कोरोना से डरें नहीं, लड़ने वाला ही बनता है सिकंदर
कोरोना भले ही महामारी है लेकिन इससे डरना जरूरी नहीं है। हमें बचाव के उपाय करके ही इसका सामना करना होगा। हमें अपना मनोबल बनाए रखना होगा।
सुमेश ठाकुर, चंडीगढ़
कोरोना भले ही महामारी है, लेकिन इससे डरना जरूरी नहीं है। हमें बचाव के उपाय करके ही इसका सामना करना होगा। हमें अपना मनोबल बनाए रखना होगा। यह कहना है ब्लाइंड इंस्टीट्यूट सेक्टर-26 में कार्यरत अध्यापक राजेश कुमार आर्या का। राजेश सौ फीसद दृष्टिहीन है। आंखों की रोशनी नहीं होने के बावजूद राजेश ने कोरोना की जंग ठीक उसी प्रकार से जीती, जैसे बाकी मरीज। राजेश ने कहा कि लड़ने वाला ही सिकंदर बनता है। मैं सड़क पर आम लोगों की तरह चलता हूं। जैसे आम लोग खाना खाते हैं और खुद का जीवनयापन करते हैं, मैं भी ठीक वैसे ही जी रहा हूं। ऐसे में मुझे कोरोना संक्रमण होना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। मैंने संक्रमित होने के बाद खुद की सोच को बेहतर रखा। मेरी सोच थी कि कोरोना संक्रमण हर किसी को हो रहा है और बेहतर देखभाल के बाद ज्यादातर लोग वापस सामान्य जीवन में आ रहे हैं तो मेरे अंदर कौन सी समस्या थी। जैसे ही मैं कोरोना पॉजिटिव हुआ तो सबसे पहले घर में आइसोलेट हुआ। इसके बाद जो भी काम मुझे अच्छे लगते थे उन्हें अकेले बैठकर करना शुरू किया और डॉक्टर की बताई हर बात को फॉलो किया। मैं ठीक 15 दिन में ठीक होकर वापस अपने इंस्टीट्यूट जाना शुरू कर दिया। मरीज के साथ परिवार का सकारात्मक व्यवहार जरूरी
राजेश आर्या ने कहा कि जब कोई कोरोना संक्रमित हो जाता है तो उस समय उसे सबसे ज्यादा जरूरत परिवार की होती है। मेरी पत्नी विनीता भी पूरी तरह से दृष्टिहीन हैं। मेरे संक्रमित होने के बाद उसने एक बार भी यह नहीं सोचा कि मुझे को कुछ हो जाएगा। यह बात जरूर रही कि वह मेरे कमरे में नहीं आ रही थी, लेकिन मुझे समय पर खाना, चाय से लेकर हर वह सामान मुहैया करवा रही थी। उसी के साथ मेरा दस वर्षीय बेटा भी हर चीज में सहयोग कर रहा था। बेटे का अहसास पाकर एक-दो बार खुद को कमजोर महसूस किया लेकिन मुझे विश्वास था कि आज भले ही इससे दूर हूं लेकिन जल्द ही इसके साथ खेलूंगा और इसकी हर बात सुनता हुआ इसकी हर उम्मीद को पूरा करूंगा।