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हाउसिंग बोर्ड के 60 हजार मकानों को आज मिलेगी राहत

चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड के 60 हजार हाउस अलॉटियों के लिए आज बड़े फैसले का दिन है। 25 सालों से लंबित नीड बेस्ड चेंज पर बोर्ड मंजूरी की मुहर लगाकर 5 लाख लोगों को राहत देगा।

By JagranEdited By: Published: Fri, 05 Oct 2018 01:29 AM (IST)Updated: Fri, 05 Oct 2018 01:29 AM (IST)
हाउसिंग बोर्ड के 60 हजार मकानों को आज मिलेगी राहत
हाउसिंग बोर्ड के 60 हजार मकानों को आज मिलेगी राहत

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड के 60 हजार हाउस अलॉटियों के लिए आज बड़े फैसले का दिन है। 25 सालों से लंबित नीड बेस्ड चेंज पर बोर्ड मंजूरी की मुहर लगाकर 5 लाख लोगों को राहत देगा। बोर्ड के अधिकारियों ने शनिवार को मीटिंग कर कंपाउंडिंग फीस 500 रुपये प्रति स्क्वेयर फीट तय की थी। जबकि न्यूनतम फीस प्रति मकान 50 हजार रुपये तय की है। लेकिन इस पर सीएचबी रेजिडेंट वेलफेयर फेडरेशन और फॉसवेक के विरोध को देखते हुए अब इसमें कुछ राहत देने की उम्मीद बढ़ गई है। कंपाउंडिंग फीस आधी की जा सकती है। जबकि न्यूनतम फीस को खत्म किया जा सकता है। हालांकि यह सब शुक्रवार को होने वाली बोर्ड की मीटिंग के बाद ही स्पष्ट होगा। बोर्ड की मीटिंग में नीड बेस्ड चेंज कमेटी की रिपोर्ट रखी जाएगी। इस रिपोर्ट पर चर्चा के बाद बोर्ड मंजूरी देगा। बोर्ड के चेयरमैन एके सिन्हा और सीईओ हरीश नैय्यर नियमों में रहकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को फायदा देने के सिद्धांत पर काम कर रहे हैं। इस पूरे मामले को सेटल करने के लिए सभी कमेटी मेंबर्स ने इस कदर संजीदा होकर यत्‍‌न किया है। लोगों के प्रति सभी मेंबर्स और अधिकारियों को सकारात्मक रवैया रहा है। यह पेचीदा समस्या है जो साल दर साल बढ़कर विराट रूप ले चुकी है। ना तो लोगों को रोका गया और न ही उनका मार्गदर्शन किया गया। जब पूरे शहर में नीट एंड क्लीन कंस्ट्रक्शन हुई है तो सीएचबी के मकानों में ही यह समस्या कैसे बन गई। जितने कवर्ड एरिया को मंजूरी दी जा रही है उससे तो ज्यादा कवर कर लोग रह रहे हैं। अब इसे तोड़ा नहीं जा सकता। इसे आम माफी देकर एक बार रेगुलर कर देना चाहिए। यह सिर्फ एक बार के लिए होगा। वह अधिकारियों को यह बात बता चुके हैं।

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निर्मल दत्त, चेयरमैन, सीएचबी रेजिडेंट वेलफेयर फेडरेशन। हाउसिंग बोर्ड का मतलब अफोर्डेबल हाउसिंग उपलब्ध करवाना है। बोर्ड एक तरफ घर निशुल्क दे रहा है। वहीं दूसरी तरफ इनसिडेंटल जमीन पर निर्माण कर लेने वाले छोटे मकान मालिकों से कलेक्टर रेट के हिसाब से पैसे वसूलने की तैयारी है। पैसा कमाने की बात छोड़कर लोगों को राहत देने की बात पर आना चाहिए। हेबिटेबल डाइमेंशन यानी एक तय पैरामीटर साइज के कमरे, शौचालय और किचन उन्हें बनाकर ही नहीं दिए गए। अब अगर उन्होंने जरूरत अनुसार 3 फुट के एरिया पर कुछ निर्माण कर भी लिया तो उसके बदले इतनी महंगी फीस नहीं लेनी चाहिए। यह 100 रुपये तक ही हो। हाउसिंग बोर्ड के मकान में रह रहे अलॉटी आज भी किरायेदार की तरह रह रहे।

बलजिंदर सिंह बिट्टू, चेयरमैन, फॉसवेक 24 साल हो गए डर के साये में जीते हुए। अब उम्मीद यही है कि इस डर से बाहर निकल कर खुली हवा में सांस ले सकें। यह वायलेशन सालों से होती रही। मांग बहुत पुरानी है इसे बहुत पहले पूरा हो जाना चाहिए था। छोटी-छोटी चीजों के चार्ज नहीं लिए जाने चाहिए। बालकनी और छच्जों को निशुल्क रेगुलराइज किया जाए।

