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डोप से डर ज्यादा, होप कम

::हाईलाइटर्स:: -1500 रुपये फीस चुकानी पड़ती है टेस्ट के लिए -4.20 लाख के करीब सरकारी

By JagranEdited By: Published: Tue, 10 Jul 2018 07:01 PM (IST)Updated: Tue, 10 Jul 2018 07:01 PM (IST)
डोप से डर ज्यादा, होप कम
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::हाईलाइटर्स::

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-1500 रुपये फीस चुकानी पड़ती है टेस्ट के लिए

-4.20 लाख के करीब सरकारी मुलाजिम काम कर रहे हैं पंजाब में अभी

-70 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे सरकार को सभी मुलाजिमों के टेस्ट पर

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कॉमन इंट्रो

पंजाब से एक माह में नशा खत्म करने के वादे के साथ पंजाब में सरकार बनाने वाले मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब में नशे से हो रही मौतों से बुरी तरह घिर गए हैं। एक माह में ड्रग्स को लेकर पंजाब सरकार ने जो तत्परता दिखाई, वह 14 माह में कभी नहीं दिखाई दी। पंजाब सरकार जो फैसला इस समय सर्वाधिक चर्चा का विषय बना हुआ है, वह है डोप टेस्ट। पंजाब कैबिनेट ने जैसे ही राज्य के सभी सरकारी कर्मचारियों व पुलिस मुलाजिमों का डोप टेस्ट करवाने की घोषणा की, राजनेताओं में डोप टेस्ट करवाने की होड़ लग गई। हर कोई सरकारी अस्पताल में डोप टेस्ट करवा कर सरकार के फैसल में खुद को शामिल करने में जुट गया। राजनेता जहा धड़ाधड़ डोप टेस्ट करवा रहे हैं, वहीं सरकारी मुलाजिम खासे आशकित हैं। मुलाजिमों की आशका डोप टेस्ट को लेकर नहीं, बल्कि इस बात को लेकर है कि उन्हें सरकार के सामने यह साबित करना होगा कि वह नशेड़ी नहीं हैं। वहीं, सरकार के इस फैसले पर सवाल भी उठने लगे हैं कि डोप टेस्ट क्या ड्रग्स की समस्या का समाधान कर सकता है?

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टेस्ट पर सवाल

पंजाब सरकार डोप टेस्ट के फैसले पर अडिग है, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि आखिर इस प्रकार के डोप टेस्ट के क्या परिणाम निकलेंगे, जिसमें मुलाजिम को पहले ही पता होगा कि उन्हें कब डोप टेस्ट देना है। पूर्व मंत्री राणा गुरजीत सिंह ने भी यही मुद्दा उठाया है। उनका कहना है कि कि डोप टेस्ट अचानक होना चाहिए। क्योंकि हर ड्रग्स की अलग-अलग मियाद है। जैसे कोकीन लेने वाले व्यक्ति के खून में ड्रग्स 2 से लेकर 10 दिनों तक रहती है, लेकिन वह भी मात्रा पर निर्भर करता है। इसी प्रकार मिथाडॉन 2 से 7 दिनों तक ही खून में रहेगी। सवाल उठने लगे हैं कि होड़ तो ड्रग्स को खत्म करने के लिए डोप टेस्ट करवाने की है, लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि सरकार कौन से ड्रग्स का डोप टेस्ट करवाना चाहती है। अफीम, कोकीन, भुक्की, स्मैक या अन्य। 10 प्रकार के टेस्ट

डोप टेस्ट में 10 प्रकार के टेस्ट लिए जाते हैं। बाबा फरीद यूनिवर्सिटी के पूर्व रजिस्ट्रार डॉ. प्यारे लाल गर्ग कहते हैं, यह हैरानीजनक है कि सभी भेड़ चाल में चलने लगते हैं। आखिर पहले सरकार यह तो तय कर ले कि उसे कौन सी ड्रग्स का टेस्ट करवाना है। सरकार डोप टेस्ट करवा कर किस तरह से नशे पर कंट्रोल करना चाहती है। क्योंकि अगर सभी सरकारी मुलाजिमों का डोप टेस्ट होता है, तो पंजाब देश का संभवत: एक मात्र ऐसा राज्य होगा जो यह कदम उठाने जा रहा है। वहीं, पंजाब सरकार ने सरकारी मुलाजिमों का डोप टेस्ट करवाने का फैसला तो कर लिया है, लेकिन अभी यह ही तय नहीं हो पाया है कि डोप टेस्ट का खर्च कौन उठाएगा। क्योंकि डोप टेस्ट करवाने की सरकारी फीस 1500 रुपये है। पंजाब में अभी 4.20 लाख के करीब सरकारी मुलाजिम काम कर रहे हैं। अत: इस पर करीब 70 करोड़ रुपये का खर्च आ सकता है। जाहिर सी बात है कि मुलाजिम अपनी जेब से पैसा खर्च करवाकर तो डोप टेस्ट करवाएगा नहीं। अत: सरकार को ही इसका खर्च उठाना पड़ेगा। सरकार के ही एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, सरकार को आनन-फानन में इस तरह के कदम नहीं उठाने चाहिए। क्योंकि एक तरफ आप ने सभी सरकारी मुलाजिमों को संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया और डोप टेस्ट पर कई करोड़ रुपये भी खर्च कर देंगे। इसके बावजूद अगर सरकार के हाथ खाली रह गए, तो इससे सरकार की साख दाव पर लग जाएगी। क्योंकि अगर कोई मुलाजिम ड्रग्स लेता भी है और उसे पता है कि उसका टेस्ट कब होना है। ऐसे में वह पहले से ही उसकी युक्ति सोच लेगा। संभवत: शराब का सहारा लेकर वह अपने डोप को पाजीटिव होने से बचा ले। क्योंकि सरकार शराब का टेस्ट नहीं करवा रही है।

