युवा कलाकार प्रिवेंद्र बोले-रिपोर्ट कार्ड में गलत नाम छपा, फिर वही पसंद आ गया
युवा कलाकार प्रिवेंद्र ने कहा कि नाम के पीछे एक इतिहास छुपा होता है। मेरे नाम के पीछे एक मजेदार इतिहास है। दरअसल, मुझे मेरा नाम एक गलती से मिला।
जेएनएन, चंडीगढ़। नाम के पीछे एक इतिहास छुपा होता है। मेरे नाम के पीछे एक मजेदार इतिहास है। दरअसल, मुझे मेरा नाम एक गलती से मिला। मुझे रिपोर्ट कार्ड में कुछ मात्राएं गलत हो गई और मेरा नाम प्रिवेंद्र लिखा गया। मुझे ये नाम जच गया और तब से मुझ पर ही चस्पा हो गया। रंगकर्मी प्रिवेंद्र ने कुछ इस अंदाज में अपने नाम पर बात की। शनिवार को युवा रंगकर्मी प्रिवेंद्र और विजित सिंह बाल भवन-23 में आयोजित रूबरु सेशन में शामिल हुए। भारतेंदु नाट्य अकादमी के युवा कलाकार ने नाटक शापग्रस्त का मंचन भी किया है, जिसका मंचन शनिवार शाम बाल भवन-23 में ही हुआ।
विजित ने कहा कि शापग्रस्त उनके निर्देशन करियर में बहुत मुश्किल रहा, क्योंकि इसकी कहानी और किरदारों से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण था भारतेंदु नाट्य अकादमी के दिग्गज कलाकारों को निर्देशित करना। भारतेंदु नाट्य अकादमी जैसी संस्था से जुड़ना किसी सपने के सच होने जैसा और खासकर तब जब संस्था की डोर रविशंकर खरे जैसी शख्सियत के मजबूत हाथों में हो। जो खुद रंगमच की बारीकियों से भलीभांति वाकिफ हैं और बतौर संचालक अकादमी और कलाकारों के साथ हर समय एक मजबूत स्तम्भ की तरह खड़े हैं।
दूसरों के लिए जीना ही असल सुख है
विजित और प्रिवेंद्र के निर्देशन में शनिवार को नाटक शापग्रस्त का मंचन किया गया। नाटक लोक निर्माण विभाग के जूनियर इंजीनियर प्रमोद वर्मा पर आधारित है। जिसके खुशहाल जीवन में तब बदलाव आता है, जब उसकी पत्नी उसे गिरती सेहत और झड़ते बाल पर ध्यान देने को कहती है। प्रमोद इसको ज्यादा गम्भीरता से लेता है और फिर शुरू होता है उसके खुद को कम उम्र का दिखाने का प्रयास। सारे प्रयास विफल होने लगते हैं और प्रमोद को लगने लगता है कि वो हर दिन ज्यादा बुजुर्ग लगने लगा है। सुख की तलाश में सरकारी नौकरी से निलंबित होकर घर बैठ जाता है, अच्छा लिखने के कारण सम्पादक मित्र के यहां नौकरी शुरू करता है। खुद से लगभग आधी उम्र की लड़की से प्रेम करता है, संभोग के नए आयामों को खंगालता है, लेकिन उसे सुख नहीं मिलता है। अपने अंदर चल रहे अंतद्र्वद्व का उत्तर वो एक बुढि़या से मांगने जाता है, जहां उसे जीने का नया दृष्टिकोण मिलता है। बुढि़या के कहे अनुसार प्रमोद खुद के सुख को ढूंढ़ने के बजाय दूसरों के दुख को गले लगाने निकल पड़ता है। नाटक में राजू पाण्डेय, शैलेन्द्र तिवारी, मनोज शर्मा, नितिश भारद्वाज, प्रिंस सोनकर, अखिल तिवारी, अलका, विवेक, करिश्मा मिश्रा और प्रतिमा विश्वकर्मा ने अभिनय किया।