हाथ नहीं आ रही सेहत की नब्ज, इस कारण तीन पायदान नीचे उतरा पंजाब
पंजाब में स्वास्थ्य सेवाओं का बुर हाल हो रहा है। राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल स्थिति का खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
चंडीगढ़, जेएनएन। पंजाब में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत लोगों पर बहुत भारी पड़ रही है। हाल ही में नीति आयोग की जारी हेल्थ रैंकिंग से भी पंजाब में अस्पतालों की स्थिति उजागर हुई है। इस रैंकिंग में पंजाब दूसरे स्थान से खिसक कर पांचवें स्थान पर पहुंच गया है। इसकी वजह जमीन पर साफ दिखती है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की चाल बिगड़ी हुई है। अस्पतालों में मरीजों लंबी कतारें लगी होती हैं, लेकिन डॉक्टरों की खासी कमी और चिकित्सा सुविधाओं का अभाव है। डॉक्टर जो दवा लिखते हैं, वह अस्पताल में कम ही मिलती है। विभाग के मंत्री तो बदल जाते रहे हैं, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की हालत नहीं सुधर रही है।
दूसरे से खिसक कर पांचवें स्थान पर पहुंची रैंकिंग, खराब सुविधाओं ने बिगड़ी चाल, फंड के अभाव में हाल बेहाल
दूसरी ओर, प्राइवेट अस्पतालों का भाग्य खूब चमक रहा है। सरकारी अस्पतालों में रेडियोलॉजी समेत कई महत्वपूर्ण पद खाली हैं। स्पेशलिस्ट और सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की खासी कमी है। कई अस्पतालों में तो स्वास्थ्य सेवाएं पैरा मेडिकल स्टाफ के ही भरोसे हैं, लेकिन पैरामेडिकल स्टाफ भी पूरा नहीं है। ज्यादातर अस्पताल नर्सों की कमी से जूझ रहे हैं। दवाइयां न मिलने के पीछे केंद्रीय बजट में कटौती अहम कारण बताया जा रहा है। कुल मिलाकर सरकारी क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत काफी बिगड़ी हुई है।
न पूरी दवाइयां न डॉक्टर, रेडियोलॉजी विभाग में भी कई पद खाली
सरकारी अस्पतालों में मरीजों को 236 प्रकार की दवाएं मिलनी चाहिए। इन दवाओं की लिस्ट तो अप टू मार्क है, लेकिन न तो पूरी दवाओं की सप्लाई हो रही हैं और न ही अस्पतालों में पूरे डॉक्टर हैं। सबसे बड़ी कमी स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की है। वर्तमान में 236 में से मात्र 90 से 100 किस्म की दवाएं ही सप्लाई की जा रही हैं। इसकी वजह से मरीजों को बाहर से दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं। वहीं, स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी के कारण गरीब मरीजों को निजी अस्पतालों के मकड़जाल में फंसना पड़ रहा है।
नशे के मरीजों ने बढ़ाई चुनौती
बढ़ती आबादी का असर सरकारी अस्पतालों पर तो पड़ता ही है, लेकिन पंजाब में नशे के मरीजों ने स्वास्थ्य सेवाओं के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है। ड्रग्स के मरीजों के इलाज के लिए 178 ओट (आउटडोर ओपियॉइड असिस्टेड ट्रीटमेंट क्लीनिक्स) स्थापित करने पड़े हैं, जिसमें 83,920 नशा पीडि़तों इलाज करवाया जा चुका है। ओट क्लीनिकों में इलाज के लिए रोजाना 100 नए मरीज सामने आ रहे हैं। नशे के मरीजों का इलाज मुफ्त में किया जा रहा है।
मिलावटी खाद्य पदार्थों की भरमार
