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आंखों में रोशनी नहीं तो क्या, दूसरों की दिवाली रोशन करने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे ये बच्चे

सेक्टर-26 स्थित इंस्टीट्यूट फॉर द ब्लाइंड में हर रोज 15 से 18 साल के दिव्यांग लड़के और लड़कियां आजकल पूरी मेहनत से दिवाली को जगमग करने के लिए मोमबत्तियां तैयार कर रहे हैं।

By Vikas KumarEdited By: Published: Fri, 18 Oct 2019 12:36 PM (IST)Updated: Fri, 18 Oct 2019 12:36 PM (IST)
आंखों में रोशनी नहीं तो क्या, दूसरों की दिवाली रोशन करने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे ये बच्चे
आंखों में रोशनी नहीं तो क्या, दूसरों की दिवाली रोशन करने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे ये बच्चे

चंडीगढ़ [डाॅ. सुमित सिंह श्योराण]। दूसरों को खुशी देना कोई इन दिव्यांग बच्चों से सीखे। खुद की आंखों में रोशनी नहीं तो क्या लेकिन दूसरों की दिवाली को जगमग बनाने का जज्बा इनके चेहरों पर साफ झलकता है। बीते करीब एक महीने से लोगों की दिवाली को खास बनाने की तैयारी इन बच्चों द्वारा की जा रही है। बच्चों द्वारा तैयार मोमबत्तियां खूबसूरत तरीके से पैक की जा रही हैं।

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हम बात कर रहे हैं चंडीगढ़ के सेक्टर-26 स्थित इंस्टीट्यूट फॉर द ब्लाइंड में दिव्यांग (दृष्टिहीन) बच्चों द्वारा दिवाली पर तैयार किए जा रहे सामान की। अपने इंस्ट्रक्टर की देखरेख में यहां हर रोज 15 से 18 साल के दिव्यांग लड़के और लड़कियां आजकल पूरी मेहनत से दिवाली को जगमग करने के लिए मोमबत्तियां तैयार कर रहे हैं। इन दिव्यांग बच्चों के हाथों के हुनर को शहर ही नहीं, दूसरे शहरों के लोग भी हाथोंहाथ ले रहे हैं। इस बार आप भी इन बच्चों द्वारा तैयार सामान को खरीद उनकी दिवाली को खास बना सकते हैं।

इंस्टीट्यूट फॉर द ब्लाइंड में दिवाली के लिए मोमबत्ती की पैकिंग करते स्टूडेंट्स।

बच्चों द्वारा हर रोज तीन घंटे की जाती है पैकिंग

ब्लाइंड इंस्टीट्यूट में 158 लड़के और लड़कियां पढ़ाई कर रहे हैं। 15 से 20 दिव्यांग बच्चे रोज 2 से 3 घंटे का समय मोमबत्तियां तैयार करते हैं। बीते 26 साल इंस्टीट्यूट में काम करने वाले दुर्गा बहादुर ने बताया कि बेशक बच्चे आंखों से देख नहीं सकते लेकिन उनमें सीखने का जज्बा कमाल का है। इन बच्चों द्वारा बहुत ही सफाई से मोमबत्तियों और दूसरे सामान की पैकिंग की जाती है। बहुत लोग इन बच्चों के हुनर को देखने के लिए ही आते हैं और काफी संख्या में मोमबत्ती खरीदते हैं।

तीन से चार लाख के बीच कमाई, जालंधर से मंगवाया जाता है मोम

इंस्टीट्यूट द्वारा कैंपस में ही कई साल से विभिन्न डिजाइन की मोमबत्ती तैयार की जाती हैं। इन्हें तैयार करने के लिए 30 से 40 बोरी मोम हर साल जालंधर से मंगवाया जाता है। यहां विभिन्न रंग की मोमबत्ती तैयार की जाती हैं। मोमबत्ती के छोटे 20 पीस के पैकेट की कीमत 60 और बड़े 13 पीस की कीमत 80 रुपये है। हर साल बच्चों द्वारा तैयार मोमबत्ती तीन से चार लाख के बीच बिक जाती हैं। मोमबत्ती तैयार करने वाले दुर्गा बहादुर ने बताया कि इस बार खास एल्युमीनियम के ढांचे में मोम के दीये तैयार किए गए हैं। ये मोम के दीये साधारण मोमबत्ती से कई घंटे अधिक घर को रोशन करते हैं।

बिक जाता है सारा सामान

ब्लाइंड इंस्टीट्यूट के बच्चों द्वारा तैयार मोमबत्तियों की जबरदस्त डिमांड रहती है। ¨प्रसिपल जेएस जैयरा ने बताया कि बहुत से एजुकेशनल इंस्टीट्यूट, समाजसेवी संस्थान और यहां तक बड़े अधिकारी भी दिवाली के लिए यहां पर खरीदारी करने आते हैं। यहां पर तैयार मोमबत्ती की खासियत यह है कि इसमें किसी तरह की मिलावट नहीं की जाती। ब्लाइंड इंस्टीट्यूट में लगातार बच्चों से मिलने आने वाली पंचकूला निवासी एचसीएस अधिकारी अमृता ने कहा कि लोगों को इन बच्चों द्वारा तैयार चीजों को खरीदना चाहिए ताकि जरूरतमंद बच्चों की मदद हो और उनका हौसला भी बढ़े। अमृता भी यहां से खरीदारी करती हैं। कोई भी सुबह आठ से शाम पांच बजे तक इंस्टीट्यूट के स्टोर से खरीदारी कर सकता है।

इंस्टीट्यूट के बच्चों में गजब का टैलेंट है। बीते कई साल से दिवाली पर यहां पर बच्चों द्वारा तैयार मोमबत्तियों को लोगों द्वारा खूब पसंद किया जाता है। इस बार भी लोगों का काफी अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। शहर के कई नामी लोग तक यहां पर दिवाली को जगमग करने के लिए बच्चों के हाथों की तैयार सामान लेकर जाते हैं।

-जेएस जैयरा, प्रिंसिपल इंस्टीट्यूट फॉर द ब्लाइंड, सेक्टर-26

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