330 फीट नीचे फंसे 65 लोगों को मौत के पंजे से छीन लाया था इंजीनियर गिल
डॉ. रविंद्र मलिक, चंडीगढ़: वो हादसा , भुलाए नहीं भुलता। साल 1989 में पश्चिमी बंगाल के रानीगंज में कोयले की खुदाई के दौरान चीख पुकार मच गई। 330 फीट नीचे फंसे 65 लोगों को मौत के पंजे से छीन लाया था इंजीनियर गिल।
डॉ. रविंद्र मलिक, चंडीगढ़: वो हादसा , भुलाए नहीं भुलता। साल 1989 में पश्चिमी बंगाल के रानीगंज में कोयले की खदान में खुदाई चल रही थी लेकिन अचानक वहा पानी भरने से 230 लोग पर भर में ही मौत के मुंह में समा गए। हर तरफ लोगों की चीख-पुकार और बेहद गमगीन माहौल था। खदान के अंदर अब भी 71 मजदूर अंदर फंसे थे जो अंदर थोड़ी सी उंची जगह पर खड़े हो गए। उनमें से भी 6 की मौत हो गई। बाकी 65 को बचाने की जिम्मा उठाया इंजीनियर सरदार जसवंत सिंह ने।
उस वक्त उनकी उम्र 49 साल थी लेकिन हिम्मत नहीं हारी। पूरे 3 दिन 4 घटे में वो उन 65 लोगों को जमीन के 330 फीट नीचे से निकालने में कामयाब रहे। हर कोई उनकी बहादुरी का कायल हो गया। उनके इस साहसिक कार्य के लिए सरकार ने लाइफ टाइम ब्रेवरी अवार्ड से नवाजा। करीब 70 हजार लोगों की भीड़ वहा मौजूद थी। हादसे के चलते हुई मौतों से हर तरफ मातम पसरा पड़ा था। बचाव के काम में चार टीम लगी थी। इसकी जानकारी खुद उन्होंने पीयू में चल रहे 51 वें इंजीनियर्स डे मौके पर बातचीत के दौरान दी। वह अमृतसर के रहने वाले हैें और 1998 में कोल इंडिया से रिटायर हुए ।
22 इंच चोड़े सुराख से 330 फीट नीचे गए
उन्होंने बताया कि नीचे फंसे लोगों को निकलना आसान नहीं था। जहा लोगों फंसे से थे, उस जगह से थोड़ी दूर 22 इंच चौड़ा रास्ता बनाया गया । इसमें से लोहे की जाली वाले बॉक्स से खुद जसवंत सिंह नीचे गए। लोगों को बचाने में 4 टीमें काम कर रही थी जिनमें पानी निकालने , अंदर जाने समेत कई कामों में वोट जुटी थी ।
आसान नहीं था 330 नीचे 6 घटे तक रहना
जसवंत सिंह ने बताया कि जमीन के 330 फीट रहना आसान काम नहीं था। जब वो नीचे पहुंचे तो बेहद ही डराने वाला माहौल था। वो जब नीचे उतरे तो हर कोई एक दूसरे से पहले उपर जाना चाहता था। अंदर फंसी लेबर को समझाना भी बेहद मुश्किल काम था। लेकिन उनको करीब 6 घटे में ना केवल सबको बाहर निकला बल्कि खुद भी सबसे अंत में सुरक्षित बाहर आए।
हर मिनट 23 हजार लीटर पानी निकाला जा रहा था
यह भी बताया कि अंदर बहुत ज्यादा भर गया था। पंप से 23 हजार लीटर पानी हर मिनट निकाला जा रहा था। बीच वाली परत 150 फीट उपर थी। इससे कोयला निकाल लिया गया था। इसके बाद यहा पानी भर गया जो 330 फीट नीचे खुदाई वाली जगह भर गया। हादसे बाद अंदर के पानी को निकालने में करीब 2 महीने लग गए।