पंजाब में दलित कार्ड से भाजपा का मोह हुआ भंग, अब परंपरागत वोट बचाने की कवायद
पंजाब में भारतीय जनता पार्टी का दलित कार्ड से मोहभंग हो गया है। पार्टी अब राज्य में परंपरागत वोट बैंक बचाने में जुट गई है।
चंडीगढ़ [मनोज त्रिपाठी]। पंजाब में भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर से पुरानी राह पर लौटने की कवायद में जुटी है। दलित कार्ड से भाजपा का मोहभंग होने के बाद प्रदेश की कमान विजय सांपला की जगह बीते सप्ताह पार्टी ने राज्यसभा सदस्य श्वेत मलिक को सौंपी है। दो सालों में पंजाब में हुए विधानसभा, लोकसभा उप चुनाव व नगर निगम चुनाव में करारी हार के बाद भाजपा ने अपनी रणनीति बदल दी है। लोकसभा के आगामी चुनाव को लेकर पार्टी ने अभी से अपने पुराने वोट बैंक को बचाने की कवायद शुरू कर दी है।
भाजपा ने पूर्व प्रधान कमल शर्मा को हटाने के बाद करीब दो साल पहले 10 अप्रैल को विजय सांपला को प्रधान बनाया था। पंजाब में यह पहला मौका था जब भाजपा ने किसी दलित के हाथों में प्रधानगी सौंपी थी। कोशिश थी कि 32 फीसद दलित वोट बैंक में सेंध लगा पाएगी, लेकिन हुआ इसके विपरीत। सांपला के प्रधान बनने के बाद पार्टी विधानसभा चुनाव में 12 से 3 सीटों में सिमट गई। इतनी बुरी हालत 15 साल में कभी नहीं हुई थी।
2002 विस चुनाव में 18 सीटों, 2007 में 19 व 2012 में 12 सीटों पर पार्टी ने जीत दर्ज की थी। 2017 विस चुनाव में गठबंधन विरोधी लहर के चलते उसे खासा नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि इसके पीछे अकाली दल के साथ गठबंधन भी बड़ा कारण था। नशा, अवैध खनन व किसानों की आत्महत्याओं जैसे मुद्दों में घिरे अकाली दल के खिलाफ मतदाताओं की नाराजगी का खामियाजा भाजपा को भी भुगतना पड़ा।
सांपला का उदय भी दलित नेता व दलितों के मुद्दों को उठाने के बाद हुआ था। 2005-06 में जालंधर के बूटा मंडी इलाके में पहली बार भाजपा की दलित बोलिया सिंघासन डोलया रैली की सफलता के बाद लाल कृष्ण आडवाणी ने सांपला की पीठ थपथपाई थी। इसके बाद सांपला विधानसभा चुनाव को लेकर टिकट की दावेदारी पेश करने लगे। लंबे इंतजार के बाद पार्टी ने उन्हें 2014 में होशियारपुर से लोकसभा चुनावी मैदान में उतारा। जीतने पर राज्य मंत्री बनाया। इसके बाद भी सांपला दलित वोट बैंक में सेंधमारी कर पाने में सफल नहीं हो पाए।
सवा लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल वाली भाजपा अपनी गुरदासपुर की सीट भी करीब दो लाख के अंतर से उप चुनाव में हार गई। रही सही कसर जालंधर, लुधियाना, पटियाला व अमृतसर निगम चुनाव में करारी हार के बाद निकल गई।
पार्टी ने पंजाब में दलित कार्ड की बजाय अब अपने पुराने मतदाताओं को संभालने के लिए सांपला के स्थान पर श्वेत मलिक के हाथों में कमान सौंपी है। यह अलग बात है कि मलिक के वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ करीबी रिश्ते हैं, लेकिन संघ की मोहर लगने के बाद ही पार्टी ने पंजाब में गलती सुधारी है।
कैप्टन सरकार को घेरना व पार्टी में फूट खत्म करना बड़ी चुनौती
मलिक के लिए सबसे बड़ी चुनौती विभिन्न मुद्दों पर कांग्रेस सरकार को घेरना और पार्टी में गुटबाजी को खत्म करके रूठों का मनाने की रहेगी। पार्टी पिछले विधानसभा चुनाव से ही परिवर्तन के मूड में है। यही वजह थी कि पूर्व मंत्री मदन मोहन मित्तल जैसे तमाम दिग्गजों की टिकटें भी कट गई थीं, जबकि पूर्व मंत्री मनोरंजन कालिया जैसे दिग्गजों की टिकट बड़ी मुश्किल से बच पाई थी।
मलिक 8 को ग्रहण करेंगे कार्यभार
भाजपा के नए प्रधान श्वेत मलिक 8 अप्रैल को चंडीगढ़ में प्रदेश कार्यालय में आयोजित समारोह में पद ग्रहण करेंगे। इस मौके पर पंजाब प्रभारी प्रभात झा व प्रदेश के वरिष्ठ नेता भी मौजूद होंगे। पदभार ग्रहण समारोह के मद्देनजर बठिंडा में 8 अप्रैल को होने वाली प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक स्थगित कर दी गई है।