1962 की जंग में नेताओं व मिलिट्री लीडरशिप ने शर्मिंदा किया : वीके सिंह
पूर्व सेनाध्यक्ष व विदेश राज्य मंत्री ने चीन के साथ 1962 के युद्ध में भारत की पराजय के लिए उस समय के राजनीतिक नेतृत्व अौर सेना के नेतृत्व काे जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि 1962 के युद्ध में नेताओं व मिलिट्री लीडरशिप ने देश को शर्मिंदा किया।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। पूर्व सेना अध्यक्ष एवं विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह ने चीन के साथ 1962 के यु्द्ध में तत्कालीन राजनेताओं और मिलिट्री लीडरशिप पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा यह ऐसा युद्ध था, जिसमें जवानों ने तो बेहतरीन काम किया, लेकिन राजनीतिक आकाओं व मिलिट्री लीडरशिप ने हमें निराश व शर्मिंदा किया। जो लोग इतिहास से सबक नहीं लेते, उन्हें दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं।
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वह यहां पंजाब विश्वविद्यालय में 1962 के भारत-चीन युद्ध पर आयोजित सेमिनार को संबोधित कर रहे थे। इसका आयोजन विश्वविद्यालय के डिफेंस एंड नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज विभाग की ओर से किया गया था। इसमें कई विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे।
कहा, सेना को नहीं था निर्णय लेने का अधिकार
वीके सिंह ने कहा कि युद्ध के दौरान मिलिट्री को निर्णय लेने के अधिकार से दूर रखा गया। देश पर काबिज राजनीतिक आकाओं ने सेना को अलग-थलग कर देश की सुरक्षा को ताक पर रख दिया। जवानों को निम्न श्रेणी के हथियार दिए गए थे। बंदूक व बारूद न के बराबर थे। उन्हें दुर्गम पहाड़ी जगहों पर लडऩे का युद्ध कौशल नहीं सिखाया गया था। उन्होंने कहा, हमें हमेशा दुश्मन से सतर्क रहना चाहिए। हम रिलेक्स होकर नहीं बैठ सकते।
पंजाब विश्वविद्यालय में सेमिनार में जनरल वीके सिंह और अन्य विशेषज्ञ।
विवादों पर गोलमोल जवाब
इस दौरान पत्रकारों ने पूछा कि बीते दो साल में देश भर में जिस तरह विवादों का माहौल बना है, क्या यह सही था। उन्होंने इसका जवाब खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाले मुहावरे से दिया। उनसे पूछा गया कि जिस तरह देश भर में देश के खिलाफ काम करने वाली ताकतों पर देशद्रोह का केस दायर किया गया है, क्या पंजाब में गाडिय़ों पर भिंडरावाले की तस्वीर लगाने वालों पर भी ऐसी कार्रवाई होगी। इस पर उन्होंने कहा कि आप विरोध शुरू करो, सरकार आपके पीछे खड़ी होगी। जम्मू-कश्मीर में अफजल गुरु को शहीद बताने वाली पीडीपी के साथ सरकार बनाने के मुद्दे पर भी उन्होंने कोई सीधा जवाब नहीं दिया।
हम 'भाई-भाई' में फंसे रहे
सेवानिवृत मेजर जनरल राजेंद्र नाथ ने कहा कि युद्ध के दौरान हमने गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत पर काम किया और इसके शिकार भी बने। उस वक्त हमारी विदेश नीति सही नहीं थी। हमारे बॉर्डर तय नहीं थे। चीन ने पहले से ही युद्ध की साजिश रच ली थी। पंचशील सिद्धांत और 'हिंदी चीनी भाई-भाई' का नारा दिया गया, लेकिन चीन ने युद्ध थोप दिया। हम भाई-भाई के नारे में फंसे रहे।
हम युद्ध के लिए तैयार नहीं थे
ब्रिगेडियर दर्शन सिंह खुल्लर ने कहा कि हमारी तैयारी उस समय ऐसी नहीं थी, जैसी होनी चाहिए थी। पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अरुण कुमार ग्राेवर ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम लगातार होते रहने चाहिए। इनसे लोगों को नई दिशा तय करने का मौका मिलता है। वहीं, डिफेंस स्टडी के हेड और कार्यक्रम के आयोजक प्रो. राकेश दत्ता ने डिफेंस स्ट्रेटजीस पर नए कोर्स व रिसर्च शुरू करने की इच्छा जताई।