बिजली दर वृद्धि पर बोले पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष जाखड़- मैैं भी उतना ही जिम्मेदार जितना शिअद-भाजपा नेता
पंजाब में बिजली उपभोक्ताओं पर 2000 करोड़ रुपये का भार डालने को लेकर सियासत गर्मा गई है। अब पंजबा कांग्रेस के प्रधान सुनील जाखड़ भी इस मामले में सामने आए हैं।
चंडीगढ़, [कैलाश नाथ]। बिजली उपभोक्ताओं पर 2000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ डालने का मुद्दा गर्म होने लगा है। पूर्व ऊर्जा मंत्री राणा गुरजीत सिंह, वित्तमंत्री मनप्रीत बादल के बाद अब कांग्रेस के प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ भी इस मामले में कूद पड़े हैं। उन्होंने चार दिन बाद आखिर चुप्पी तोड़ते हुए स्वीकार किया कि वह भी उतने ही जिम्मेदार हैं, जितने अकाली-भाजपा के नेता क्योंकि इस मामले को सिरे तक नहीं पहुंचा पाए।
निजी थर्मल प्लांटों के साथ पंजाब सरकार के समझौते पर प्रदेश कांग्रेस प्रधान ने तोड़ी चुप्पी
जाखड़ इस मुद्दे को लेकर शुक्रवार को थोड़ा भावुक भी दिखे। विपक्ष में रहते हुए उन्होंने हमेशा निजी थर्मल प्लांटों के साथ हुए समझौते को रद करने की मांग की थी। यह भी कहा था कि कांग्र्रेस सरकार आने पर इस समझौते को रद किया जाएगा। उन्होंने कहा कि वह मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से इस पर चर्चा करेंगे।
कहा, मुख्यमंत्री अधिकारियों की ड्यूटी लगाएं ताकि वे विधायकों को समझौते की बारीकियां समझाएं
उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग की कि वह इस मामले में अधिकारियों की ड्यूटी लगाएं। अधिकारी निजी थर्मल प्लांटों के साथ हुए समझौते की बारीकियों से कांग्र्रेस विधायकों को अवगत करवाएं। जिससे विधायक अपने-अपने हलके में लोगों को यह बता सकें कि कैसे अकाली-भाजपा सरकार ने लोगों के हितों को दरकिनार कर निजी थर्मल प्लांटों को फायदा पहुंचाया।
पंजाब एग्रो इंडस्ट्री कारपोरेशन के चेयरमैन नियुक्त हुए जोगिंदर सिंह मान के कार्यभार संभालने के दौरान जब जाखड़ से इस संबंधी सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि बिजली उपभोक्ताओं पर सरचार्ज के रूप में दो हजार करोड़ रुपये का बोझ पडऩे जा रहा है। मैं खुद को भी दोषी मानता हूं। देखना होगा कि आखिर किसके दबाव में आकर अफसरों ने इस तरह की कोताही बरती। बता दें कि पूर्व ऊर्जा मंत्री राणा गुरजीत सिंह पहले ही इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग कर चुके हैं। वित्तमंत्री मनप्रीत बादल ने भी इसे बेहद गंभीर मुद्दा बताया था।
यह है मामला
पंजाब सरकार का लार्सन एंड टर्बो-रन नाभा पावर लिमिटेड और वेदांता ग्र्रुप तलवंडी साबो के साथ पूर्व अकाली-भाजपा सरकार के दौरान समझौता हुआ था। इस समझौते में कोयले की धुलाई का खर्च कौन उठाएगा, इसकी शर्त शामिल नहीं थी। बाद में दोनों थर्मल प्लांटों ने पावरकॉम से कोयले की धुलाई की कीमत मांगनी शुरू कर दी। जिसके बाद लंबी 'कानूनी लड़ाई' लड़ी गई।
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राज्य और राष्ट्रीय रेगुलेटरी कमीशन में तो पावरकॉम की जीत हुई लेकिन हाई कोर्ट में वह केस 'हार' गया। इसके बाद राज्य के रेगुलेटरी कमीशन ने करीब 2000 करोड़ (1400 मूल व 600 करोड़ रुपये ब्याज) रुपये का बोझ राज्य के 96 लाख बिजली उपभोक्ताओं पर डालने का फैसला लिया है।
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