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तमाम शहर ही बेरोजगार लगता है..

जागरण संवाददाता चंडीगढ़। तमाम शहर ही बेरोजगार लगता है जो नौकरी को कोई इश्तिहार ल

By JagranEdited By: Published: Tue, 10 Dec 2019 01:55 AM (IST)Updated: Tue, 10 Dec 2019 06:10 AM (IST)
तमाम शहर ही बेरोजगार लगता है..

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़।

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तमाम शहर ही बेरोजगार लगता है

जो नौकरी को कोई इश्तिहार लगता है..

पठानकोट के पुरण एहसान ने जब इस कविता को पढ़ा तो माहौल खुशनुमा हो गया। हालांकि ये वर्तमान समय पर कटाक्ष रहा, मगर इसने कवि सम्मेलन में एक अलग रंग जोड़ा। सोमवार को पंजाब यूनिवर्सिटी के इंग्लिश ऑडीटोरियम में आयोजित त्रीभाषीय कवि सम्मेलन में पुरण के साथ पंजाब, हरियाणा और हिमाचल के विभिन्न कवि अपनी कविताएं लेकर पहुंचे। सम्मेलन की शुरुआत चंबा के सुभाष साहिल ने की। उन्होंने अपनी कविता जो दिल की बात न समझें, वो फिर होगा खुदा कैसा, वो सब कुछ जानता है गर तो उससे मांगना कैसा को प्रस्तुत किया। इसके बाद उन्होंने भूख पर आधारित कविता जो नंगे पांव, भूखे पेट मीलों हो के आए हैं, कोई पूछे उन्हें दिखता वहां से था खुदा कैसा, मेरे भीतर भी गर तू है मेरे बाहर भी तू ही तू, तो मेरे घर से मस्जिद तक का है ये फासला कैसा को सुनाया। जिसे सुनकर लोगों ने उनके लेखन की तारीफ की। इसके बाद हमीरपुर की डॉ नलीनी विभा नाजली ने अपना शेर एक मुट्ठी खाक अन्जामे-हयात, अस्थियों का फिर सफर पानी पे है को प्रस्तुत किया। इसके बाद उन्होंने अपने शेर जख्म दे दे के मुझे उन की दवा देता रहा, वो मुखौटे ओढ़ के मुझ को दगा देता रहा, था अलग ही जर्फ दोनों का, अलग ही था मिजाज, मैं दुआ देती रही, वो बद्दुआ देता रहा। सम्मेलन में अगली कवयीत्रि उर्मिला कौशिक सखी रही, जिन्होंने गैरों की बदकार नजर से खूब बचाता है आंचल, मुफलिस बेबस की इस्मत भी खूब छुपता है आंचल को प्रस्तुत किया। इसके बाद उन्होंने इसी कविता में वो मेरी रूह में बसता है बस इतना फसाना है, में उसकी हो तो जाऊं पर मिरे आगे जमाना है। रही होगी तेरी ख्वाहिश बुलंदी पर बने रहना, मुझे तो ईंट पत्थर के मकां को घर बनाना है को सुनाया। तेरे मन पहुंची नहीं मेरे मन की बात

कार्यक्रम के दूसरे हिस्से में पंचकूला के डॉ श्याम सखा श्याम ने अपनी कविता प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि तेरे मन पहुंची नहीं, मेरे मन की बात, नाहक हमने थे लिए साजन फेरे सात। इसके बाद कार्यक्रम में चंडीगढ़ की कवयीत्रि गुरदीप कौर ने अपनी शायरी सुर्ख से आरिज हो गए हिजाब मे जाने क्या कह दिया था, तूने ख्वाब में, है जिदगी गर दिलकश, लतीफ जिया जाए मरना भी है तो क्यों ना सलीके से मरा जाए।


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