बेवजह मुकदमेबाजी से बचेगी सरकार
-कैबिनेट ने दी लिटिगेशन पॉलिसी 2018 को हरी झंडी -बढ़ते वित्तीय व प्रशासकीय बोझ को कम कर
-कैबिनेट ने दी लिटिगेशन पॉलिसी 2018 को हरी झंडी
-बढ़ते वित्तीय व प्रशासकीय बोझ को कम करेगी सरकार
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राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़: पंजाब मंत्रिमंडल ने सरकारी विभागों में बढ़ रही मुकदमेबाजी (लिटिगेशन) को रोकने के लिए मौजूदा विवाद निपटारा और मुकदमेबाजी नीति में संशोधनों को मंजूरी दे दी है। इसका उद्देश्य इस समय चल रही मुकदमेबाजी का तेजी से निपटारा करना और नए अदालती मामलों में संस्थाओं की हिस्सेदारी को कम से कम करना है। सरकार बढ़ते वित्तीय और प्रशासकीय बोझ को कम करना चाहती है।
नई नीति के अनुसार सरकारी, सार्वजनिक सेक्टर की संस्थाओं, सरकारी कारपोरेशनों के सभी कानूनी मामले राज्य के एडवोकेट जनरल के दफ्तर के हवाले किए जाएंगे और पैनल एजी के सलाह-मशविरे के साथ बनाए जाएंगे। राय में भिन्नता होने की सूरत में मामला मुख्यमंत्री के पास भेज दिया जाएगा। नई नीति के अनुसार अगर कोई विभाग एजी दफ्तर के अलावा किसी अन्य वकील की सेवाएं लेना चाहता है, तो उसे इसके लिए मुख्यमंत्री से आज्ञा लेनी पड़ेगी। क्योंकि एजी दफ्तर में 152 लॉ ऑफिसर हैं। जिन पर सरकार माह का दो करोड़ रुपये खर्च कर रही है। इन्हें अब समयबद्ध तरीके से हल किया जा सकेगा। समर्थ अधिकारी ऐसे मामलों में फैसला लेंगे और राहत या लाभ मुहैया करवाएंगे। काडर के उन सदस्यों के मामलों में भी ऐसा ही किया जा सकेगा। जहां वित्तीय प्रभाव दो लाख रुपये से कम होगा, उन मामलों में भी मुकदमेबाजी से बचा जाएगा। बशर्ते इसमें कानून या नीति का सवाल रुकावट न बनते हों। इसी तरह गैर-लाभदायक मामलों में भी राज्य सरकार मुकदमेबाजी से बचेगी। अंतरिम ऑर्डर के विरुद्ध अपील नहीं
नई नीति के अनुसार जरूरी न होने की सूरत में पूर्व एकतरफा और अंतरिम ऑर्डर के विरुद्ध अपील दायर नहीं की जाएगी। इसके बजाय मामले को खत्म करने की कोशिश की जाएगी। सिर्फ उस मामले में ही अपील दायर की जाएगी, जिसमें निपटारे के आदेश नहीं होंगे और मामला राज्य के हित में होगा। इसी तरह राजस्व से संबंधित आम मामलों में अपील दायर नहीं की जाएगी। दो लाख रुपये से कम रकम वाले वित्तीय मामलों में उतनी देर तक अपील दायर नहीं की जाएगी। इतनी देर तक इस मामले में कानून या नीति का सवाल उत्पन्न नहीं होता। आम हालत में सुप्रीम कोर्ट में तब तक अपील दायर नहीं की जाएगी, जब तक हाईकोर्ट की टिप्पणी कानूनी व्यवस्था, सरकारी नीति के खिलाफ नहीं होगी या कानून में व्यापकता का सवाल पैदा नहीं होगा।