अमेरिका तक पहुंची इनकी फ्रेमिग
सेक्टर-15 की पटेल मार्केट। जहां एक छोटे बूथ में हजारों पेंटिग रखी हुई हैं।
शंकर सिंह, चंडीगढ़ : सेक्टर-15 की पटेल मार्केट। जहां एक छोटे बूथ में हजारों पेंटिग रखी हुई हैं। ये पेंटिग यहां से फ्रेम होकर गैलरी से लेकर घरों में सजती हैं। इन्हीं पेंटिग के बीच में हैं अशोक चावला। इनका नाम हर कलाकार जानता है। पेंटिग बनाने के बाद उसे फ्रेम में बांध कर खूबसूरत यही बनाते हैं। हाल ही में अमेरिका से लौटे चावला ने वहां फ्रेमिग से जुड़ी नई तकनीक सीखी। बोले कि अमेरिका जैसे देशों में फ्रेमिग की तकनीक काफी आगे है। वहां रंगों, पेंटिग और फोटो के आधार पर फ्रेम को चुना जाता है। इसके बाद उसे वैसे ही डिजाइन किया जाता है। मेरे लिए ये सब जानना बहुत उपयोगी रहा। जिससे पेंटिग और तस्वीरों की खूबसूरती को बढ़ाया जा सके। मेरे लिए ये पहली बार था कि मैं किसी अंतरराष्ट्रीय वर्कशॉप का हिस्सा बन पाया।
कलाकार दोस्त लाए फ्रेमिग करने तक
शहर के अनेकों कलाकारों के पसंदीदा चावला ने कहा कि उन्होंने ये काम दोस्तों के कहने पर शुरु किया। दरअसल, इससे पहले मैं ज्वेलरी के काम में था। मगर मेरे दोस्त जो आर्ट से जुड़े थे, उन्होंने फ्रेमिग मेरा काम देखा तो उन्होंने मुझे इसे ही करने को कहा। वर्ष 1988 में सेक्टर-15 में फ्रेमिग का काम शुरू किया। उन दिनों इसमें काम करने वाले कम थे। मैंने सोचा कि पेंटिग और आर्ट के क्षेत्र में बेहतर करूं। ऐसे में इसी दिशा में पेंटिग को भी समझा। जहां से इसकी फ्रेमिग और हर पेंटिग के लिए कैसा फ्रेम हो इस पर काम किया। जिसके बाद मैंने इसी में कई रिसर्च की। कई मेटीरियल पर काम किया। इसमें गवर्नमेंट आर्ट म्यूजियम, पंजाबी गवर्नर हाउस, ली कार्बूजिए सेंटर, हाई कोर्ट जैसी जगहों पर भी अपना काम प्रदर्शित किया।
पेंटिग के साथ बेहतर तालमेल होना चाहिए फ्रेम का
चावला ने कहा कि अमेरिका में हुई चार दिवसीय वर्कशॉप में काफी कुछ जानने को मिला। वहां पेंटिग और तस्वीर की उम्र बढ़ाने के लिए माउंटिग तकनीक को सीखा। इसके अलावा फ्रेमिग में नई तकनीक और मेटीरियल को लेकर भी चर्चा हुई। मैं अपनी हर पेंटिग में कोशिश करता हूं कि वह पेंटिग को स्पोर्ट करे, न की वह उससे खूबसूरत लगे। मेरी कोशिश फ्रेमिग के जरिए कला के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा योगदान देने की है, जिसके लिए ऐसी वर्कशॉप का हिस्सा निरंतर बनता रहूंगा।