पंजाबी सिनेमा को बनाया डिजिटल सिनेमा
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : 80 के दशक में पंजाबी फिल्म बनना शुरू हुई थी। उस दौरान, डिजिट
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : 80 के दशक में पंजाबी फिल्म बनना शुरू हुई थी। उस दौरान, डिजिटल तकनीक इंडस्ट्री में आई नहीं थी। ¨हदी फिल्म भी डिजिटल नहीं होती थी। ऐसे में पहली बार पहली पंजाबी डिजिटल फिल्म लेकर आया। हैरानी हुई, उस वक्त ये भारत की दूसरी डिजिटल फिल्म रही। खुशी होती है कि आज पंजाबी सिनेमा कहां तक पहुंच गया। पहले हालांकि कंटेंट था, मगर तकनीक नहीं। पर आज तकनीक तो है, मगर कंटेंट नहीं। फिल्म निर्देशक हरबख्स ¨सह लाटा ने कुछ इन्हीं शब्दों में पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री में पहली बार डिजिटल तकनीक को लाने पर बात की। सोमवार को बाल भवन-23 में आयोजित टीएफटी ¨वटर थिएटर फेस्टिवल में वह रूबरू सेशन में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि फिल्म से पहले उन्हें रंगमंच से प्यार हुआ। 60 के दशक में कोई महिला थिएटर नहीं करती थी। घर में पिता रंगमंच से जुड़े थे। उन्हें एक नाटक के लिए महिला किरदार चाहिए थी। मगर कोई करने को तैयार नहीं हुआ। ऐसे में उन्होंने मेरी मां को रंगमंच पर अभिनय करने को कहा। इसी तरह से मैं भी रंगमंच से जुड़ गया। सड़क दुर्घटना ने जोड़ा टीवी से
लाटा ने कहा कि 1966 में वह रंगमंच के एक्टर बनना चाहते थे। कई नाटक भी किए। मगर एक सड़क हादसे ने मेरी ¨जदगी बदल दी। मैंने फिल्म से जुड़ना चाहा। उस दौरान अमेरिका गया और फिल्म मे¨कग में डिप्लोमा किया। कैनेडा में रहते हुए रंगकर्मी मोहन महाऋषि से मिलना हुआ। जो नाटक रानी ¨जदा को लेकर कैनेडा में पहुंचे थे। उनके साथ मंगल ढिल्लों और रानी बलबीर कौर भी पहुंचे। लाटा ने कहा कि मोहन उन दिनों एक लाइन प्रोड्यूसर ढंढ़ रहे थे। मैंने उनकी यहां मदद की। उन्होंने मुझे अपनी टीम में लिया और पूरे कैनेडा में हमारे शो हुए। इसके बाद वहीं बस कर मैंने कई टीवी और फिल्म में काम किया। 1982 में पहली फिल्म सरदारा करताना बनाई। फिर दूरदर्शन पर वांटेड गुरदास मान डेड और अलाइव, गदर दी तलवार जैसे प्रसिद्ध नाटक भी बनाए। इसके बाद थिएटर में लाइट एंड साउंड को इंट्रोड्यूस करवाया। जिसमें सारागढ़ी के युद्ध पर आधारित स्टेज शो भी पूरे विश्व में किए। लाटा ने कहा कि आज हम तकनीक में आगे हैं, मगर हमें कंटेंट को बेहतर बनाना है। हमें नई पीढ़ी को भी इससे जोड़ना होगा।