थोड़ी सी लापरवाही हो सकती है आंखों के लिए घातक, इन बातों का रखें विशेष ध्यान
इंसान को खूबसूरत आंखें कुदरत का अनमोल तोहफा हैं लेकिन आंखों को लेकर थोड़ी सी लापरवाही किसी के लिए भी मुसीबत बन सकती है।
जेएनएन, चंडीगढ़। इंसान को खूबसूरत आंखें कुदरत का अनमोल तोहफा हैं, लेकिन आंखों को लेकर थोड़ी सी लापरवाही किसी के लिए भी मुसीबत बन सकती है। ग्लूकोमा (काला मोतिया) भारत में तेजी से बढ़ रहा है। आंखों की नियमित जांच से ही इस गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है। ताजा आंकड़ों के अनुसार 3 से 5 फीसद लोगों में ग्लूकोमा के लक्षण पाए जाते हैं।
देश में डेढ़ करोड़ से अधिक लोग इस गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। जीएमसीएच-32 आगामी 10 से 16 मार्च तक एनुवल वर्ल्ड ग्लूकोमा वीक मनाने जा रहा है। हफ्तेभर तक ट्राईसिटी के लोगों को विभिन्न जागरूकता अभियानों के तहत लोगों को ग्लूकोमा और उसके उपचार के बारे में जानकारी दी जाएगी। जीएमसीएच-32 में आई डिपार्टमेंट के ग्लूकोमा क्लीनिक के हेड डॉ. सुरेश और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पारुल की देखरेख में वर्ल्ड ग्लूकोमा वीक पीजीआइ और चंडीगढ़ ऑपथ्रोपॉलीजिकल सोसाइटी के सहयोग से जागरूकता वीक मनाया जाएगा।
डॉ. सुरेश ने कहा कि ग्लूकोमा की अनदेखी से आंखों की रोशनी पूरी तरह से जा सकती है। उन्होंने कहा कि अधिकतर लोग 40 फीसद आई विजन खराब होने के बाद ही आंखों को चेक कराते हैं। उन्होंने कहा कि हर छह महीने में आई चेकअप, रेटिना इवेल्यूएशन, विजुअल फिल्ड टेस्टिंग बहुत जरुरी है। डॉ. पारुल ने बताया कि ग्लूकोमा की समय पर पहचान होने पर इसे आई ड्रॉप्स और स्थिति खराब होने पर लेजर और सर्जरी से ठीक किया जा सकता है। डॉ. पारुल ने बताया कि वर्ल्ड ग्लूकोमा वीक के तहत 16 मार्च तक लगातार अवेयरनेस प्रोग्राम चलाया जाएगा। 16 मार्च को सेक्टर-27 स्थित प्रेस क्लब में आई चैकअप कैंप लगाया जाएगा। कोई भी इसमें हिस्सा ले सकता है।
बीते कुछ सालों से ग्लूकोमा (काला मोतिया/ सम्बलबाई) के बढ़ते रोगी विश्व भर में चिंता का विषय बन चुके हैं ग्लूकोमा के अनेक रोगी अक्सर दृष्टि के चले जाने तक इस रोग से बेखबर होते हैं। इस बीमारी में दृष्टि को दिमाग तक ले जाने वाली नस की कोशिकाएं धीरे-धीरे नष्ट होने लगती हैं। जिस तरह हमारा ब्लड प्रेशर होता है, उसी प्रकार से आंखों का भी प्रेशर होता है।
रोग का स्वरूप
ग्लूकोमा में आंख के पर्दे की मुख्य नस (ऑप्टिक नर्व) धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त हो जाती है। इस कारण हमारी दृष्टि कम होते-होते पूरी तरह चली जाती है। नस के क्षतिग्रस्त भाग का उपचार संभव नहीं होता, केवल जो हिस्सा स्वस्थ है, उसे ग्लूकोमा नियंत्रण की मेडिकल विधियों द्वारा बचाया जा सकता है। पहचानें इस रोग को लक्षणों के अभाव में ग्लूकोमा की रोकथाम सबसे महत्वपूर्ण है। इस रोग को समय रहते पहचानना और उपचार द्वारा उसे नियंत्रण में रखना आवश्यक है।
इस तरह करें बचाव
रेटिनल नर्व फाइबर लेयर एनालिसिस (आरएनएफएल ) ग्लूकोमा के रोग में आंख की मुख्य नस में किसी तरह की क्षति होने से पहले इस जांच के जरिये पता लगाया जा सकता है। इस आधुनिक जांच के जरिये हम सीधे आंख की नस व पर्दे की विस्तृत जानकारी पा सकते हैं। ग्लूकोमा होने के एक से छह वर्ष पहले ही इस रोग के होने का पता लगा सकते हैं। जो लोग पहले से ही ग्लूकोमा से पीड़ित हैं, उनके लिए भी यह जांच अति आवश्यक है। जांच एक अत्यंत सहज, आरामदायक है। जो लोग ग्लूकोमा से पीड़ित हैं, उन्हें प्रतिवर्ष इस जांच को कराना चाहिए।
क्या है इलाज
इलाज में आंखों में बढ़े हुए द्रव के दबाव को कम करने के लिए नेत्र विशेषज्ञ के परामर्श से दवाओं का प्रयोग किया जाता है। अगर दवाएं कारगर नहीं हो रही हों, तब आंखों में बढ़े हुए दबाव को कम करने के लिए ऑपरेशन भी करना पड़ सकता है।
ग्लूकोमा के लक्षण
- जब किसी व्यक्ति को ग्लूकोमा होता है तो आंखों में तरल पदार्थ का दबाव बहुत ज्यादा हो जाता है।
- आंखों के नंबर में जल्दी-जल्दी उतार-चढ़ाव आता है। आंखें अक्सर लाल रहती हैं।
- रोशनी का धुंधला दिखाई देना और आंखों में तेज दर्द होना।
- धुंधलापन और रात में दिखना बंद हो जाना।
- डायबिटीज, हाई बीपी और हार्ट की बीमारियों की वजह से भी ग्लूकोमा हो सकता है।
बचाव के उपाय
- ग्लूकोमा का पता लगाने के लिए नियमित आई चेकअप, रेटिना इवेल्यूएशन और विजुअल फील्ड टेस्टिंग कराते रहना चाहिए।
- प्रारंभिक स्थिति में ग्लूकोमा की पहचान कर इसे आई ड्रॉप्स और स्थिति बढ़ जाने पर लेंसर और सर्जरी से ठीक किया जा सकता है।
- ग्लूकोमा के मरीजों को सर्जरी के बाद अपनी आंखों को धूल-मिट्टी से बचाना चाहिए।
- खासकर आंखों को मलना या रगड़ना नहीं चाहिए।
- आंखों पर किसी तरह का प्रेशर नहीं पड़ना चाहिए।