मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के प्रविधान पर हाई कोर्ट ने उठाए सवाल
पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के प्रविधान पर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़ : पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के प्रविधान पर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। सुनवाई के दौरान पीजीआइ चंडीगढ़ की ओर से पेश हुए एडवोकेट ने अदालत को बताया कि इस बारे में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने पूर्व के कानून में संशोधन कर गत वर्ष दो मार्च को संसद में बिल पेश किया था, जोकि अभी लंबित है।
जस्टिस अरुण मोंगा ने सोमवार को एक केस की सुनवाई के दौरान कहा कि इस एक्ट के तहत अगर किसी गर्भवती महिला का भ्रूण किसी घातक रोग या विकृति से ग्रस्त है तो 20 सप्ताह के भ्रूण का मेडिकल बोर्ड की इजाजत से गर्भपात किया जा सकता है, लेकिन अगर भ्रूण 20 सप्ताह से अधिक का हो तो उसके लिए हाई कोर्ट की इजाजत लेनी पड़ती है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे कई केस में हाई कोर्ट 20 सप्ताह से अधिक आयु के भ्रूण के गर्भपात की इजाजत देता रहा है। लेकिन इसका लाभ कुछ शिक्षित और संपन्न लोगों को ही मिल पाता है और वह समय पर गर्भपात करवा मां की जान बचा पाते हैं, लेकिन आम और गरीब लोगों का क्या, जिन्हें कोई कानूनी सहायता मिल ही नहीं पाती है। ऐसे में न सिर्फ मां की जान को खतरा होता है, बल्कि अपंग और असहाय बच्चा भी जन्म ले लेता है। ऐसे में इस प्रविधान पर कई सवाल खड़े होते हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि इससे पहले कि इस प्रविधान पर गौर किया जाए, एक मार्च तक केंद्र को जवाब देना होगा।