बोरवेल रेस्क्यू डिवाइस से बिना जान गवाएं निकाला जा सकता है बच्चा
अंतिम दिन गवर्नमेंट हाई स्कूल मलोया कॉलोनी के छात्रों का दबदबा रहा।
वैभव शर्मा, चंडीगढ़ : स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिग (एससीईआरटी) में चल रही 47वीं राज्यस्तरीय विज्ञान, गणित और पर्यावरण प्रदर्शनी के अंतिम दिन गवर्नमेंट हाई स्कूल मलोया कॉलोनी के छात्रों का दबदबा रहा। इस प्रदर्शनी में जीएचएस मलोया कॉलोनी के छह मॉडल प्रदर्शित किए गए हैं। लेकिन उनमें से दो मॉडल ऐसे मामलों पर आधारित हैं जो भारत और विदेश में ज्यादा घटित होते हैं। पहला मॉडल है बोरवेल रेस्क्यू डिवाइस और दूसरा मॉडल है एयरोडायनामिक एंड एविएशन रेस्क्यू। बोरवेल रेस्क्यू डिवाइस को इस बात को ध्यान में रखते हुए बनाया है, भारत में बोरवेल में गिरकर काफी बच्चों की मृत्यु हुई है। ऐसे में इस डिवाइस के प्रयोग से बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाला जा सकता है। दूसरे मॉडल को बनाने में इस बात को ध्यान में रखा गया है कि पूरे विश्व में विमान क्रैश के काफी केस सामने आए हैं जिनमें न जाने कितने लोगों की मृत्यु हुई है। ऐसे में इस मॉडल के द्वारा हवाई जहाज के क्रैश होने पर यात्रियों को सुरक्षित बचाने के बारे में जानकारी दी गई है। देश में हो रही घटनाओं से आया आइडिया
बोरवेल रेस्क्यू डिवाइस बनाने वाले स्टूडेंट्स रज्जी और साहिल बिड़ला ने बताया कि बोरवेल में गिरकर बच्चों की मौत होने के बहुत से केस सामने आए हैं। इसको ध्यान में रखते हुए हमने इस मॉडल को बनाया है। इस मॉडल को बनाने काफी समय लगा। दोनों बच्चों ने बताया कि मॉडल में हमने एलईडी लाइट, कैमरा, वायर और गुब्बारे का प्रयोग किया है। यह होगी प्रक्रिया
उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि अगर कोई बच्चा बोरवेल में गिर गया है तो हम इस वायर को उस बोरवेल में डालेंगे जिसमें कैमरा और एलईडी लाइट लगी है। कैमरे से हमें उस बच्चे की मूवमेंट का पता चलेगा। इस वायर के नीचे ही हमने गुब्बारा लगाया हुआ है। जैसे ही वायर उस बच्चे पास पहुंचेगी तो बाहर रखे पंप से उस गुब्बारे में हवा भरकर उसे बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू होगी। इस बीच यदि गुब्बारा फट भी जाता है तो भी बच्चे को नुकसान नहीं होगा। वह सही सलामत बाहर निकल आएगा। पैसेंजर कैबिन का हो लाइट वेट तो बच सकेगी लोगों की जान
एयरोडायनामिक एंड एविएशन रेस्क्यू के बारे में नाजिया और सुधांशु ने बताया कि प्लेन क्रैश होने पर कम ही होता है कि लोगों की जान बची हो। मॉडल में इस बात को ध्यान में रखा गया है कि अगर कोई प्लेन क्रैश होता है तो हम एविएशन रेस्क्यू द्वारा पैसेंजर की जान बचा सकते हैं। इस तकनीक में पैसेंजर कैबिन को पैराशूट से जोड़ा जाएगा जिसका सिस्टम पायलट और को-पायलट के पास होगा। आपातकालीन स्थिति में इसे इंजेक्ट किया जाएगा जिससे पैसेंजर कैबिन जहाज से अलग हो जाएगा। जमीन पर शॉफ्ट लैंडिग के लिए इसके नीचे ट्यूब भी लगाई गई है। ऐसी ही तकनीक नासा ने भी अपनाई है। 10 से 30 हजार वेट होने पर बच सकती है पैसेंजर्स की जान
नाजिया ने बताया कि लगेज का वेट, जहाज का वेट सब मिलाकर करीब 80 हजार किलोग्राम से ज्यादा होता है। ऐसे में हमें इस बात का ध्यान रखना है कि पैसेंजर कैबिन का वजन 10 से 30 हजार होना चाहिए। वहीं, पैसेंजर कैबिन के लिए तीन से छह पैराशूट का प्रयोग किया जाएगा।