मानेसर जमीन घोटाला : हुड्डा एम्स में भर्ती, कोर्ट ने दी व्यक्तिगत पेशी में छूट
चंडीगढ़ : हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौ. भूपेंद्र सिंह हुड्डा मानेसर जमीन घोटाले में वीरवार को
चंडीगढ़ : हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौ. भूपेंद्र सिंह हुड्डा मानेसर जमीन घोटाले में वीरवार को पंचकूला स्थित विशेष सीबीआइ कोर्ट में पेश नहीं हुए। हुड्डा के वकील आरएस चीमा ने कोर्ट में हुड्डा का मेडिकल पेश करते हुए कहा कि वह एम्स में भर्ती है, इसलिए कोर्ट नहीं आ सकते। मेडिकल ग्राउंड पर कोर्ट ने हुड्डा को व्यक्तिगत पेशी से छूट दे दी।
मानेसर जमीन घोटाले में सीबीआइ की अदालत में 6 अप्रैल को चालान की स्क्रूटनी पूरी होने के बाद विशेष सीबीआइ जज जगदीप सिंह की कोर्ट में भूपेंद्र सिंह हुड्डा सहित लगभग 34 लोगों के खिलाफ सम्मन जारी करते हुए सभी को 19 अप्रैल को अदालत में पेश होने के आदेश दिए थे। इस मामले में हुड्डा के पूर्व प्रधान सचिव एमएल तायल, हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के पूर्व मु य प्रशासक एसएस ढिल्लो, संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य पूर्व आइएएस अफसर छतर सिंह, पूर्व डीटीपी जसवंत, एबीडब्ल्यू बिल्डरर्स अतुल बंसल सहित कई बिल्डरों का नाम आया है। 2 फरवरी को सीबीआइ ने 80 हजार पेजों की चार्जशीट कोर्ट में पेश की थी।
सीबीआइ ने इस आरोप पर मामला दर्ज किया था कि 27 अगस्त 2004 से 27 अगस्त 2007 के बीच निजी बिल्डरों ने हरियाणा सरकार के अज्ञात जनसेवकों के साथ मिलीभगत कर गुडग़ाव जिले में मानसेर, नौरंगपुर और लखनौला गावों के किसानों और भूस्वामियों को सरकार द्वारा अधिग्रहण का भय दिखाकर उनकी करीब 400 एकड़ जमीन औने-पौने दाम पर खरीद ली थी। सितंबर 2015 को भाजपा सरकार ने इस मामले की जाच सीबीआइ को सौंप दी थी। इस मामले में ईडी ने भी हुड्डा के खिलाफ सितंबर 2016 में मनी लॉन्ड्रिंग का भी केस दर्ज किया था। ईडी ने हुड्डा और अन्य के खिलाफ सीबीआइ की एफआइआर के आधार पर आपराधिक मामला दर्ज किया था। यूं चला पूरा प्रकरण
काग्रेस की तत्कालीन हुड्डा सरकार के कार्यकाल के दौरान करीब 900 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर उसे बिल्डर्स को औने-पौने दाम पर बेचने का आरोप है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कार्यकाल के दौरान मानेसर, नौरंगपुर और लखनौला में करीब 912 एकड़ जमीन के अधिग्रहण के लिए अधिसूचना जारी की गई थी। ग्रामीणों को सेक्शन 4, 6 और 9 के नोटिस थमा दिए थे। जिसके बाद हरियाणा सरकार से पहले कुछ निजी बिल्डरों ने किसानों को अधिग्रहण की धमकी देकर उनकी जमीन औने-पौने दाम में खरीदनी शुरू कर दी। यह पूरा घटनाक्त्रम तत्कालीन सरकार के संरक्षण में चल रहा था। इसी दौरान उद्योग निदेशक ने सरकारी नियमों की अवहेलना करते हुए बिल्डर द्वारा खरीदी गई जमीन को अधिग्रहण प्रोसेस से रिलीज कर दिया। आरोप है कि निजी बिल्डरों ने तत्कालीन सरकार तथा संबंधित अधिकारियों के साथ मिलकर करीब 400 एकड़ जमीन को खरीदा था। अधिसूचना रद्द करने से नाखुश किसान सीबीआई जाच की माग को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे। जिसके बाद मामले की सीबीआइ जाच के आदेश दिए थे। रिपोर्ट : राजेश मलकानिया