स्वास्थ्य विभाग का काम केवल बीमार होने पर इलाज करना ही नहीं बल्कि बीमारियों को रोकना भी है। बाजार में इन दिनों मिलावटी व स्तरहीन खाद्य पदार्थों की भरमार है। स्वास्थ्य विभाग के कमजोर हाथ बहुत प्रभावी ढंग से इससे निपट नहीं पा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के लिए हैरानीजनक व आंखें खोलने वाले तथ्य हैं कि जनवरी से मार्च तक विभाग ने जितने भी खाद्य पदार्थों के सैंपल लिए हैं, उसमें से 25 फीसद के सैंपल फेल हुए हैं।
विभाग ने 2,170 सैंपल लिए थे। इनमें से 530 फेल हो गए। यह इस बात की तरफ साफ संकेत है कि पंजाबियों को बाजार में जो खाद्य सामान मिल रहा है, उसमें कितने बड़े स्तर पर मिलावट है। मिलावट कानून के सख्त नहीं होने के कारण सैंपल फेल होने पर महज विभाग पेनल्टी लगाकर रह जाता है।
माह सैंपल फेल जुर्माना
जनवरी 225 25,89200 रुपये
फरवरी 142 2220500 रुपये
मार्च 133 2292000 रुपये
इन्फ्रास्ट्रक्चर है, लेकिन स्टाफ नहीं
अर्बन हेल्थ के तहत प्राइमरी हेल्थ सेंटरों को मजबूत करवाने के लिए जालंधर, अमृतसर और लुधियाना जैसे शहरों में कम्युनिटी सेंटर स्थापित किए गए थे। इन सेंटरों का स्ट्रक्चर पूरी तरह से तैयार है, लेकिन इसके लिए सरकार ने अभी तक स्टाफ ही भर्ती नहीं किया है।
कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार में कुछ दिन पहले तक स्वास्थ्य मंत्री रहे ब्रह्म मोहिंदरा अकाली-भाजपा सरकार की हमेशा ही इस बात को लेकर आलोचना करते रहे कि उन्होंने इन्फ्रास्ट्रक्चर तो खड़ा कर दिया, लेकिन स्टाफ का इंतजाम नहीं किया। ब्रह्म मोहिंदरा ने करीब ढाई वर्ष तक स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी संभाली, लेकिन वह भी स्टाफ की भर्ती नहीं कर सके।
इस कारण स्वास्थ्य विभाग ने कम्युनिटी सेंटरों में क्लिीनिक को शिफ्ट कर ओपीडी शुरू करवा दी है। स्वास्थ्य विभाग की परेशानी यह है कि उनके पास साल का 3465 करोड़ रुपये का बजट है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा तनख्वाह का है। यही कारण है कि न तो अस्पतालों ने पूरी दवाएं मिल पा रही है और न ही पूरा स्टाफ भर्ती हो पा रहा है।
डॉक्टरों को नहीं सरकार पर भरोसा
मेडिकल की पढ़ाई के दौरान भले ही विद्यार्थी की पहली पसंद सरकारी मेडिकल कॉलेज होती हो, लेकिन एमबीबीएस करने के बाद स्वास्थ्य सेवाएं देने में उनकी पसंद प्राइवेट अस्पताल होते हैं। इसका मुख्य कारण सरकारी मेडिकल कॉलेज में फीस कम होना और स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए प्राइवेट सेक्टर में ज्यादा तनख्वाह मिलना है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से डॉक्टरों को पूरी तनख्वाह देने के बावजूद डॉक्टरों की कमी पूरी नहीं हो पा रही है। इसका मुख्य कारण डॉक्टरों का रुझान प्राइवेट सेक्टर की तरफ होना है।
नियम बदलने का भी असर नहीं
पूर्व अकाली-भाजपा सरकार ने सरकारी नौकरी में आने पर पहले तीन वर्षों तक बेसिक वेतन के भुगतान की शर्त रखी थी। इस कारण डॉक्टर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को ज्वाइन नहीं कर रहे थे। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ब्रह्म मोहिंदरा ने इन नियमों में बदलाव करवाया था। इसके बाद कैबिनेट ने भी मंजूरी दी थी कि डॉक्टरों को पूरा वेतन व भत्ता दिया जाएगा।
