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गार्डन देख गवर्नर भी हुए थे खुश, खुद अपने हाथों से बनाकर खिलाया खाना

एक बार गवर्नर ने जब गार्डन की बदली सूरत देखी तो उन्हें ये बहुत अच्छा लगा। उनकी एक खासियत थी कि जो भी उन्हें पसंद हो उसे अपने हाथों से बना खाना खिलाते थे।

By Edited By: Published: Sat, 23 Feb 2019 09:08 PM (IST)Updated: Sun, 24 Feb 2019 03:01 AM (IST)
गार्डन देख गवर्नर भी हुए थे खुश, खुद अपने हाथों से बनाकर खिलाया खाना
गार्डन देख गवर्नर भी हुए थे खुश, खुद अपने हाथों से बनाकर खिलाया खाना

जेएनएन, चंडीगढ़: रंगनाथन हैं तो मद्रास के मगर पंजाबी बहुत अच्छे से बोल लेते हैं। पगड़ी भी पहनते हैं, साथ ही दाड़ी भी उसी स्टाइल में रखी है। इनके हाथों से संवर रहे रोज गार्डन और शांति कुंज के फूल अपनी दास्तान खुद सुनाते हैं। 59 वर्षीय रंगनाथन को रोज फेस्टिवल में उनके बेहतरीन कार्य के लिए मुख्य मेहमान भी बनाया गया है। रंगनाथन ने कहा कि वह चंडीगढ़ में सन 1977 में आए। शुरुआत गोल्फ क्लब से हुई। वहां गार्डन को संवार रहे थे, तो किसी की नजर उनके इस हुनर पर पड़ी। इसके बाद उन्हें पंजाब राजभवन भेज दिया गया। स्वर्गीय सुरेंद्र नाथ उन दिनों गवर्नर थे। मैंने राजभवन के गार्डन को देखा और उसमें कुछ जरूरी बदलाव किए। साथ ही फूलों और पेड़ पौधों की अच्छे से देखभाल की।

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एक बार गवर्नर ने जब गार्डन की बदली सूरत देखी, तो उन्हें ये बहुत अच्छा लगा। उनकी एक खासियत थी कि जो भी उन्हें पसंद हो, उसे अपने हाथों से बना खाना खिलाते थे। मुझे भी मेरे फूलों से जुड़े प्यार को देखते हुए उन्होंने अपने हाथों से खाना खिलाया। उन्होंने कहा कि मेरे हाथों में जादू है, जो फूलों में एक नई जान भर देता है। फूल तो अब अपने बच्चे जैसे लगते हैं रंगनाथन ने कहा कि उन्होंने 1996 में रोज गार्डन और शांति कुंज में काम करना शुरू किया। उन दिनों यहां गुलाबों की इतनी वेराइटी देखकर हैरान था। मैं खुद को खुशकिस्मत समझता था कि ऐसी जगह मुझे काम करने को मिलेगा। यहां का हर फूल मेरा बच्चा है। अगर आप देखें तो इन दिनों मौसम खराब है, बारिश से फूल टूटकर बिखर जाता है। मुझे दुख हुआ कि लोगों को अब अपने बच्चे कैसे दिखाउंगा।

पंजाब में रहकर पंजाबी हो गया

रंगनाथन ने कहा कि उनके मुंह से पंजाबी और पगड़ी देखकर कोई सोच भी नहीं सकता कि वो मद्रास के हैं। पंजाब में आने के बाद यहां की रोटी-पानी खाई, तो सोचा कि इसकी सेवा करूं। इसके रंग में रंग जाना कोई बुरा नहीं। अब मैं पूरी तरह से पंजाबी बोलता हूं। रिटायरमेंट को एक साल रह गया है, मगर अगर मद्रास वापस भी गया तो ये पंजाबियत नहीं जाएगी।

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