नड्डा नहीं माने तो SAD ने मजबूरी में लिया हरसिमरत के इस्तीफे का फैसला, बदलेगी पंजाब की सियासत
शिअद ने केंद्रीय कैबिेनट से हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफे का फैसला अचानक नहीं किया। भाजपा व जेपी नड़्डा को मनाने में विफल रहने के बाद उसने यह कदम उठाया।
चंडीगढ़, [कैलाश नाथ]। केंद्रीय कैबिनेट से हरसिमरत कौर के इस्तीफे का फैसला शिरोमणि अकाली दल ने अचानक नहीं लिया। कृषि अध्यादेशों और विधेयकों को लेकर किसानों के बढ़ते विरोध को देखते हुए शिरोमणि अकाली दल ने पहले ही तय कर लिया था कि हरसिमरत के इस्तीफे के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं रह गया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी अकाली दल को कोई सकारात्मक संकेत नहीं मिले थे। इसके बाद ही कोर कमेटी में यह निर्णय हो गया था कि अगर केंद्रीय कैबिनेट से हरसिमरत कौर इस्तीफा नहीं देगी तो पार्टी का कोर किसान वोट बैंक छिटक सकता है।
अंतिम समय तक हरसिमरत कौर इस्तीफा देने के पक्ष में नहीं थी
जानकारी के अनुसार कृषि अध्यादेशों के आने के बाद कांग्रेस के रुख को देखते हुए अकाली दल को यह आशंका सताने लगी थी कि कहीं पंथक के बाद किसानी वोट बैंक भी उनसे छिटक न जाए। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा एमएसपी जारी रहने को लेकर अकाली दल को लिखे गए पत्र और पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा वीडियो जारी कर किसानों के गुस्से को शांत करने की कोशिश भी विफल साबित हुई थी।
राजनीतिक हालातों से निपटने के लिए सुखबीर बादल ने कोर कमेटी की बैठक की। इसमें इस बात को लेकर एक राय बनी की अगर कृषि विधेयक लोक सभा में आते हैं तो अकाली दल के पास केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के अलावा कोई और चारा नहीं रह जाएगा। इस पर सुखबीर बादल भी सहमत थे। पार्टी के उच्च स्तरीय सूत्र बताते हैं कि हरसिमरत कौर इस्तीफा देने के पक्ष में नहीं थीं।
इसके बाद पार्टी ने गृह मंत्री अमित शाह से मिलने का फैसला किया लेकिन उनके (अमित शाह) के बीमार होने के कारण अकाली दल का चार सदस्यीय शिष्ट मंडल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिला। इस शिष्टमंडल में सुखबीर बादल, प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा, बलविंदर सिंह भुंदड़ और नरेश गुजराल शामिल थे। अकाली दल चाहता था कि भाजपा अध्यादेश को स्टडी कमेटी के पास भेज दे, ताकि अकाली दल को कुछ और समय मिल जाए। जानकारी के अनुसार नड्डा ने अकाली दल की बात को सुना लेकिन कोई सकारात्मक संकेत नहीं दिए। इस बीच 14 सितंबर को ही भाजपा ने लोक सभा में बिल पेश कर दिया। जिसके बाद सुखबीर बादल बिल के विरोध में उतर आए।
अकाली दल की उम्मीद के विपरीत प्रधानमंत्री ने किया इस्तीफे को स्वीकार
जानकारी के अनुसार अकाली दल को अंत समय तक उम्मीद थी कि भाजपा बिल को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेज सकती है लेकिन ऐसा न होता देख अकाली दल को केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल से इ्स्तीफा दिलवाना पड़ा। जानकारी के अनुसार अकाली दल को अंत में यह भी उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस्तीफे को रद्द कर सकते है लेकिन ऐसा नहीं हुआ। प्रधानमंत्री ने वीरवार की रात को ही इस्तीफा मंजूर कर अकाली दल को कड़ा झटका दे दिया।
विरोध पर फैसला नहीं ले पा रही अकाली दल
अकाली दल अभी यह तय नहीं कर पा रही है कि वह कृषि विधेयक को लेकर वह सड़क पर उतरे या नहीं। कमोवेश यह ही स्थिति एनडीए से नाता तोड़ने को लेकर है। अकाली दल के राज्य सभा सदस्य बलविंदर सिंह भुंदड़ भले ही कह रहे है कि अकाली दल को भाजपा की बैसाखी की जरूरत नहीं है। लेकिन शुक्रवार को हुई पार्टी की कोर कमेटी की बैठक में यह फैसला नहीं हो पाया कि कृषि विधेयक को लेकर अकाली दल सड़क पर उतर कर भाजपा सरकार का विरोध करे या नहीं।
गठबंधन में रहते हुए विरोध किया तो भाजपा के साथ संबंध हमेशा के लिए बिगड़ सकते है और अगर नहीं करते है तो किसान वोट बैंक दूर न हो जाए। हालांकि हरसिमरत कौर बादल किसानों के हित में सड़कों पर उतरने का दावा कर रही है। लेकिन पार्टी के अंदर अभी भी एक राय नहीं बन पाई है।
हरियाणा और दिल्ली में भी भाजपा ने दिया था झटका
भारतीय जनता पार्टी ने अकाली दल हरियाणा और दिल्ली विधान सभा चुनाव में भी झटका दिया था। दोनों ही चुनावी क्षेत्र में न सिर्फ भाजपा ने अकाली दल से गठबंधन तोड़ लिया था। गठबंधन टूटने के बाद दिल्ली में अकाली दल ने भाजपा को बाहर से समर्थन दिया था।