चंडीगढ़ के 90 फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार, पीजीआइ ने आंगनबाड़ी केंद्रों में किया सर्वे
कुपोषण की सही स्थिति चेक करने के लिए पीजीआइ की तरफ से शहर के 450 आंगनबाड़ी क्रेच का सर्वे किया गया। जिसमें बच्चों के विकास को भी चेक किया गया है।
सुमेश ठाकुर, चंडीगढ़। शहर में 6 महीने से 5 साल के बच्चे कुपोषण की दोहरी मार को झेल रहे हैं। जहां पर बच्चों के शारीरिक विकास पर असर पड़ रहा है, वहीं मानसिक विकास में भी परेशानी आ रही है। कुपोषण का अर्थ सिर्फ शरीर का कमजोर रहना ही नहीं, मोटापा भी हो सकता है। कुपोषण की सही स्थिति चेक करने के लिए पीजीआइ की तरफ से शहर के 450 आंगनबाड़ी क्रेच का सर्वे किया गया। जिसमें बच्चों के वजन, लंबाई समेत बच्चे के विभिन्न अंगों के विकास को भी चेक किया गया है। जिसमें 90 प्रतिशत बच्चे जरूरी पोषक तत्वों की कमी के कारण बेहतर स्वास्थ्य पाने में नाकाम पाए गए हैं।
450 आंगनबाड़ी सेंटरों के बच्चों का किया सर्वे
शहर में इस समय 450 आंगनबाड़ी सेंटर हैं। जिसमें 60 से 120 बच्चे रोजाना पहुंचते हैं। हर सेंटर के 30 बच्चों को सर्वे में लिया गया। कुल मिलाकर 13500 बच्चों का सर्वे किया गया। हर महीने इनके वजन, ऊंचाई और शरीर के विभिन्न अंगों के विकास को चेक किया गया। बच्चों का उम्र के हिसाब से वजन और ऊंचाई दोनों ही कम मिली। एक महीने में बच्चे का वजन 500 ग्राम तक बढ़ना जरूरी है, शहर के बच्चों को मात्र 100 ग्राम बढ़ रहा है। इसी प्रकार से ऊंचाई में 10 सेंटीमीटर तक बढ़ोतरी मासिक जरूरी है, लेकिन शहर के बच्चे 0.1 सेंटीमीटर ही बढ़ पा रहे हैं। इसके अलावा बाजू की मोटाई, शरीर की मोटाई सहित विभिन्न अंगों की जांच की गई।
घर में नहीं मिल पा रहा जरूरी पोषण
आंगनबाड़ी सेंटर में बच्चों को जरूरी न्यूट्रीशन दिया जा रहा है, लेकिन वह काफी नहीं है। बच्चा आंगनबाड़ी सेंटर में मात्र तीन से चार घंटे रहता है, जबकि 16 घंटे उसे घर में रहना पड़ता है। उस समय में बच्चे को जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पा रहे हैं।
फास्ट फूड से परहेज जरूरी
पीजीआइ की चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. भवनीत भारती का कहना है कि बच्चों को हरी सब्जियां उचित तरीके से नहीं मिल पा रही हैं। जिसका कारण मां-बाप है। जो बच्चे के मां-बाप खाते हैं, वही बच्चे को दिया जाता है। आज हम फास्ट फूड की तरफ बढ़ चुके हैं। उसमें बच्चों के बेहतर विकास के लिए पोष्टिक तत्व नहीं हैं। जिसके कारण या तो बच्चे का पेट खराब रहता है या फिर बच्चा जरूरत से ज्यादा मोटा होता जा रहा है। इसके अलावा अभी भी स्लम एरिया में रहने वाले लोगों की आमदन इतनी नहीं है कि वह बच्चों को बेहतर फूड मुहैया करा सके। इसके कारण बच्चे के मानसिक विकास पर भी बहुत असर पड़ता है।