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कम वेतन भी बड़ी वजह
पंजाब में सरकारी अस्पतालों में फ्रेशर एमबीबीएस डॉक्टर को नियमानुसार पहले तीन साल तक मात्र 16,500 रुपये के वेतनमान पर काम करना पड़ता है। तीन साल के बाद डीए व अन्य भत्ते मिलने शुरू हो जाते हैं, तब जाकर सब भत्ते मिलाकर वेतन करीब 42 हजार रुपये तक पहुंचता है। इसी तरह स्पेशलिस्ट डॉक्टर को 62 हजार से 72 हजार रुपये तक वेतन मिलता है। स्पेशलिस्ट डॉक्टर भी वेतन कम होने का हवाला देकर सरकारी नौकरी में आने को तैयार नहीं हैं। नतीजा यह है कि स्वास्थ्य विभाग प्राइवेट डॉक्टरों को एक या दो दिन सरकारी अस्पतालों में सेवाएं देने के लिए अपील कर रहा है।
स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की ज्यादा कमी
प्रदेश में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की ज्यादा कमी है। पीसीएमएस स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स एसोसिएशन के प्रदेश प्रधान डॉ. अशोक कुमार के अनुसार सरकारी अस्पतालों में पांच गुणा काम बढ गया है, लेकिन डॉक्टरों व स्टाफ के पद नही बढ़े। वर्तमान में २९७ स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के पद खाली पड़े हैं। कामकाज के बोझ व रिमोट एरिया में ड्यूटी पर तैनाती की वजह से डॉक्टर सरकारी नौकरी से दूर होने लगे हैं।
स्पेशलिट्स की कमी
स्पेशलिटी खाली पद
एनस्थीसिया 20
जनरल सर्जरी 41
गायनीकोलॉजी 22
मेडिसिन 48
ऑप्थोमोलॉजी 05
ऑर्थोपेडिक्स 01
पीडियाट्रिक्स 98
साइकेट्री 10
रेडियोलॉजी 43
टीबी एंड चेस्ट 09
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कुल 297
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मर्ज को समझ कर ऑपरेशन करूंगा : बलबीर सिद्धू
हाल ही में स्वास्थ्य मंत्री की जिम्मेदारी संभालने वाले बलबीर सिद्धू का कहना है, अभी मर्ज को समझ रहा हूं। उसके बाद ऑपरेशन करूंगा। कई ऐसी समस्याएं हैं, जिन्हें दूर करने के लिए न तो किसी फंड की आवश्यकता है और न ही बहुत मेहनत करने की, लेकिन परिणाम बेहतर हो सकते हैं। विभाग की बड़ी समस्या थी कि डॉक्टर व स्टाफ डेपुटेशन पर दूसरी जगह लगे हुए थे। इससे कहीं पर तो ज्यादा संख्या में डॉक्टर व कर्मचारी थे और कहीं बेहद कम। उसे खत्म किया गया है। इससे स्वास्थ्य सेवाओं में स्थिरता आएगी।
उन्होंने कहा, मेरी कोशिश है कि मरीजों को वह सभी दवाएं अस्पताल के अंदर ही मिलें जिन्हें सरकार को मुहैया करवाना है। उम्मीद है, जल्द ही ऐसा होने भी लगेगा। सरकार ने अस्पतालों में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी को पूरी करने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है। डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए राज्य सरकार की ओर से हरसंभव सहायता दी जाएगी।
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मुख्य बिंदु
- 236 प्रकार की दवाएं मिलनी चाहिए अस्पतालों में।
- 90 से 100 तरह की दवाइयां ही मिल पा रही हैं।
- 25 फीसदी सैंपल फेल हुए हैं खाद्य वस्तुओं के।
- 178 ओट सेंटरों में 84 हजार मरीज, नशे के मरीजों ने बढ़ाई चुनौती।
- 3465 करोड़ रुपये है हेल्थ बजट, बड़ा हिस्सा जाता है वेतन में।