हर भाषा अपने आप में मुकम्मल, आज के युग में बहुभाषी होना बहुत जरूरी : प्रोफेसर राजकुमार
इस परिचर्चा का विषय नई शिक्षा नीति एवं भारतीय भाषाएं था। इस वेब संवाद में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजकुमार ने कहा कि सभी भाषाओं को आज के युग में मिलकर चलने और एक साथ आगे बढ़ने की जरूरत है।
चंडीगढ़, जेएनएन। पंजाब विश्वविद्यालय के तीन भाषा विभागों ने एक साथ मिलकर शनिवार को वेब संवाद का आयोजन किया गया। हिंदी, उर्दू व पंजाबी विभाग ने संयुक्त रूप से आयोजित यह परिचर्चा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित की थी, इसका विषय नई शिक्षा नीति एवं भारतीय भाषाएं था। इस वेब संवाद में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजकुमार ने कहा कि सभी भाषाओं को आज के युग में मिलकर चलने, आगे बढ़ने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि हर भारतीय भाषा के पास ज्ञान और संस्कृति का खजाना है और अगर हम मिलकर आगे बढ़ेंगे तो हमें लाभ ही लाभ होगा। प्रो. राजकुमार ने कहा कि नई शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं के विकास पर पहली बार इतना ध्यान दिया गया है, जिससे एक नई आशा का संचार हुआ है।
केएमसी भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ के कुलपति प्रो. माहरुख मिर्जा ने कहा कि नई शिक्षा नीति के आने से शिक्षकों की जिम्मेदारी भी पहले की तुलना में बहुत बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों की समाज में कितनी बड़ी भूमिका हो सकती है, इसको इस नीति में पहचाना गया है और अब शिक्षकों को भी अपनी दक्षता बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास करने होंगे। जेएनयू नई दिल्ली के डीन छात्र प्रो. सुधीर प्रताप सिंह ने कहा कि भाषाओं को बचाने की प्रतिबद्धता नई शिक्षा नीति में दिखाई देती है।
पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला के प्रो. जोगा सिंह ने कहा कि हर भाषा अपने आप में मुकम्मल है और आज के युग में बहुभाषी होना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि नई नीति में स्कूली शिक्षा मातृभाषा में देने की बात कही गई है लेकिन इसके साथ यथासंभव शब्द का प्रयोग किया गया है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी का वर्चस्व तभी खत्म हो पाएगा, जब मातृभाषा में शिक्षा देने के प्रस्ताव को लागू करने के लिए बाकायदा कानून बनाया जाए।
हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. गुरमीत सिंह ने कहा कि नई शिक्षा नीति के बाद पूरी शिक्षा व्यवस्था में एक नई शुरुआत करने का अवसर अवश्य पैदा हुआ है। हमें इस संबंध में सकारात्मक दृष्टिकोण और आपसी तालमेल के साथ आगे बढऩा चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं के पक्ष में बोलने वाला महात्मा गांधी से बढ़कर दूसरा कोई योद्धा आज तक नहीं हुआ है।