नई तकनीक से हो रहा हार्ट अटैक मरीजों का इलाज, कम हुई स्टेंट की जरूरत, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट
Heart Attack हार्ट अटैक का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ गया है। भारत में हार्ट अटैक से मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 10 साल में करीब सवा दो लाख लोगों की मौत हार्ट अटैक से हो चुकी है। इसके कई कारण हैं।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। Heart Attack: हार्ट अटैक का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ गया है। भारत में हार्ट अटैक से मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 10 साल में करीब सवा दो लाख लोगों की मौत हार्ट अटैक से हो चुकी है। इसके कई कारण हैं। वहीं हार्ट अटैक का इलाज अब नई तकनीक से होने लगा है।
नई तकनीक से हार्ट अटैक मरीज के इलाज में स्टेंट लगाने की जरूरत नहीं होती। कार्डियोलाजी प्रोफेसर और मिलान में ह्यूमैनिटास विश्वविद्यालय में सीनियर कंसल्टेंट डा. एंटोनियो कोलंबो जो हाल ही में मेदांता अस्पताल गुरुग्राम में थे। उन्होंने हार्ट अटैक मरीज के इलाज में इस्तेमाल होने वाली नई तकनीक के बारे में जानकारी दी है।
डा. एंटोनियो कोलंबो ने कहा कि इस उपकरण में बैलून-कोटेड एक ड्रग डिलीवरी टेक्नोलाजी प्लेटफार्म है, जिसे सिरोलिमस के उप-माइक्रोन कणों को वितरित करने के लिए डिजाइन किया गया है और जो बाइओ कम्पेटिबल ड्रग करियर में तब एनकैप्सूलेटेड हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि ड्रग और कैरिअर कांप्लेक्स को वेस्सेल की वाल की इनर लेयर तक पहुंचने और सिरोलिमस के दीर्घकालिक रिलीज के लिए एक रिजर्वायर के रूप में काम करने के लिए डिजाइन किया गया है। सिरोलिमस एक दवा है जो कोरोनरी धमनी को फिर से संकुचित होने से रोकती है और सुरक्षा और दीर्घकालिक प्रभावकारिता के लिए बड़ा डेटा द्वारा स्पोर्टेड है।
इंटरवेंशनल कार्डियोलाजी के वाइस चेयरमैन डा. रजनीश कपूर ने कहा धमनियों को फिर से संकुचित होने से बचाने के लिए व उन रोगियों में जहां स्टंट लगाना सबसे उपयुक्त नहीं है या इससे बचने की जरूरत है। इंटरवेंशनल कार्डियोलाजी प्रैक्टिस सिरोलिमस ड्रग-कोटेड बैलून कैथेटर के रूप में जाना जाने वाला यह एक नया मेडिकल डिवाइस इंटरवेंशनल कार्डियोलाजी रोगी के उपचार को अप्रूवल देता है।
सैद्धांतिक रूप से स्टेंट फ्री एंजियोप्लास्टी एक स्टेंट का उपयोग करके की जाने वाली एंजियोप्लास्टी से बेहतर हो सकती है। क्योंकि यह रक्त के थक्के को रोकने के लिए दी जाने वाली दवाओं जैसे ड्यूल एंटीप्लेटलेट थेरेपी के दीर्घकालिक समस्याओं, स्टेंट फ्रैक्चर और स्टेंट थ्रोम्बोसिस जो रक्त के थक्के का निर्माण होता है, को रोक सकती है। इस तकनीक से उन युवाओं में जिनमें हम नेचुरल वेस्सेल लेआउट में न्यूनतम परिवर्तन के साथ इलाज करना चाहते हैं, ताकि उन्हें लंबे समय तक कम से कम संभव दवाएं लेनी पड़े और इलाज से संबंधित जोखिम कम से कम हो जैसे इन-स्टेंट रेस्टेनोसिस जो एक रुकावट या संकुचन है जो कोरोनरी धमनी के उस हिस्से में वापस आता है जिसे पहले एक स्टेंट के साथ इलाज किया गया था।