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...तो इसलिए होते हैं सरकारी स्कूलों के बच्चे पढ़ने में कमजोर, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचर्स स्टूडेंट्स के पेरेंट्स से डरते हैं। डर भी इतना कि वह बच्चों को गलती करने पर भी नहीं बोल पाते।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 19 Aug 2018 12:50 PM (IST)Updated: Tue, 21 Aug 2018 08:59 PM (IST)
...तो इसलिए होते हैं सरकारी स्कूलों के बच्चे पढ़ने में कमजोर, रिपोर्ट में हुआ खुलासा
...तो इसलिए होते हैं सरकारी स्कूलों के बच्चे पढ़ने में कमजोर, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

चंडीगढ़ [सुमेश ठाकुर]। सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचर्स स्टूडेंट्स के पेरेंट्स से डरते हैं। डर भी इतना कि वह बच्चों को गलती करने पर भी नहीं बोल पाते। अगर गलती करने पर डांट भी दें तो पूरा परिवार स्कूल आ पहुंचता है। बच्चे को समझाने की बजाय टीचर्स से ही झगड़ने लगता है। कई बार तो टीचर्स को पीटा भी गया। उसी का नतीजा है कि टीचर्स उनको पढ़ाने में ध्यान नहीं देते और रिजल्ट फेल में बदल जाता है।

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यह खुलासा शिक्षा विभाग की स्कूल चेकिंग के लिए बनाई कमेटी की रिपोर्ट में हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक, यही डर टीचर्स को सख्ती करने से रोकता है। कई पेरेंट्स तो इस मामले में पुलिस व चाइल्ड राइट कमीशन को शिकायत तक कर चुके हैं।

दसवीं का कम परिणाम आने के बाद शिक्षा विभाग ने नौ कमेटियों का गठन किया था। उनकी अध्यक्षता विभाग के विभिन्न अधिकारियों ने की। इन कमेटियों में स्कूलों के प्रिंसिपल भी शामिल रहे। करीब एक माह तक विभिन्न स्कूलों में चेकिंग के बाद उन्होंने पाया कि टीचर्स को सबसे बड़ी परेशानी अभिभावकों से है। इसके अलावा उन्होंने अटेंडेंटस, पेरेंट्स का अवेयर न होना व अन्य कारण भी रिजल्ट कमजोर आने के गिनाए।

यह भी है कारण... बाहरी राज्यों से आए बच्चे जाते हैं तीन महीने की छुट्टी पर

रिपोर्ट के अनुसार, स्कूलों में पढऩे वाले ज्यादातर बच्चों के घर दूसरे राज्यों में है। इन बच्चों की सबसे बड़ी परेशानी होती है कि बच्चे मार्च के एग्जाम देने के बाद पैतृक गांव चले जाते हैं। वहां जाने के बाद कई महीनों तक लौटकर नहीं आते। अक्टूबर में शुरू होने वाले फेस्टिवल सीजन के लिए भी घर चले जाते हैं। ऐसे में बच्चे साल के दो से ढाई महीनों तक क्लास में नहीं आते, लेकिन उन्हें दोबारा से स्कूल में बैठाना पड़ता है। ज्यादातर बच्चे पढ़ाई में पिछड़ गए होते हैं। यह समझाने के लिए यदि बच्चों के अभिभावकों को बुलाएं तो वह स्कूल नहीं आते। आते भी हैं तो टीचर्स को ही जिम्मेदार ठहराते हैं।

नो डिटेंशन पॉलिसी भी कमजोर रिजल्ट का कारण

आठवीं कक्षा तक नो डिटेंशन पॉलिसी भी कमजोर रिजल्ट का कारण है। बच्चों और पेरेंट्स को पता होता है कि बच्चे पढ़ें या नहीं पढ़ें, उन्हें पास तो स्कूल वालों ने कर ही देना है। बच्चे जब नौंवी में पहुंचते है तो टीचर्स के लिए सबसे बड़ी परेशानी बन जाते है। इन बच्चों को सिलेबस का बेसिक ज्ञान तक नहीं होता।

अधिकतर स्लम स्कूलों में महिलाओं की तैनाती

शहर के कई स्कूल स्लम एरिया में है। उसमें मौलीजागरां, रायपुरकलां, मलोया, हल्लोमाजरा, धनास, सारंगपुर, खुड्डा अलीशेर सहित विभिन्न स्कूल ऐसे हैं जो स्लम में मौजूद हैं। यहां पर 90 प्रतिशत टीचर्स स्टाफ महिलाएं हैं। महिलाएं बच्चों के अभिभावकों से ज्यादा डरती हैं क्योंकि उन्हें स्कूल अकेले आना जाना पड़ता है।

ये हो चुके हैं विवाद

  • 9 अगस्त को गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल-45 में क्लास रूम में आकर पेरेंट्स ने टीचर को पीटा था।
  • गवर्नमेंट मॉडल सीनियर सेकेंडरी स्कूल-40 के कुछ स्टूडेंट्स ने महिला टीचर के घर में पहुंचकर गाड़ी के शीशे तोड़ दिए थे। उन्होंने मोहल्ले के अन्य घरों की गाडिय़ां भी तोड़ दी थी।
  • गवर्नमेंट मिडिल स्कूल दड़वा में भी ऐसा ही हादसा हुआ। वहां टीचर ने स्टूडेंट की बदतमीजी पर पिटाई की पेरेंट्स ने स्कूल आकर जमकर हंगामा किया। उसकी शिकायत चंडीगढ़ कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट को भी की गई थी।

मुझे अभी कमेटी की रिपोर्ट नहीं मिली

शिक्षा सचिव बंसी लाल शर्मा का कहना है कि मुझे अभी कमेटी की रिपोर्ट नहीं मिली। यदि ऐसी बात है कि टीचर्स पेरेंट्स से डरते हैं तो वह गलत है। उनको समझाने का काम टीचर्स का है। इस समय टीचर्स से शिकायत कम, सुझाव की ज्यादा जरूरत है, ताकि ऐसे काम हो कि स्टूडेंट्स की पढ़ाई बाधित न हो।

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