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शास्त्रीय संगीत ही हमारी असली परंपरा

भारत को समझने के लिए इसके संगीत को समझना जरूरी है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 01 Feb 2019 09:20 PM (IST)Updated: Fri, 01 Feb 2019 09:20 PM (IST)
शास्त्रीय संगीत ही हमारी असली परंपरा

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : भारत को समझने के लिए इसके संगीत को समझना जरूरी है। हर दिन, हर मौसम के लिए एक राग है। ऐसे में यहां की ऋतु से लेकर संस्कृति तक को समझने के लिए संगीत को समझना चाहिए। गंधर्व महाविद्यालय पंचकूला के डायरेक्टर अर¨वदर शर्मा ने कुछ इन्हीं शब्दों में भारतीय शास्त्रीय संगीत पर बात की। शुक्रवार को बाल भवन-23 में आयोजित रूबरू सेशन में उन्होंने भारतीय संगीत पर चर्चा की। प्रो अर¨वदर शर्मा ने कहा कि उन्होंने संगीत की शिक्षा अपने पिता से ली। उनके पिता ने वर्ष 1901 में लाहौर में गंधर्व महाविद्यालय की स्थापना की। लाहौर में रहते हुए उनके पिता ने कई दिग्गजों को संगीत सिखाया। विभाजन तक उनके पिता वहीं रहे। मगर उन दिनों संगीत की पूजा होती थी। आज बाजारवाद ज्यादा है। आज संगीत भी बन रहा है, तो वे भी बिना रागों पर आधारित। इसमें कुछ हद तक दोष शायद हमारा भी है, जिन्होंने शास्त्रीय संगीत को इतनी तरजीह नहीं दी। अगर सुनने वाले ज्यादा होंगे, तो गायिकी भी अपने आप आगे बढ़ेगी। हालांकि मैं संगीत से जुड़े शिक्षकों को ये बताना चाहता हूं कि संगीत को केवल डिग्री तक न बांधे। इसे श्रद्धा की तरह देखा जाए। नाट्यशास्त्र जैसे अनमोल ग्रंथ हमारे ही पास हैं

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प्रो. अर¨वदर ने कहा कि भारत ऐसा देश है, जहां नाट्यशास्त्र जैसे अनमोल ग्रंथ हैं। हमें समझना होगा कि हमारा संगीत मेलोडी पर आधारित है, जबकि पाश्चात्य संगीत हार्मनी पर आधारित होता है। ऐसे में हम बिना सोचे-समझे नकल करेंगे तो पारंपरिक संगीत पर असर पड़ेगा। मेरे अनुसार पहली जिम्मेदारी शिक्षक की है कि वह अपने शिष्य को सही तरह से संगीत सिखाए। अच्छी शिक्षा ही अच्छा संगीत प्रदान करेगी।


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