पांच वर्ष की तपस्या के बाद बनी फिल्म
पूरे पांच वर्ष लगे। मुझे पता था कि ये अलग फिल्म है।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : लिखने से लेकर बनने तक। पूरे पांच वर्ष लगे। मुझे पता था कि ये अलग फिल्म है। ऐसे में ये हर फिल्म की तरह कम समय नहीं लेगी। मैंने अनेकों फिल्म लिखी। मगर ये फिल्म किसी के जीवन पर आधारित थी। ऐसे में इसे लिखने में दो वर्ष लग गए। इसके बाद इसकी कास्टिंग और बाकी फिल्म बनने में। मगर खुशी है कि प्रकाशी और चंद्रो तोमर के जीवन को फिल्म में दिखा पाया। निर्देशक तुषार हीरानंदानी कुछ इन्हीं शब्दों में अपनी फिल्म सांड की आंख पर बात करते हैं। सोमवार को वह शहर पहुंचे। उन्होंने कहा कि इस फिल्म का बनना आज के माहौल के अनुसार सही है। आज के माहौल में ही ऐसी फिल्म को अपनाने का दम बना है। मुझे याद है कि जब पहली बार मैंने टीवी पर चंद्रो और प्रकाशी का इंटरव्यू देखा था। वो आमिर खान का शो था। बस उसी दिन ठान लिया की इन दोनों पर फिल्म जरूर बनाउंगा। ऐसे में फिल्म को लिखने में ही दो साल लग गए। मैं इसे डार्क फिल्म नहीं बनाना चाहता था। ऐसे में इसे एंटरटेनमेंट के साथ परोसना हमारी जिम्मेदारी थी। लिखने से ज्यादा निर्देशन का भार है
मैंने कई हिट फिल्में लिखी हैं। मगर सांड की आंख के निर्देशन में मैंने जाना कि दोनों में कितना अंतर है। खासकर लिखने के बाद उसे पूरी तरह से सिनेमा में लाना। मेरा ये अनुभव अनुराग कश्यप की वजह से बेहतर रहा। उनकी तरह का रॉ स्टाइल भी मैंने अपनाया। मगर मैं इसे ज्यादा एंटरटेनमेंट के रूप में परोसना चाहता था। लिखने के बाद दृश्य में जान निर्देशक ही डालता है। तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर दोनों ही बेहतरीन अभिनेत्री हैं। दोनों ने किरदार को खूब जिया। जब फिल्म सुनाई तो दोनों ने ही हां कर दी। उन्हें नहीं पता था कि मैं किसको कौन सा किरदार दूंगा। मगर, स्क्रिप्ट ही हर फिल्म की जान होती है। उन्होंने इसे सुनकर हां कहा तो मुझे फिल्म की कामयाबी पर विश्वास हो उठा था। रही बात चंद्रो और प्रकाशी की तो वो पहले से ही काफी उत्साहित थे। मुझे खुशी है कि दोनों के जीवन को मैंने पूरी मेहनत से सफलतापूर्वक उतारा।