पंजाब की राजनीति में उठा बड़ा सवाल- क्या नई राह की तलाश में जुटे हैं सिद्धू
पंजाब के फायर ब्रांड नेता व पूव्र क्रिकेटर नवजाेत सिंह सिद्धू एक बार फिर आक्रामक मूड में हैं। ऐस में सवाल उठ रहे हैं कि क्या वह फिर नई राह की तलाश में तो नहीं हैं।
जेएनएन, चंडीगढ़। पंजाब की राजनीति में नवजाेत सिंह फिर चर्चा में हैं और इससे कई सवाल उठ रहे हैं। पंजाब के स्थानीय निकाय मंत्री सिद्धू ने अमृतसर, जालंधर व पटियाला के मेयरों के चयन में उनकी कोई राय न लिए जाने पर कड़े तेवर दिखाते हुए अपनी नाराजगी सार्वजनिक कर दी। वह अपने अंदाज में बोले, सत्य प्रताडि़त हो सकता है, पराजित नहीं हो सकता, सच की राह पर हूं, फूल हो कांटे हों, मुझे कोई परवाह नहीं होती। तो क्या अब सिद्धू अपने लिए नए रास्तों की तलाश में जुट गए हैं? उन्होंने कहा कि वह नैतिकता से कभी समझौता नहीं करते।
बोले, नैतिकता से कभी समझौता नहीं करता
सिद्धू ने बुधवार काे मीडिया मीडिया से बातचीत में अपने यह तेवर दिखाए। इससे पहले उन्होंने पूरे मामले पर बयान भी जारी किया। ऐसा पहली बार है जब किसी मंत्री ने प्रेस बयान जारी करके सरकार और पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोला हो। हालांकि सिद्धू बुधवार दोपहर को मीडिया के सामने सीमित बयान देकर किसी भी सवाल का जवाब देने से बचते नजर आए और शाम को कैबिनेट की मीटिंग में पहुंच गए, लेकिन वहां भी बोले कुछ भी नहीं।
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अमृतसर का मेयर करमजीत सिंह रिंटू को बनाने से सिद्धू नाराज हैं। यह उनके आज के बयान से भी साफ झलक रहा था। अपने लोकल बॉडीज के दफ्तर में मीडिया के सामने उन्होंने कहा, ' सत्य प्रताडि़त हो सकता है, पराजित नहीं हो सकता, सच की राह पर हूं, फूल हो कांटे हों, मुझे कोई परवाह नहीं होती।' उन्होंने इस मसले को संजीदा और संवेदनशील बताया तथा कहा कि वह नैतिकता से कभी समझौता नहीं करते।
सिद्धू का बयान बेशक चार लाइनों का हो लेकिन उन्होंने जिस तरह से कैबिनेट की मीटिंग से ठीक पहले यह बयान दिया और कैबिनेट की मीटिंग के बाहर भी उनके लोगों ने मीडिया में इस बयान की कापियां बांटी उससे साफ जाहिर है कि वह पार्टी और सीएम दोनों को अपने तेवरों से अवगत करवाना चाहते हैं। वह कैबिनेट की मीटिंग में आए, लेकिन चुपचाप ही रहे। बताया जाता है कि अब भी उनके तेवर तल्ख ही हैं।
दो-तीन पहले राहुल गांधी से भी मिले थे
सूत्रों का यह भी कहना है कि वह दो दिन पहले इस मामले को लेकर राहुल गांधी से भी मिले थे, लेकिन इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी। सिद्धू ने उन सवालों पर भी चुप्पी साधे रखी जो मीडिया ने उनसे पूछे। वह केवल अपने बयान को ही दोहराते रहे।
बताया जाता है कि चुनाव से पहले मेयरों के चयन का अधिकार सीएम को सौंपने संबंधी जिस पत्र पर सभी विधायकों ने हस्ताक्षर किए हैं उसमें सिद्धू के हस्ताक्षर भी हैं। सूत्रों का कहना है कि इस पत्र पर साइन करने में उन्होंने सारा दिन लगा दिया। मीडिया द्वारा इस पत्र पर साइन करने संबंधी सवाल पर सिद्धू ने कहा, मैंने सीएम की ओर से भेजी किसी भी चिट्ठी पर साइन करने से कभी मना नहीं किया क्योंकि वह बॉस हैं। पर इसका मतलब यह नहीं कि मैं उससे सहमत हूं।
