से खून निकलता था, तो भी मैैं दौड़ता था, क्योंकि कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है।

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तीन-चार कोठियां मांग लेता पर मैंने एक दिन की छुट्टी मांगी

1958 का कॉमनवेल्थ गेम्स मुझे याद है। करीब एक लाख अंग्रेजों के बीच जब वहां की महारानी मुझे मेडल पहना रही थीं तो सिर गर्व से ऊंचा उठ गया था। जब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पूछा कि क्या चाहते हो? मैैं तो देसी बंदा था, इसलिए देशभर में एक दिन की छुट्टी मांग ली।

बस अब एक गोल्ड मिल जाए...

मिल्खा ने कहा कि उनको जिंदगी में सब कुछ मिला, अब बस एक खिलाड़ी चाहिए जो देश के लिए गोल्ड ले आए। एक मेडल मेरे हाथों से ओलंपिक में छूट गया था, वह दर्द आज तक मुझे है। कोई एथलीट यह सपना पूरा कर दे तो शायद जिंदगी से मुझे और कुछ नहीं चाहिए।

6 महीने में 20 कलाकारों ने लंदन में तैयार किया है इस प्रतिमा को

अंशुल ने कहा कि इस प्रतिमा को लंदन में ही तैयार करवाया गया है। हम हर प्रतिमा को तैयार करने के लिए कम से कम 4 से 6 महीने लेते हैैं। इसके लिए हम जिसकी प्रतिमा बनाते हैैं उसके ऊपर पूरी रिसर्च करते हैैं। उससे जुड़ी वीडियो, तस्वीरें, और उनके परिवार से मिलकर सभी तरह की जानकारी लेकर ही प्रतिमा को बनाते हैैं। हम दो तरह से प्रतिमा को बनाते हैैं, एक नॉर्मल और डायनेमिक। हमने मिल्खा सिंह की डायनेमिक स्टाइल में प्रतिमा बनाई है, जो मुश्किल होती है।

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