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अफसरशाही के आगे सियासी लाचारी और कब तक

शहरवासी गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। लोग चाहते हैं कि लोकतंत्र और मजबूत हो ताकि आगे भी जनता के मसलों का हल खुद जनता की इच्छा पर निर्भर हो।

By JagranEdited By: Published: Sat, 25 Jan 2020 06:42 PM (IST)Updated: Sun, 26 Jan 2020 06:10 AM (IST)
अफसरशाही के आगे सियासी लाचारी और कब तक
अफसरशाही के आगे सियासी लाचारी और कब तक

राजेश ढल्ल, चंडीगढ़।

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शहरवासी गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। लोग चाहते हैं कि लोकतंत्र और मजबूत हो, ताकि आगे भी जनता के मसलों का हल खुद जनता की इच्छा पर निर्भर हो। हालांकि चंडीगढ़ को यूटी का दर्जा प्राप्त होने के कारण यहां अफसरशाही ज्यादा हावी है। इसलिए हर काम के लिए यहां लोगों को प्रशासन के आला अधिकारियों पर निर्भर रहना पड़ता है। लोगों की समस्या दूर करने के लिए जनता से चुने प्रतिनिधि भी जोर लगाते हैं, लेकिन कई बार अफसरशाही के सामने उनकी भी नहीं चलती।

केंद्रशासित प्रदेश होने के कारण चंडीगढ़ केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के अंतर्गत आता है। शहर में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि अफसरशाही पर लगाम लगा सके। क्योंकि यहां स्थानीय स्तर पर किसी भी अधिकारी की कोई जवाबदेही तय नहीं है। आरोप लगते रहे हैं कि प्रशासन शहरवासियों से भी कोई राय नहीं लेता। पंजाब में कमिश्नर की एसीआर लिखने की पावर मेयर के पास

चंडीगढ़ में पंजाब म्युनिसिपल एक्ट लागू है। पंजाब में कमिश्नर की एसीआर लिखने का अधिकार मेयर के पास है, लेकिन चंडीगढ़ में ऐसा प्रावधान नहीं है। यहां तक कि सांसद के प्रति भी अधिकारियों की कोई जवाबदेही नहीं है। प्रशासन की ओर से अलग-अलग मामलों में गठित कमेटियों की ओर से शहर से जुड़े जो भी अहम निर्णय लिए जाते हैं, उनमें जनप्रतिनिधियों को शामिल नहीं किया जाता। सिर्फ एक एडवाइजरी कमेटी है, लेकिन उसकी बैठक भी छह माह में एक बार होती है। मगर इस कमेटी में आज तक उठे किसी समस्या को सुलझाया नहीं गया है। नगर निगम के फैसलों पर भी प्रशासन की मुहर अनिवार्य

नगर निगम के सदन की बैठक में लिए गए फैसले तब तक लागू नहीं होते, जब तक प्रशासन का स्थानीय निकाय सचिव उस पर अपनी मंजूरी नहीं दे देता। इसलिए नगर निगम पूरी तरह से प्रशासन की अफसरशाही पर ही निर्भर रहना पड़ा है। हाल ही में नगर निगम ने निर्णय लिया था कि शहर के गांवों की कामर्शियल प्रॉपर्टी पर टैक्स नहीं लगना चाहिए, लेकिन सदन में प्रस्ताव खारिज होने के बावजूद प्रशासन ने गांव वालों पर यह टैक्स थोप दिया। प्रशासन के अधिकारी तो कई बार अपने कार्यक्रम में मेयर और पार्षदों को भी नहीं बुलाते हैं। इस पर पिछले साल के मेयर राजेश कालिया सलाहकार के समक्ष इस संबंध में शिकायत भी लगा चुके हैं। इन मांगों पर अड़चन बरकरार

- हाउसिग इंप्लाइज स्कीम.. जिसे लांच करने के बाद प्रशासन ने खारिज कर दिया था। जबकि इस स्कीम के साथ चार हजार कर्मचारी जुड़े हुए हैं। कर्मचारी दस साल से इस मामले में अपनी मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। इस स्कीम को लागू करवाने के लिए कर्मचारियों ने पिछले दो लोकसभा चुनाव में भाजपा को समर्थन दिया। बावजूद इसके स्कीम सिरे नहीं चढ़ी।

-शहर में 60 हजार हाउसिग बोर्ड के मकान है, जो कि जरूरत के अनुसार बदलाव करने की मंजूरी मांग रहे हैं। हाउसिग बोर्ड से जुड़े लोग हर सप्ताह रविवार को प्रदर्शन करते है, लेकिन प्रशासन किए हुए बदलाव को वायलेशन मानकर नोटिस भेज रहा है।

- बिल्डिग बायलाज में शहर के व्यापारी लंबे समय से संशोधन की मांग रहे हैं। इसके साथ ही वायलेशन के जुर्माने के नोटिस कम करने की मांग की जा रही है, जो की दूर नहीं हो रही है।

- व्यापारी और उद्योगपति शहर की प्रॉपर्टी को लीज टू फ्री होल्ड करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया।

जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का शहर के प्रत्येक लोकहित वाले फैसलों में अहम रोल होना चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था जितनी मजबूत होगी, उतना ही लोगों के हित में ज्यादा फैसले होंगे। जनप्रतिनिधियों की स्थिति को प्रशासन में मजबूत करने के लिए वह प्रयास करेंगे। इसके लिए वह जल्द ही केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद से भी मिलेंगे।

अरुण सूद, भाजपा के चंडीगढ़ अध्यक्ष। शहर में इस समय अफसरशाही ज्यादा हावी है। वही काम होने चाहिए जो कि शहर की जनता चाहती है। जबकि प्रशासन के अधिकारियों द्वारा फैसले जनता पर थोप दिए जाते हैं। चुनाव में भाजपा की ओर से बड़े-बड़े वायदे किए गए, लेकिन उनके नेता भी अधिकारियों से काम करवाने में असफल रहे हैं।

- प्रदीप छाबड़ा, कांग्रेस के चंडीगढ़ अध्यक्ष। प्रशासक चाहते हैं कि लोगों की भागीदारी बढ़नी चाहिए, लेकिन अफसरशाही इतनी हावी है कि अधिकारी आम लोगों से राय लेना तो दूर उनसे पूछते तक नहीं है। इसका खामियाजा यह है कि कागजों में ही काम हो रहे हैं। जबकि जमीन पर कुछ नहीं हो रहा है। रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन में ऐसे अलग-अलग मामलों में रिटायर्ड विशेषज्ञ हैं, लेकिन प्रशासन उनकी राय लेकर समस्या दूर ही नहीं करना चाहता है। इस समय तो यह हालत है कि अभिभावक अपनी मर्जी से अपने घर के नजदीक के सरकारी स्कूल में बच्चे का दाखिला तक नहीं करवा पा रहा है।

- बलजिंदर सिंह बिट्टू, अध्यक्ष फॉसवेक।


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