कैप्टन व जाखड़ ने की मीटिंग
सूत्रों का यह भी कहना है कि आज उनके मामले को लेकर सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह, पंजाब मामलों की प्रभारी आशा कुमारी, पंजाब कांग्रेस के प्रधान सुनील जाखड़ और हरीश राय चौधरी के बीच मीटिंग हुई लेकिन कोई इस मामले में बोलने को राजी नहीं है।
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यह कहा सिद्धू ने
'सत्य प्रताडि़त हो सकता है, पराजित नहीं। मैंने कभी सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं किया। स्थानीय निकाय सरकार का मंत्री होने के बावजूद पटियाला, अमृतसर और जालंधर के मेयर चुनाव के सिलसिले में डेढ़ माह के दौरान हुई किसी भी बैठक, प्रक्रिया या विचार-विमर्श में मुझे शामिल नहीं किया गया। न कोई राय ली गई। इससे मेरी संवेदनाएं गहरे रूप से आहत हुई हैं। यहां तक कि अमृतसर में हुई बैठक में शामिल होने के लिए भी मुझे नहीं बुलाया गया। इसलिए मैं नहीं गया। सीएम साहब ने कभी कोई चिट्ठी मेरे पास भेजी हो और कहा हो कि यह काम करना है, तो क्या मैं इन्कार कर सकता हूं। वे बॉस हैं, लेकिन क्या इसका यह मतलब है कि स्थानीय निकाय सरकार के मंत्री को डेढ़ माह में किसी भी प्रक्रिया या विचार-विमर्श में शामिल न किया जाए। मैंने क्या करना था, अपनी राय ही रखनी थी।'
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अनदेखी का अारोप लगाकर भाजपा भी छोड़ी थी
नवजोत सिंह सिद्धू ने भारतीय जनता पार्टी छोड़ी थी तो उस समय भी अपनी उपेक्षा किए जाने का अरोप लगाया था। भाजपा ने उनको राज्यसभा का सदस्य बनाया था, लेकिन सिद्धू पंजाब की राजनीति से दूर किए जाने से नारज था। सिद्धू ने कहा था कि भाजपा उनकी उपेक्षा कर रही है। उनके लिए पंजाब जरूरी है न कि राज्यसभा की सदस्यता या कोई और पद।
अाप में जाने की थी तैयारी, केजरीवाल पर बात न सुनने का लगाया अाराेप
इसके बाद उनकी आम आदमी पार्टी से भी बातचीत चली, लेकिन वह वहां भी नहीं गए और केजरीवाल पर अपनी बात नहीं सुनने का अारोप लगाया। फिर उन्होंने परगट सिंह और बैंस बंधुओं बलविंदर सिंह बैंस अौर सिमरजीत सिंह बैंस के साथ मिलकर एक मोर्चा 'आवाज-ए-पंजाब' बनाया था। फिर कांग्रेेस में शामिल हो गए। इसके बाद बैंस बंधुओं ने आम आदमी पार्टी से गठजोड़ कर विधानसभा चुनाव लड़ा।
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मंत्री बनने के बाद दस महीने में तीसरी बार नाराज हुए सिद्धू
करीब एक साल पहले भाजपा से कांग्रेस में शामिल हुए नवजोत सिंह सिद्धू दस महीने पहले मंत्री बने थे। कैप्टन सरकार में रहते हुए यह तीसरा मौका है जब सिद्धू ने अपनी नाराजगी जताई है। इससे पहले भी उनका अपने विभागों में मनचाहे अधिकारियों की नियुक्ति और केबल माफिया के खिलाफ एक्ट लाने को लेकर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से टकराव हो चुका है। लेकिन, जिस तरह से इस बार उन्होंने खुलकर नाराजगी जताई है, ऐसा पहले दो बार नहीं की थी।