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कितने समय तक रहती है खून में मौजूदगी

नशीले पदार्थ- समय

प्रापोक्सीफिन- 2 दिन

फैंसीक्लीडाइन- 8 दिन

ओपीयोड्स-1 से 3 दिन

मिथाक्यूलोन- 10 से 15 दिन

मिथाडॉन- 2 से 7 दिन

कोकीन- 2 से 10 दिन

कैनाबिस- 3 से 30 दिन

बैजोडाइजीपाइंस- 2 से 10 दिन

बारबीच्यूरेट्स- 2 से 15 दिन

एमफीटामाइंस- 2 दिन

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खेलों में डोप का डंक

डोपिंग का इतिहास काफी पुराना है। 1904 ओलंपिक में सबसे पहले डोपिंग का मामला सामने आया था, लेकिन इस संबंध में प्रयास 1920 से शुरू हुए। शक्तिवर्धक दवाओं के इस्तेमाल करने वाले खिलाड़ियों पर नकेल कसने के लिए सबसे पहला प्रयास अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स महासंघ ने किया और 1928 में डोपिंग के नियम बनाए गए। 1968 ओलंपिक में पहली बार डोप टेस्ट अमल में लाया गया और धीरे-धीरे ऐसा करने वाले खिलाड़ियों पर शिकंजा कसना शुरू हो गया। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने 1999 में विश्व एंटी डोपिंग संस्था (वाडा) की स्थापना की। इसके बाद प्रत्येक देश की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर डोपिंग रोधी संस्था (नाडा) की स्थापना की गई। हथियार लाइसेंस के लिए भी जरूरी

पंजाब सरकार ने हथियार का लाइसेंस लेने के लिए लोगों को डोप टेस्ट करवाना भी जरूरी कर दिया था। सरकार का उद्देश्य यह पता लगाना था कि हथियार का लाइसेंस लेने वाले कहीं कोई नशा तो नहीं करते। पंजाब सरकार की तरफ से ये भी कहा गया था कि अगर डोप टेस्ट में नशे की मात्रा पाई गई, तो पंजाब में जीवन भर हथियार के लाइसेंस से वंचित रहना पड़ेगा।

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एक्सप‌र्ट्स की राय ड्रग्स लेने पर वह आपके खून में मिल जाता है। अलग-अलग ड्रग्स की खून में रहने की अलग-अलग सीमा है, जिसके बाद वह यूरीन के माध्यम से निकल जाता है। ड्रग्स लेने वाले के खून से जैसे-जैसे ड्रग की मात्र कम होने लगती है, उसे ड्रग लेने की जरूरत महसूस होने लगती है, लेकिन हर ड्रग्स की खून में रहने की अलग-अलग समय सीमा है।

-डॉ. डीके बिमरा, माइक्रोबायोलॉजिस्ट

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डोप टेस्ट इस समस्या का समाधान नहीं है। ड्रग्स की लड़ाई तब तक नहीं लड़ी जा सकती, जब तक इसे घर से न शुरू किया जाए। घर में लड़की देर से आती है, तो मा-बाप को चिंता हो जाती है। यह चिंता तब भी होनी चाहिए, जब बेटा देर से आता है। आज चर्चा इस बात की भी है कि ऑर्गेनिक ड्रग्स को छूट दी जाए। हकीकत यह है कि अमेरिका इसका भी प्रयोग कर चुका है। तब भी वहा 65000 मौतें हो गई थीं। जागरूकता ही इसका सही हल है।

-डॉ. प्यारे लाल गर्ग, पूर्व रजिस्ट्रार बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस

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-प्रस्तुति: कैलाश नाथ


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