एमएस संधू, प्रेसिडेंट, आरडब्ल्यूए सेक्टर-44ए बोर्ड ने विभिन्न नोटिफिकेशन के जरिए जो राहत दी है उसके पैसे नहीं लिए जाने चाहिए। मरला कनाल हाउस से 100 रुपये प्रति स्क्वेयर फीट ली है तो सीएचबी अलॉटियों से भी फीस इतनी ही ली जाए। बोर्ड को अपना फैसला उन 5 लाख लोगों को ध्यान में रख कर करना चाहिए। यह इन सभी के लिए एतिहासिक पल होगा।

अमरदीप सिंह, फॉसवेक में सीएचबी के लिए कनवीनर हाउसिंग बोर्ड के मकानों में अधिकतर रिटायर्ड लोग रह रहे हैं। बहुत से बुजुर्ग पेंशन से गुजारा कर रहे हैं। ऐसे में वह बोर्ड की फीस कहां दे पाएंगे। यह पेनल्टी गलत है। लोगों को एक बार राहत दी जानी चाहिए। नोटिस और मकान कैंसलेशन के डर से बहुत से लोग तनाव ग्रस्त हैं।

रणविंदर सिंह गिल, सेक्रेटरी फॉसवेक फीस में इतना अंतर क्यों है। जब कोठियों में रह रहे लोगों से 100 रुपये फीस लेकर प्रापर्टी को रेगुलर किया गया तो उनसे 500 रुपये क्यों लिए जा रहे हैं। इसे कम कर 100 रुपये ही लिए जाने चाहिए। हाउसिंग बोर्ड के मकानों में कम आय वाले अलॉटी ही रह रहे हैं। जिस रेट में हाउस अलॉट किए गए थे उतनी तो ट्रांसफर फीस ली जा रही है। लाखों रुपये की ट्रांसफर फीस भी कम होनी चाहिए।

वीके निर्मल, प्रेसिडेंट, यूनाइटिड वेलफेयर एसोसिएशन सेक्टर-44डी सालों बाद बोर्ड अलॉटियों की मांग मानने को तैयार हुआ है। अभी तक उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिलते रहे। लेकिन अब उम्मीद है कि राहत की खबर आएगी। लेकिन फीस कम से कम रखनी चाहिए। जिसे सब दे भी सकें। यह 50 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए।

सुभाष चंद्र गुप्ता, मेंबर कोर कमेटी हाउसिंग बोर्ड के मकानों में रह रहे लोग घुटन महसूस करते हैं। हर चिट्ठी नोटिस की तरह लगती है। अब इस डर से छुटकारा मिलना चाहिए। एक बार सभी लोगों को राहत देने के लिए कदम बढ़ाया जाना चाहिए। बोर्ड से बड़ी राहत की उम्मीद करते हैं।

केवल छाबड़ा, मेंबर कोर कमेटी कमेटी ने यह की है सिफारिश

-लार्ज इनकम ग्रुप (एलआइजी) से नीचे सभी मकानों में कोर्टयार्ड के 75 प्रतिशत एरिया को कवर कर सकेंगे।

-मीडियम इनकम ग्रुप (एमआइजी) से ऊपर के मकानों में कोर्टयार्ड के 50 प्रतिशत एरिया को कवर करने की मंजूरी मिलेगी।

-प्रति बालकोनी 10 हजार रुपये देकर रेगुलराइज होगी।

छच्जे के लिए 5 हजार रुपये देने होंगे।

-नीड बेस्ड चेंज रेगुलराइज के लिए कंपाउंडिंग फीस 500 रुपये प्रति स्क्वेयर फीट रहेगी।

-एक घर को कम से कम 50 हजार रुपये कंपाउंडिंग फीस देनी अनिवार्य है।

-ईडब्ल्यूएस मकानों में प्लॉट एरिया से बाहर कवर एरिया रेगुलराइज नहीं होगा। फेडरेशन और फॉसवेक की मांग

कोर्डयार्ड की बजाए प्लॉट एरिया देखा जाए। 50 से 75 प्रतिशत कोर्टयार्ड कवर एरिया को ही मंजूरी। जबकि लोग पहले 85 से 100 प्रतिशत तक भी कवर कर चुके हैं। - ऐसे में इन्हें तोड़ा जाएगा ?

-मरला कनाला हाउस से 100 रुपये प्रति स्क्वेयर फीट कंपाउंडिंग फीस तो उनसे 500 रुपये क्यों?

-न्यूनतम फीस भी 50 हजार रुपये अनिवार्य देय करना गलत। जिसने 2 प्रतिशत बनाया उस पर भी यही और जो 60 प्रतिशत बना चुका उस पर भी यही फीस गलत। इसे खत्म किया जाए।

-बालकोनी और छच्जों को रेगुलराइज करने की कोई फीस न ली जाए। पुराने ऑर्डर में भी यही।

-छोटे मकानों में ज्यादा एरिया कवर करने वालों को भी वेंटिलेशन और सनलाइट जैसे तकनीकी स्टेप के बाद मंजूरी दी जाए।

-यह नोटिफिकेशन ऐसी होनी चाहिए जो कभी बदले न।


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