सिद्धू की पहली नाराजगी अधिकारियों को लेकर थी। उन्होंने प्रिंसिपल सेक्रेटरी रैंक के तीन अधिकारियों डीपी रेड्डी, विश्वजीत खन्ना व सतीश चंद्रा को हटवाया। अब वह ए. वेणुप्रसाद के साथ काम कर रहे हैं। इसी तरह सांस्कृतिक व पर्यटन विभाग के डायरेक्टर नवजोत पाल सिंह रंधावा को लेकर भी उनका काफी टकराव रहा। सिद्धू की असली नाराजगी केबल माफिया के खिलाफ एक्ट लाने को लेकर थी।
विधानसभा चुनाव से उन्होंने वादा किया था कि जब भी उनकी पार्टी की सरकार सत्ता में आएगी तो केबल माफिया पर नकेल डाली जाएगी लेकिन जब कैप्टन अमरिंदर ने इस पर ज्यादा रुचि नहीं दिखाई तो सिद्धू नाराज हो गए। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ और विधायक सुखजिंदर सिंह रंधावा ने उन्हें मनाने में अहम भूमिका निभाई। इसके बाद कैप्टन से उनकी मुलाकात करवाई गई और नया एक्ट लाने में सहमति बनी।
कहीं इशारा हाईकमान की ओर से तो नहीं..
राहुल गांधी के कहने के बावजूद नवजोत सिद्धू विधानसभा चुनावों में प्रचार के लिए न तो गुजरात गए और न ही हिमाचल प्रदेश। ऐसे में राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि सिद्धू को ज्यादा भाव न देने संबंधी इशारा पार्टी हाईकमान का ही है। इसको लेकर पंजाब के राजनीतिक हलकों में चर्चाओं का बाजार गर्म है।
अमृतसर में अपनी पसंद का मेयर बनाना चाहते थे
अमृतसर, जालंधर व पटियाला नगर निगमों के मेयरों के चयन को लेकर हुई बैठकों में न बुलाने से वह नाराज हो गए। सूत्रों का कहना है कि सिद्धू अमृतसर में अपनी पसंद का मेयर बनाना चाहते थे, लेकिन कैप्टन ने अमृतसर में आब्जर्वर सिद्धू को बनाने की बजाए अपने विश्वासपात्र ग्रामीण विकास मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा को बना दिया। सिद्धू ने मेयर के लिए पार्षदों के साथ लॉबिंग भी की थी लेकिन कैप्टन ने ऐन मौके पर करमजीत सिंह रिंटू को मेयर बनवाकर सिद्धू की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
पार्टी में एंट्री के समय कैप्टन नहीं थे मौजूद
नवजोत सिद्धू को जब राहुल गांधी ने कांग्रेस में शामिल करवाया था तो उस मौके पर कैप्टन अमरिंदर सिंह मौजूद नहीं थे। उसी समय कयास लगाए गए थे कि कैप्टन व सिद्धू में सब कुछ ठीक नहीं है। इसके बाद जब सरकार बनी तो उम्मीद थी कि सिद्धू को डिप्टी सीएम बनाया जाएगा लेकिन ऐसा तो नहीं ही हुआ, उन्हें कैबिनेट में भी नंबर दो का दर्जा नहीं मिला।
बादल सरकार में भी खोलते रहे थे मोर्चा
नवजोत सिद्धू अमृतसर पूर्वी क्षेत्र से विधायक हैं। यह वही सीट है जहां से उनकी पत्नी डॉ. नवजोत कौर भाजपा के टिकट पर विधायक चुनी गई थीं। सिद्धू बादल सरकार के खिलाफ भी मोर्चा खोलते रहते थे और अपनी उपेक्षा का आरोप लगाते थे।
आप ने दिया न्यौता
सिद्धू की नाराजगी को देखते हुए आम आदमी पार्टी के विधायक व नेता विपक्ष सुखपाल सिंह खैहरा उन्हें आप में शामिल होने का न्योता दिया है। सिद्धू ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।